शनिवार, मई 16, 2020

लॉकडाउन और मेरा साहित्यिक सृजन - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय मित्रों, आज दैनिक भास्कर में "लॉकडाउन और मेरा साहित्यिक सृजन" के रूप में मेरी रचनात्मकता के बारे में मुझसे की गई चर्चा प्रकाशित हुई है, जो मेरे उस लेखन पर केंद्रित है जिसे मैं विगत चार-पांच वर्षों से पूरा करना चाह रही थी लेकिन समयाभाव में कर नहीं पा रही थी अब लॉकडाउन की इस अवधि में मिले पर्याप्त समय में मैंने अपनी तीन किताबों का काम पूरा किया है ... मैं धन्यवाद देती हूं दैनिक भास्कर को, जिसने लॉकडाउन के दौरान की मेरी इस उपलब्धि को अपने पाठकों के साथ साझा करने का मुझे अवसर प्रदान किया।
हार्दिक धन्यवाद दैनिक भास्कर 🙏

*लॉकडाउन और मेरा साहित्य सृजन*
     
    - *डाॅ. वर्षा सिंह, वरिष्ठ कवयित्री*

        इंसान यूं तो बहुत कुछ करना चाहता है लेकिन जीवन की बहुतेरी व्यस्तताएं उन्हें करने का मौका ही नहीं देती हैं। विगत 4-5 वर्षों से मैं सागर के वर्तमान साहित्यकारों की रचनाधर्मिता पर जानकारी एकत्र कर रही हूं। जिसमें वरिष्ठ एवं कनिष्ठ दोनों तरह के रचनाकार मेरे इस व्यक्तिगत शोध का विषय रहे हैं। इस शोध के पीछे मेरे मन में यह विचार आया था कि कवि पद्माकर और ज़हूर बख़्श की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान साहित्य सृजन का परिदृश्य लेखबद्ध हो सके। यह सागर की साहित्य परम्परा एवं चिंतन पर शोध करने वाले नवीन शोधार्थियों के लिए एक ज़मीन का काम करेगी। मेरा यह कार्य पूरा होने की कगार पर आ कर समयाभाव के कारण अटका हुआ था। किन्तु कोरोना लॉकडाउन के दौरान मैं इसे अपनी नई शोधात्मक पुस्तक "सागर साहित्य एवं चिन्तन" के रूप में तैयार कर पाई हूं। पुस्तक प्रकाशन व्यवस्थाएं पुनः सुचारू रूप से चलते ही मैं इसे प्रकाशक को सौंप दूंगी। देखा जाए तो कोरोना लॉकडाउन के इस विपरीत समय में एक प्लस प्वाइंट की तरह युवा शोधार्थियों के लिए एक सार्थक पुस्तक तैयार कर सकी हूं जो उन्हें साहित्य के जरिए सागर की वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाओं को समझने में सहायता करेगा और उनके मन में अपने शहर के प्रति प्रेम उत्पन्न करेगा।

          इसी तरह एक और काम जो मैं पिछले 6-7 साल से करना चाह रही थी लेकिन पर्याप्त समय नहीं मिल पाने के कारण ठीक से नहीं कर पा रही थी, वह भी मैंने लॉकडाउन के दौरान जम कर किया है। दरअसल, मैं हिन्दी ग़ज़लों के साथ ही हमेशा उसी पैमाने पर बुंदेली गीत और ग़ज़ल भी लिखना चाहती रही लेकिन पहले नौकरी की व्यस्तताएं, फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक व्यस्तताओं ने मेरी इस चाहत में बाधाएं पहुंचाईं लेकिन कोरोना लाॅकडाउन के दौरान सारा समय घर पर ही रहने से मुझे बुंदेली में लिखने का इतना समय मिला कि पिछले दिनों मैंने बुंदेली गीत और ग़ज़ल के दो संग्रह तैयार कर डाले। इन गीत-ग़ज़लों में मैंने बुंदेली संस्कृति, बुंदेलखंड की समस्याओं और यहां के युवाओं के लिए सुझावों को काव्य के रूप में पिरोया है। जी हां, इन्हें भी मैं कोरोना से उपजी स्थितियां सामान्य होने पर प्रकाशक को सौंप दूंगी। इनमें से ग़ज़ल संग्रह का नाम है-‘‘भली कही जू’‘ और गीत संग्रह है-‘ मीठी लगत बुंदेली बानी‘ । बुंदेली साहित्य यूं भी धनी है, फिर भी मुझे लगता है कि बुंदेली में नवीन विधाओं में अधिक से अधिक लिखा जाता चाहिए। इसके साथ ही यदि लोगों को उनके हितों के बारे में उन्हीं की बोली-भाषा साहित्य मिले तो उन्हें अच्छा और मनोरंजक लगता है क्योंकि उसे वे भली-भांति समझ पाते हैं। वैसे मुझे पूरी उम्मींद है कि मेरे ये दोनों संग्रह नवोदित रचनाकारों में भी अपनी बुंदेली के प्रति प्रेम जगा सकेंगे।
 
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*मेरी बुंदेली ग़ज़ल*

      - डाॅ. वर्षा सिंह, वरिष्ठ कवयित्री

चुप ना रइयो मंझले कक्का
मन की कइयो मंझले कक्का

घर में सौचालय बनवा ल्यो
खुले ने जइयो मंझले कक्का

मोड़ी खों ने घरे बिठइयो
खूब पढ़इयो मंझले कक्का

मोड़ा पे सो नजर राखियो
फेर ने कइयो मंझले कक्का

ठोकर खा जो गिरत दिखाए
हाथ बढ़इयो मंझले कक्का

मुस्किल आए चाए कैसई
ने घबरईयो मंझले कक्का

ठाकुर बाबा पूजे  "वर्षा"
दीप जलइयो मंझले कक्का
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#DainikBhaskar
#Lockdown
#लॉकडाउन
#दैनिकभास्कर

दिनांक 16.05.2020

रविवार, मई 10, 2020

🙋 Happy Mother's Day 2020 💐 गीत...मां की महिमा न्यारी - डॉ. वर्षा सिंह

From left : Me Dr Varsha Singh & My Loving Mother Dr. Vidyawati "Malvika"

🙏 ❤ आज 10 मई को मातृदिवस पर मेरी प्रिय मां डॉ. विद्यावती "मालविका" को समर्पित मातृवंदना ❤🙏
  मां की महिमा न्यारी
      - डॉ. वर्षा सिंह

वंदनीय है, अतुलनीय है
मां है सबसे प्यारी ।
मां से बड़ा न कोई जग में
मां की महिमा न्यारी ।।

मां की ममता जैसी कोई और न छांह घनी,
कैसा भी हो अंधियारा वह ज्योति समान बनी,
बच्चों के सुख की ख़ातिर मां
कष्टों से ना हारी ।।
मां की महिमा न्यारी ।।

अपनी बात करूं तो मां का आशीर्वाद मिला,
इसीलिए तो संस्कार का अनुपम पुष्प खिला,
मां से मिली विरासत में ये
गीत- सृजन फुलवारी ।।
मां की महिमा न्यारी ।।

बचपन में ही छोड़ पिताजी स्वर्ग सिधार गए,
हम बहनों के पालन मां ने कितने त्याग किए,
चुका नहीं पाएगी "वर्षा"
मां का यह ऋण भारी ।।
मां की महिमा न्यारी ।।
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#HappyMothersDay #Mother
#मातृदिवस #मांतुझेसलाम
#मां_की_महिमा
#मातृवंदना
#मातृ_दिवस

शनिवार, मई 09, 2020

मातृ दिवस (10 मई) पर विशेष बुंदेली गीत ... मां से बड़ो ने कोनउ - डॉ. वर्षा सिंह

Happy Mother's Day 2020

मातृ दिवस (10 मई) पर विशेष बुंदेली गीत

मां से बड़ो ने कोनउ
     - डॉ. वर्षा सिंह

भौतई प्यारी लगत हमें, चए
अम्मा कओ, चए माई
कै लो मां खों बऊ प्यार से
माताराम, मताई

जे अपनों नईं ध्यान रखत हैं
ममता की माया में,
खुद रह लेबें कड़क धूप में
हमें रखत छाया में,
रूखो-सूखो खुद खा लैहैं
देतीं हमें मिठाई

उल्टे-सूधे काम उपद्री
कभऊं होत हमसे है,
पैलऊं गुस्सा पांछे उनको
लाड़-प्यार बरसे है,
सरमिंदा कर देत हमें है
हमरी ढीठ-ढिठाई


बच्चन के लाने ने सोई
रातन-रातन जागी,
मां को प्यार मिलत है जीको
बे सबसे बड़भागी,
"वर्षा" मां से बड़ो ने कोनउ
करत हमेस भलाई

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मातृ दिवस पर पढ़िए मेरा यह बुंदेली गीत जो आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10.05.2020 में प्रकाशित हुआ है।


युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=32149





रविवार, मई 03, 2020

लॉकडाउन 3.0 संदर्भित बुंदेली गीत... कोरोना को नाग बिषैलो - डॉ. वर्षा सिंह


 
Dr. Varsha Singh

     लॉकडाउन 3.0 कल यानी 04 मई से दो सप्ताह के लिए शुरू हो रहा है... तो लॉकडाउन के इस तीसरे चरण के संदर्भ में प्रस्तुत है मेरा यह बुंदेली गीत...

कोरोना को नाग बिषैलो
        - डॉ. वर्षा सिंह

इकनी, दुकनी, तिरका तीन।
लॉकडाउन की बज रई बीन।

कोरोना को नाग बिषैलो,
ईको फन ऐसो है फैलो,
कोऊ निकट ने आ-जा पा रऔ
दूरई से सब बोलत 'हैलो',

तारा डार घरे सब बैठे,
घुम-घुमाई लई सब छीन।
लॉकडाउन की बज रई बीन...

सूनी गलियां, सूनी बस्ती
एकई जैसे सांझ-सकारे,
कुल्ल दिना होबे खों आए
घर के भीतर पलका पारे,

टीवी, पेपर, मोबाईल पे
कोरोना के मुदके सीन।
लॉकडाउन की बज रई बीन...

जैसोे बखत कटो है अब लौं
ऊंसई आंगे कट जैैहे जो,
धीरज धरने परहे भारी
कब लौं लॉकडाउन रैहे जो,

"वर्षा" सोस-फिकर नई करने,
रहियो राम - नाम में लीन।
लॉकडाउन की बज रई बीन...

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     इसे आज दिनांक 03.05.2020 के अंक में प्रकाशित करने हेतु युवाप्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=31267








शुक्रवार, मई 01, 2020

दस दोहे... अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस 01 मई पर विशेष... पूजनीय श्रम है सदा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
     प्रिय मित्रों, आज 01 मई है यानी अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस... तो श्रमिक दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🌹❤🌹
      आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 01.05.2020 में श्रमिक दिवस के अवसर पर मेरे 10 दोहे. प्रकाशित हुए हैं। कृपया आप भी पढ़ें 🙏
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=31012

01मई अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर दुनिया भर के समस्त श्रमिकों को समर्पित दस दोहे

पूजनीय श्रम है सदा
      -डॉ. वर्षा सिंह

श्रमिक वही जिनकी सदा, श्रम ही है पहचान।
स्वेदकणों से जो सदा, लिखते श्रम का गान।।

हंस कर सह जाते श्रमिक, हर मौसम की मार।
श्रम की ही आराधना, श्रम ही है त्यौहार ।।

ऊंची बिल्डिंग- राजपथ, बड़े-बड़े निर्माण।
श्रमिकों ने हरदम दिए, श्रम के कई प्रमाण ।।

खनिज उत्खनन क्षेत्र हो या विद्युत - संधान।
हर इक गाथा में लिखा, श्रमिकों का अवदान।।

कोई भी उद्योग हो, श्रमिक बिना बेकार।
अपने श्रम से जोड़ता, श्रमिक तार से तार।।

श्रम सेवा का रास्ता, श्रम पूंजी का द्वार।
श्रम में ही उन्नति निहित, श्रम विकास का सार।।

श्रमिक उठें जब एक हो, गूंजे श्रम का गान।
हिले सिंहासन, डूबते सत्ता के अभिमान।।

तन, मन, सेवा-भाव से, किया गया श्रमदान।
मोल न आंका जा सके, श्रम है सदा महान।।

श्रम के बिना अपूर्ण है, मानवता का गान।
श्रम के जरिए मनुज ने, गढ़े कई प्रतिमान।।

पूजनीय श्रम है सदा, वंदित श्रमिक समाज।
"वर्षा" अभिनंदन करे, श्रमिक दिवस पर आज।।

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श्रमिक दिवस पर शुभकामनाएं


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दस दोहे... फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर को श्रद्धांजलि.... युवा हृदयसम्राट ऋषि - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
        परसों अल्विदा कहा फिल्म  अभिनेता इरफ़ान ख़ान ने और कल अंतिम विदाई ले ली ऋषि कपूर ने... स्व. ऋषि कपूर को कल मैंने अपने इन दस दोहों के माध्यम से श्रद्धांजलि समर्पित की थी....जिसे युवाप्रवर्तक ने प्रकाशित किया था दिनांक 30.04.2020 के अंक में।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=30902

युवा हृदयसम्राट ऋषि
        - डॉ. वर्षा सिंह

युवा हृदयसम्राट ऋषि, किया दिलों पर राज।
'बॉबी' में 'राजा' बने, जीता सकल समाज।।

तरह-तरह के रोल के, साथ किया था न्याय।
आज काल ने कर दिया, कैसा ये अन्याय।।

खानदान फिल्मी मगर, प्रतिभा थी भरपूर।
फेम मिला लेकिन रहे, ऋषि घमंड से दूर ।।

नई-नई अभिनेत्रियों को दी हिम्मत ख़ूब ।
अभिनय के जरिए बने वे सबके महबूब ।।

बाल अभिनेता से युवा और युवा से वृद्ध।
ढेरों फिल्मों से किया, प्रतिभा अपनी सिद्ध।।

पात्र बने हर धर्म के, किया कभी ना भेद।
कलाकार बन श्रम किया,  सदा बहाया स्वेद।।

कटु सच्चाई से भरे, करते ट्वीट ज़रूर।
किन्तु न मन में था कभी, उनके ज़रा गुरूर।।

रजतपटल पर राज कर, लिया सभी को जीत।
सबने चाहा इस क़दर, जैसे हों निज मीत।।

कभी न भूलेंगे उन्हें, हैं जो उनके फैन।
फिल्मों में डूबे रहे, उनकी जो दिन- रैन।।

ऋषि को हमसे है लिया, क्रूर काल ने छीन।
आज अल्विदा कह उन्हें, "वर्षा" है ग़मगीन।।
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    दैनिक "सागर दिनकर", सागर ने भी मेरी इस दोहेरूपी श्रद्धांजलि को आज दिनांक 01 मई 2020 के अंक में प्रकाशित किया है। हार्दिक आभार "सागर दिनकर" 🙏
दैनिक सागर दिनकर

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