रविवार, नवंबर 29, 2020

जन्मदिन की शुभकामनाएं | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. (Miss) Sharad Singh & Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
     आज 29 नवम्बर को मेरी अनुजा डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन है। उन्हें मेरी अनंत हार्दिक शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद 🎂💐🌹💐🔶🌿☘️🌷🥀🌾🌿🌺🌹💐🆚

Happy Birthday To Dr. (Miss) Sharad Singh

 एक वाकया आप सबसे साझा कर रही हूं .... मुझे याद है कि जब मैं कक्षा 06 में पढ़ती थी तब विद्यालय में एक कविता लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। इसमें प्रतियोगियों के लिए कक्षावार तीन वर्ग निर्धारित किए गए थे- प्रायमरी, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक। मैंने माध्यमिक वर्ग में अपना नाम लिखा दिया। अब समस्या थी कविता लिखने की। मैंने इस संबंध में नानाजी ठाकुर श्यामचरण सिंह जी से मदद मांगी, तो उन्होंने कहा - तुम प्रतिभागी हो इसलिए स्वयं कविता लिखो। तब मैंने पूछा कि मैं कैसे लिखूं। नानाजी ने कहा अपनी छोटी बहन पर कविता लिख डालो। और फिर क्या था, मैंने फटाफट अपनी छोटी बहन शरद पर कविता लिख डाली। मुझे उस कविता पर प्रथम पुरस्कार भी मिला। मेरी वह कविता थी -
मेरी बहना, मेरी बहना
सदा मानती मेरा कहना
खेल कूद से अधिक सुहाता
हरदम उसको लिखना-पढ़ना ।

Dear Friends,
    Today HAPPY BIRTHDAY of my sister Dr Sharad Singh. Please blessing to her. Thanks.

Dr. (Miss) Sharad Singh

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 


संक्षिप्त परिचय


भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के पं. बालकृष्ण शर्मा "नवीन" पुरस्कार सहित राज्य स्तरीय रामेश्वर गुरू पत्रकारिता सम्मान पुरस्कार,  प्रादेशिक वागीश्वरी सम्मान, नई धारा कथा सम्मान, कस्तूरी देवी चतुर्वेदी लोकभाषा सम्मान, रामानंद तिवारी स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान, विजय वर्मा कथा सम्मान आदि अनेक सम्मानों से सम्मानित वरिष्ठ लेखिका डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह द्वारा  लिखित विभिन्न विषयों पर लगभग पचास से अधिक पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने शोषित, पीड़ित स्त्रियों के पक्ष में अपने लेखन के द्वारा हमेशा आवाज़ उठाई है।  बुन्देलखण्ड की महिला बीड़ी श्रमिकों पर केन्द्रित ‘पत्तों में कैद औरतें’ तथा स्त्री विमर्श पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरें’ मनोरमा ईयर बुक में शामिल की जा चुकी हैं। बेड़िया स्त्रियों पर केन्द्रित ‘पिछले पन्ने की औरतें’ तथा लिव इन रिलेशन पर 'कस्बाई सिमोन' नामक उनके उपन्यासों को राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनका एक और उपन्यास "पचकौड़ी" राजनैतिक और पत्रकारिता जगत की पर्तों का बारीकी से विश्लेषण करने वाला पठनीय एवं लोकप्रिय उपन्यास है। हाल ही में डॉ. शरद सिंह का नया उपन्यास "शिखण्डी… स्त्री देह से परे" प्रकाशित हुआ है जो महाभारत के एक प्रमुख पात्र शिखण्डी के जीवन को नए नज़रिए से व्याख्यायित करता है।
29 नवम्बर को पन्ना, मध्यप्रदेश में जन्मीं खजुराहो की मूर्तिकला विषय में पीएचडी , सागर की प्रतिष्ठित साहित्यकार, कथालेखिका, उपन्यासकार, स्तम्भकार एवं  कवयित्री और मेरी अनुजा डॉ शरद सिंह वर्तमान में मध्यप्रदेश के सागर नगर में निवास करते हुए स्वतंत्र लेखन के कार्य के साथ नई दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "सामयिक सरस्वती" में कार्यकारी सम्पादक का दायित्व निभा रहीं हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं सहित सोशल मीडिया पर वे लगातार अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। वे मानती हैं कि अधिकारों का ज्ञान और साहस ही स्त्रियों को शोषण-मुक्त जीवन दे सकता है। सागर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र "सागर दिनकर" में उनका नियमित कॉलम "चर्चा प्लस" अनेक समसामयिक मुद्दों पर विश्लेषणात्मक लेखन के लिए प्रबुद्ध पाठकों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। इससे पूर्व डॉ. शरद सिंह सागर से ही प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में अनेक वर्षों तक "बतकाव" शीर्षक का नियमित कॉलम लेखन कर चुकी हैं। 

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शनिवार, नवंबर 14, 2020

दीपावली की शुभकामनाएं | श्री सूक्त | डॉ. वर्षा सिंह

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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आईए, दीपावली के पावन पर्व पर हम देवी लक्ष्मी का आह्वान करें। हम, हमारा परिवार, हमारा समाज, हमारा देश और सकल विश्व धन-धान्य, सम्पदा से परिपूर्ण रहे। "वसुधैव कुटम्बकम्" का मंत्र हम सदैव स्मरण रखें और इस जगत के समस्त प्राणी निर्भय हो कर अपना जीवन व्यतीत करें। देवी लक्ष्मी को नमन 🚩🙏🚩 

🚩अथ श्री सूक्तं 🚩

॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥

ॐ ॥ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥ 1॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ 2॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ 3॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ 4॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ 5॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ 6॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ 7॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ 8 ॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ 9॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ 10।।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ 11॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ 12॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 13॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 14॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ 15॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ 16॥

॥ इति श्री सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥

[ ऋग्वेदीय सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद् में वर्णित श्रीसूक्त ]


फलश्रुति

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नु ते ॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ॥
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ।

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगण खचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरंगधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ।

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधरां ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं ताम् ॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरिप्रसीद मह्यम् ॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखींम् देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमही । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः ।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः स्वयम् श्रीरेव देवता ॥ 

चन्द्रभां लक्ष्मीमीशानाम् सुर्यभां श्रियमीश्वरीम् ।
चन्द्र सूर्यग्नि सर्वाभाम् श्रीमहालक्ष्मीमुपास्महे ॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महीयते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु ।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजंति सद्यः सविता विदध्यून् ॥

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति । सन्ततमृचा वषट्कृत्यं
सन्धत्तं सन्धीयते प्रजया पशुभिः । य एवं वेद ।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
 
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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बुधवार, नवंबर 11, 2020

अमावस पूनम सी उजियार | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज प्रस्तुत है मेरा यह गीत जिसके माध्यम से मैंने दीपावली पर बुंदेलखंड की सुहागिन स्त्री का चित्रण किया है....

गीत....
अमावस पूनम सी उजियार
            - डॉ. वर्षा सिंह

रोशनी बिखरी आंगन द्वार
   अमावस पूनम सी उजियार
    नए गोरी के साज-सिंगार
    रोशनी बिखरी आंगन द्वार

लक्ष्मी मैया सब सुख देना
मन की भोली चाह कहे
रात दिवाली रहे बरस भर
जगमग कातिक मास रहे

     चढ़ा कर श्रद्धा से फिर फूल
     सुहागिन मांगे सुख-संसार
     रोशनी बिखरी आंगन द्वार

सिर-माथे पर आंचल डाले
हाथों पूजा-थाल लिए
तुलसी चौरे झुक कर रखती
माटी के अनमोल दिए

      आंखों बसा सजन का रूप
      अब तो सांस-सांस त्यौहार
      रोशनी बिखरी आंगन द्वार
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#दीपावली #अमावस्या #बुंदेलखंड #सुहागिन #रोशनी

शनिवार, नवंबर 07, 2020

जीवन | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

गीत
      जीवन
          - डॉ. वर्षा सिंह

हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक
जब तक भी यह जीवन है ।।
फिर अनंत तक का सफर अनवरत
टूटा हर एक बंधन है ।।

तिरस्कार, उपहास, मान के
सारे किस्से बेमानी
गागर सागर में डूबी तो
मिलता पानी से पानी

भुला हक़ीक़त मानव का मन 
करता रहता नर्तन है ।।

साथ समय के नाम-ख्याति सब 
भुला दिए जाते हैं 
नई-नई घटनाएं लेकर 
दिवस-वर्ष आते हैं

इस दुनिया की फ़ितरत सबको 
भाता जो भी नूतन है ।।

आपस में संग्राम किस लिए 
राग-द्वेष सब व्यर्थ यहां 
हर पल धुंधले होते दर्पण 
खो देते हैं अर्थ है यहां 

जब तक "वर्षा" की रिमझिम है 
तब तक भादों,सावन है ।।
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