शुक्रवार, मई 31, 2019

ग़ज़ल - कुछ बोल पाते हैं नहीं - डॉ. वर्षा सिंह


Dr.Varsha Singh

        मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 28 मई 2019 में स्थान मिला है। 

युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

ग़ज़ल
        - डॉ. वर्षा सिंह


सोचते तो हैं मगर, कुछ बोल पाते हैं नहीं।
बंद दरवाज़े हृदय के खोल पाते हैं नहीं।

सच को परदे में रखें, हम ये नहीं कर पायेंगे
झूठ को हम चाशनी में घोल पाते हैं नहीं।

जी-हज़ूरी से रहे हैं दूर कोसों उम्र भर
चाटुकारी के लिए हम डोल पाते हैं नहीं।

हर तरफ बिक्री-खरीदी, हर तरफ मक्कारियां,
कोई भी शै हम यहां, अनमोल पाते हैं नहीं।

कै़द जिनको कर लिया हो ज़िन्दगी ने बेवज़ह,
आखिरी दम तक कभी पैरोल पाते हैं नहीं।

जो न "वर्षा" कर सके अभिनय किसी भी मंच पर,
वक़्त के नाटक में इच्छित रोल पाते हैं नहीं।
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ग़ज़ल- डॉ. वर्षा सिंह


मंगलवार, मई 21, 2019

ग़ज़ल... सोचो क्या होगा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 21 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=14903

ग़ज़ल

सोचो क्या होगा !
                     - डॉ. वर्षा सिंह

टूट गए सब धागे, सोचो क्या होगा
बचे नहीं गर रिश्ते, सोचो क्या होगा

उमड़ रहे हैं काले बादल पश्चिम से
हाथ नहीं हैं छाते, सोचो क्या होगा

धुंधलापन मन पर भी हावी लगता है
आंखों फैले जाले, सोचो क्या होगा

जमे हुए थे जो ''अंगद'' का पांव बने
बदल लिए हैं पाले, सोचो क्या होगा

भंवर मिले तो चप्पू साथ नहीं देते
गर फंसने पर जागे, सोचो क्या होगा

सांझ खड़ी है सिर पर, दीपक शेष नहीं
गहरे होते साये, सोचो क्या होगा

पानी देने में बरती कोताही तो
सूखे सारे पत्ते, सोचो क्या होगा

रात जुन्हाई की न समझी कद्र ज़रा
दिन में दिखते तारे, सोचो क्या होगा

मौसम के ये खेल न "वर्षा" समझी है
जीती बाजी हारे, सोचो क्या होगा

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#ग़ज़लवर्षा

ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

बुधवार, मई 15, 2019

अंतरराष्ट्रीय/ विश्व परिवार दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

अंतरराष्ट्रीय/ विश्व परिवार दिवस पर सभी सुधीजनों को समर्पित है....

जो समझ पाते नहीं घरबार की भाषा!
जान वो पाते नहीं परिवार की भाषा!

ज़िन्दगी तन्हा गुज़ारी शौक से लेकिन,
पढ़ न पाये वो यहां त्यौहार की भाषा!

हो न नफ़रत तब दिलों के दरमियां बेशक़,
एक हो जाये अगर संसार की भाषा!

दोस्ती जिसने कलम के साथ कर ली हो
रास कब आई उसे तलवार की भाषा !

द्वेष से हासिल कभी ख़ुशियां नहीं होतीं
क्लेश देती है सदा प्रतिकार की भाषा!

रूठ जाये कोई गर अपना कभी हमसे,
याद तब कर लीजिये मनुहार की भाषा!

है गुज़ारिश आपसे "वर्षा" की इतनी सी,
सीख लीजे आप भी अब प्यार की भाषा!

       - डॉ. वर्षा सिंह


Happy International Family Day - Dr. Varsha Singh 

सोमवार, मई 13, 2019

ग़ज़ल ... वह मेरी छोटी सी मेज - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh


कितने राज़ छुपाये रहती, वह मेरी छोटी सी मेज।
मुझको सखी-सहेली लगती, वह मेरी छोटी सी मेज।

उसके भीतर आजू-बाजू, चार दराज़ें सिमटी थीं
जिनमें मेरा गोपन रखती, वह मेरी छोटी सी मेज।

वर्षों बीत गए जब मां ने इक दिन मुझको डांटा था
मेरे सारे आंसू गिनती, वह मेरी छोटी सी मेज।

पहला प्रेम पत्र जब लिख्खा, लिख- लिख फाड़ा कितनी बार
मेरे पशोपेश सब सहती, वह मेरी छोटी सी मेज।

अब पीछे वाले कमरे में, इक कोने में रहती है
स्मृतियों का हिस्सा बनती, वह मेरी छोटी सी मेज।

"वर्षा" मोबाइल ने छीना, "मसि-कागद'' पर लेखन को,
कुछ भी नहीं किसी से कहती, वह मेरी छोटी सी मेज।

                                 - डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा

रविवार, मई 12, 2019

लोकसभा चुनाव.... मैंने भी मतदान किया - डॉ. वर्षा सिंह

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं डॉ. वर्षा सिंह

    आज दिनांक 12 मई 2019 को मैंने भी मतदान किया.... सागर लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रतिनिधि चुनने और लोकतंत्र के इस महात्यौहार को मनाने के लिए 😊

शनिवार, मई 11, 2019

Happy Mother's Day 2019 मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


मां से बढ़ कर कौन जगत में !
                     - डॉ. वर्षा सिंह

जब -जब मन बेचैन हुआ है।
तब -तब मां को याद किया है।

मां ने सबको अमृत बांटा,
खुद चुपके से ज़हर पिया है।

जीवन की दुर्गम राहों में,
मां की हरदम मिली दुआ है।

मां से बढ़ कर कौन जगत में !
ईश्वर मां से नहीं बड़ा है।

ममता की  "वर्षा" करती मां,
मां का आंचल सदा भरा है।  

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शुक्रवार, मई 10, 2019

ग़ज़ल ... अजनबी शहर है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


अजनबी शहर है, रात दिन है अजनबी।
चुभ रहा ख़्याल में वो पिन है अजनबी।

लग रही है रोशनी भी ख़ौफ़नाक सी 
अंधकार का सफ़र, कठिन है अजनबी।

जबकि ज़िन्दगी बिता दी इनके वास्ते,
रंग चाहतों का क्यों मलिन है अजनबी।

गूंथ कर गया वो मेरी चोटियों में जो,
आज  लग रहा वही रिबन है अजनबी।

दुख जिसे मिले हरेक मोड़ पर यहां,
सुख भरा हुआ हरेक छिन है अजनबी।

त्रासदी है इश्क़, "वर्षा" क्या कहें किसे
अजनबी वसुंधरा, गगन है अजनबी। 

               - डॉ. वर्षा सिंह
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ग़ज़ल .... अजनबी शहर है - डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, मई 07, 2019

बाल विवाह के विरुद्ध जागरूकता केन्द्रित बुंदेली गीत... बचपन न छीनो- छिनाओ - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
     
   आज अक्षय तृतीया के अवसर पर  बाल विवाह के विरुद्ध जागरूकता केन्द्रित मेरे बुंदेली गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 07 मई 2019 में स्थान मिला है।

युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

http://yuvapravartak.com/?p=14485

मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

बचपन न छीनो- छिनाओ
           - डॉ. वर्षा सिंह

बचपन न छीनो- छिनाओ मोरी बिन्ना !
अक्षय तीजा खूबई मनइयो
पुतरा-पुतरियन को ब्याओ रचइयो
नबालिग को ब्याओ न कराओ मोरी बिन्ना!
बचपन न छीनो- छिनाओ मोरी बिन्ना !

खेलत- पढ़त की जोई उमरिया
मूड़े न धरियो भारी गगरिया
अबई से दुलैया न बनाओ मोरी बिन्ना!
बचपन न छीनो - छिनाओ मोरी बिन्ना !

अठरा बरस की मोड़ी हो जैहे
इक्किस को मोड़ा जब मिल जैहे
माथे पे सेहरा बंधाओ मोरी बिन्ना
बचपन न छीनो- छिनाओ मोरी बिन्ना !

बच्चन की शिक्छा-दिक्छा कराओ
जिम्मेदारी को पाठ पढ़ाओ
मड़वा तबई गड़ाओ  मोरी बिन्ना !
बचपन न छीनो - छिनाओ मोरी बिन्ना !

छोटी उमर को ब्याव बुरो है
जिनगी भर को कष्ट बनो है
समझो जा बात समझाओ मोरी बिन्ना!
बचपन न छीनो- छिनाओ मोरी बिन्ना !
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#बुंदेली वर्षा

http://yuvapravartak.com/?p=14485

शनिवार, मई 04, 2019

मतदाता जागरूकता अभियान संदर्भित बुंदेली गीत... ओ बड्डे, काय फिरत भैराने - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

बुंदेली गीत
              - डॉ. वर्षा सिंह

ओ बड्डे, काय फिरत भैराने ।।
काय फिरत भैराने, ओ बड्डे
अपनो हाल बतइयो हमसे
करियो नाय बहाने ।
ओ बड्डे, काय फिरत भैराने ।।

कोऊ से तुम अब ना डरइयो
वोट डारबे खों तुम बी जइयो
देश के लाने कदम बढ़इयो
अपनो वोट डार के अइयो

लोकतंत्र त्यौहार हमाओ
ऊ में का शरमाने !
ओ बड्डे, काय फिरत भैराने ।।

भौजी संगे हंस के जइयो
प्रजातंत्र की गैल दिखइयो
वोटन को अधिकार बतइयो
तुम अपनो बी वोट गिरइयो

वोट -वोट मिलके नई संसद
नोनी खूब बनाने ।
ओ बड्डे, काय फिरत भैराने ।।

आज अबई जा कसम उठइयो
कोऊ की बातन में ना अइयो
जी को अपने ना बहकइयो
सोच समझ के बटन दबइयो

एक तुमाओ वोट है हीरा
ई को नाय गंवाने ।
ओ बड्डे, काय फिरत भैराने ।।

बुंदेली गीत ... मतदाता जागरूकता - डॉ. वर्षा सिंह

मेरे इस बुंदेली गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 05 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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बुधवार, मई 01, 2019

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस 01 मई पर विशेष गीत... श्रम एव जयते - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh of

प्रस्तुत है मेरा एक गीत जिसे web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 01 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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गीत
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श्रम एव जयते
         - डॉ. वर्षा सिंह
श्रम ही पूजा, श्रम अर्चन है।
श्रम का वंदन, अभिनंदन है।
        श्रम एव जयते, श्रम एव जयते ।।
श्रम से ही सब कुछ हासिल है
करे न श्रम जो वह बुजदिल है
श्रम ही सांसें, श्रम जीवन है।
        श्रम एव जयते, श्रम एव जयते ।।
श्रम से ही सब कुछ सम्भव है
श्रम निर्मित सारा वैभव है
श्रम चंदन जैसा पावन है।
         श्रम एव जयते, श्रम एव जयते ।।
जाने कितने शिलालेख हैं
श्रम की गाथायें अनेक हैं
श्रम का गीत सदा नूतन है।
          श्रम एव जयते, श्रम एव जयते ।।
श्रमिक वही जन कहलाता है
श्रम से जिसका दृढ़ नाता है
श्रम माणिक है, श्रम कंचन है।
          श्रम एव जयते, श्रम एव जयते ।।     
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