Dr. Varsha Singh |
मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 21 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=14903
ग़ज़ल
सोचो क्या होगा !
- डॉ. वर्षा सिंह
टूट गए सब धागे, सोचो क्या होगा
बचे नहीं गर रिश्ते, सोचो क्या होगा
उमड़ रहे हैं काले बादल पश्चिम से
हाथ नहीं हैं छाते, सोचो क्या होगा
धुंधलापन मन पर भी हावी लगता है
आंखों फैले जाले, सोचो क्या होगा
जमे हुए थे जो ''अंगद'' का पांव बने
बदल लिए हैं पाले, सोचो क्या होगा
भंवर मिले तो चप्पू साथ नहीं देते
गर फंसने पर जागे, सोचो क्या होगा
सांझ खड़ी है सिर पर, दीपक शेष नहीं
गहरे होते साये, सोचो क्या होगा
पानी देने में बरती कोताही तो
सूखे सारे पत्ते, सोचो क्या होगा
रात जुन्हाई की न समझी कद्र ज़रा
दिन में दिखते तारे, सोचो क्या होगा
मौसम के ये खेल न "वर्षा" समझी है
जीती बाजी हारे, सोचो क्या होगा
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#ग़ज़लवर्षा
ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह |
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