Dr. Varsha Singh |
रहो नईं सदा काहु को राज
आज को कर लो आजई काज ।।
काज करबे में कैसी लाज
आज को कर लो आजई काज ।।
अपनो हित सोचत हैं सबरे
परहित कोऊ न सोचे
मों के आंगर मीठी- मीठी
पीठ छुरा सब घोंपे
छील रये अपनो- अपनो प्याज।।
आज को कर लो आजई काज ।।
सोचत हैं सब बिना परिश्रम
फल मीठो मिल जैहे
मनयाई चए जितनी कर ल्यौ
को का कैसे कैहे
नाय पहनो जो भरम को ताज
आज को कर लो आजई काज ।।
मार समय की ऐसी परहे
मुस्किल है जो जीतो
जीवन-जल जो भरो दिखा रओ
चार दिनन में रीतो
मूल के संगे जैहे ब्याज
आज को कर लो आजई काज ।।
काल बनी थीं, आज उधड़ रईं
गांव, सहर की सड़कें
पइसा, धेला पचा गए सब
खरी कही सो भड़कें
कैसे मिटहेगी जे खाज
आज को कर लो आजई काज ।।
मिलजुल के सब मन में ठानें
भ्रष्टाचार ने करहें
अपनी गलती पे औरन को
नाम कभऊं ने धरहें
“वर्षा” है जेई सुराज
आज को कर लो आजई काज ।।
- डॉ वर्षा सिंह
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बुंदेली
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