शुक्रवार, दिसंबर 28, 2018

नए साल में - डॉ. वर्षा सिंह


मेरी चाहत है
कि नए साल में नया भारत
मेरा अपना भारत हो

इंडिया नहीं, भारत और सिर्फ़ भारत

जहां बिखरी हो सुगन्ध स्वदेशी की
जहां बिखरी हो मिठास भारतीय संस्कृति की
और बिखरा हो उजाला भारतीयता का

जहां प्रति पल आरती हो लोकतंत्र की
जनतंत्र की
गणतंत्र की


यूं ही - डॉ. वर्षा सिंह


कभी- कभी
यूं ही
शब्द बुन देते हैं
कविताएं

और
बह निकलती हैं
भावनाएं
कभी-कभी
यूं ही

हमारा समय बहुत निष्ठुर है - डॉ. वर्षा सिंह


कहीं कोई सितारा टूटा है
आसमान में
या
फूल गिरा है मुरझा कर
धरती पर.

क्या पता !
ऐसी बातें पेज 3 की ख़बर नहीं बनतीं
और न ही बनती हैं
ब्रेकिंग न्यूज़.
हां, दोस्त !
हमारा समय बहुत निष्ठुर है.

चाहत जब आहत होती है - डॉ. वर्षा सिंह


पत्ते शाख से टूट कर गिरे
आंसू आंख से रूठ कर गिरे

उठा तो सिर्फ़ ...और सिर्फ़
धुआं मेरे जलते हुए दिल से

चाहत, जब आहत होती है
हां, तब कुछ ऐसा ही होता है.


शनिवार, दिसंबर 22, 2018

काश, कभी तो... डॉ. वर्षा सिंह


काश!
कभी तो पूछता कोई
हवा से
कि कैसी हो ?
पूछता नदी से
कि कैसी हो ?
पूछता मुझसे
कि कैसी हो ?

काश !
कभी तो हवा,नदी और मैं
कह पाते हाल अपना
और सच हो जाता
एक बेहद पुराना सपना

इन दिनों .... डॉ. वर्षा सिंह


इन दिनों
उमड़े हैं बादल इश्क़ के
हो रही है शायरी की "वर्षा".
.... और
भीगे हुए तन-मन में
जागी है सिर्फ़ एक उम्मीद
सिर्फ़ एक आशा.

कि छू लूं हंसी
चूम लूं ख़ुशी
.... और
पढ़ लूं तुम्हारे मन की भाषा.
        - डॉ. वर्षा सिंह

सोमवार, दिसंबर 17, 2018

बनती हैं हरदम सहेली किताबें - डॉ. वर्षा सिंह


लगती भले हों पहेली किताबें  ।
बनती हैं हरदम सहेली किताबें।

भले हों पुरानी कितनी भी लेकिन
रहती हमेशा नवेली किताबें।

देती हैं भाषा की झप्पी निराली
अंग्रेजी, हिन्दी, बुंदेली किताबें।

चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
नहीं रूठती इक अकेली किताबें।

शब्दों की ख़ुशबू से तर-ब-तर सी
महकाती "वर्षा", हथेली किताबें।

       📚📖 - डॉ. वर्षा सिंह


#ग़ज़लवर्षा



बुधवार, दिसंबर 12, 2018

..... कुछ ऐसा रहा मेरा वर्ष 2018 😊

Dr. Varsha Singh

         .....कुछ ऐसा रहा मेरा वर्ष 2018 😊




..... और आने वाले वर्ष के लिए उम्मीदें ....

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
फिर इक नया सबेरा हो ।
ख़्वाब अधूरा रहे न कोई
तेरा हो या मेरा हो ।

फूल खिले तो बिखरे ख़ुशबू
बिना किसी भी बंधन के,
रहे न दिल में कभी निराशा
उम्मीदों का डेरा हो ।

जहां -जहां भी जाये मनवा
अपनी चाहत को पाये,
इर्दगिर्द चौतरफा हरदम
ख़ुशियों वाला घेरा हो ।

आंसू दूर रहें आंखों से
होंठों पर मुस्कान बसे,
दुख ना आये कभी किसी पर
सिर्फ़ सुखों का फेरा हो ।

कुण्ठा का तम घेर न पाये
मुक्त उजाला रहे सदा,
"वर्षा" रोशन रहे हर इक पल
कोसों दूर अंधेरा हो ।
     💕- डॉ. वर्षा सिंह

रविवार, दिसंबर 02, 2018

किस्से ग़मों के सुनाना नहीं .... डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

क़िस्से ग़मों के सुनाना नहीं,
मज़े लेगी दुनिया, हंसेंगे सभी

वहीं पर क़दम थम के रह जायेंगे
जहां पीछे मुड़ करके देखा कभी

कल की ख़बर तो किसी को नहीं
वही सिर्फ़ अपना, जो है बस अभी

      🍁 -डॉ. वर्षा सिंह