Dr. Varsha Singh |
भोपाल, मध्यप्रदेश में निवासरत जाने माने शायर और पत्रकार, राज एक्सप्रेस, भोपाल में वरिष्ठ सम्वाददाता के पद पर कार्यरत सलीम तन्हा फेसबुक पर "आकलन" कॉलम का लेखन कर रहे हैं। कल दिनांक 01.04.2019 को इस बार का आकलन मुझ पर यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह पर केंद्रित किया है। जिसे मैं इस स्क्रीनशॉट सहित इस ब्लॉग के सभी पाठकों से साझा कर रही हूं।
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इस बार/ आकलन
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करीब चार दशक से निरंतर लिख रही हैं वर्षा सिंह साहिबा
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दिल की गहराइयों को छू जाती हैं उनकी रचनाएँ......
(सलीम तन्हा)
तकरीबन तीन दशक पहले की बात है। देश की तमाम पत्र- पत्रिकाओं में जहाँ ग़ज़लें खूब प्रकाशित हो रही थीं,वहीं एक से बढ़ कर एक गीतकारों की लम्बी फेहरिस्त थी। तब,व्यावसायिक पत्रिकाओं के साथ ही साहित्यिक पत्रिकाओं का भी खासा दौर था। तमाम अखबारों के रविवारीय परिशिष्ट निकल रहे थे।( जो अब धीरे धीरे बंद हो गए हैं या होते जा रहे हैं)। उस दौर में और भी बेहतरीन लेखन हो रहा था।हर शहर में कवि गोष्ठियाँ, नशिस्तें हुआ करती थीं। देश भर की पत्र पत्रिकाओं में, मैं भी खूब छपा करता था। इसी दौरान मैं जिस महिला गीत-ग़जलकार को पढ़कर बहुत ही प्रभावित हुआ था, उनका नाम आज बड़े सम्मान के साथ लेना चाहूँगा, ये मोहतरमा हैं वर्षा सिंह साहिबा। शायरा वर्षा सिंह साहिबा को लिखते हुए करीब चार दशक से ज़्यादा का समय हो गया है। करीब तीस साल के अंतराल के बाद मेरी मुलाक़ात अचानक फेसबुक पर हो गई। वर्षा जी को मैने फोन किया तो उन्होंने मुझे फौरन पहचान लिया। लेखन के साथ घर- परिवार की कुशलक्षेम पूछी। मैने देखा कि वर्षा जी आज भी उसी शिद्दत के साथ लेखन में तल्लीन हैं। फिर मैंने उनकी वॉल का अवलोकन किया तो हैरत हो हुई कि उनकी ताज़ा रचनाएँ आज भी बहुत ही सम्प्रेषणीय और प्रसींगिक हैं। वर्षा सिंह साहिबा की रचनाएँ सामाजिक सरोकारों से ज़ुड़ी ज़िन्दगी के तमामतर अनुभवों का निचौड़ हैं। वर्षा सिंह साहिबा चाहे गीत लिखें,ग़ज़ल कहें या कविता,उनक़ी रचनाओं में कथ्य बड़ी मजबूती के साथ प्रस्तुत होता है, वहीं शिल्पगत बारीकियाँ का भी वो पूरी तरह ख़याल रखते हुए अपनी बात कह जाती हैं। वर्षा सिंह साहिबा एक परिपक़्व और बहुत ही तजरिबों से गुज़री रचनाकार हैं। उनका रचना- संसार पूरी ज़िन्दगी की हक़ीकत और सच्चाई है। अगर उनके अदबी सफ़र पर लिखा जाए तो कई सफे कम पड़ जाएंगे। आज मैं इस " बार आकलन" के अंतर्गत वर्षा सिंह साहिबा की रचनाएँ पेश कर रहा हूँ, इस उम्मीद और विश्वास के साथ कि वर्षा जी की ये रचनाएँ हम सभी को मुतासिर कर सकेंगी।
मेरे प्यार की कहानी है जुदा कहूं मैं कैसे!
चुपचाप भी मगर अब सहती रहूं मैं कैसे!
वो न अजनबी है लेकिन मेरा भी वो नहीं है
क्या दिल में चल रहा है उसके पढ़ूं मैं कैसे!
न है शर्त और न कोई वादा किया है हमने,
दुनिया जो मारे ताने, आखिर सहूं मैं कैसे!
ग़ज़लें कही हैं ढेरों, न सुकूं मिला है दिल को,
मिसरों की डोरियों से सपने बुनूं मैं कैसे !
काली सफेद राहें, जैसे हों इक भुलैया,
अब ज़िन्दगी में "वर्षा" रंग फिर भरूं मैं कैसे !
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🌼 वसन्त पंचमी पर
सुन लो, यही कहानी है।
जीवन बहता पानी है ।
जी लो आज अभी जो है
बेशक़ दुनिया फ़ानी है।
नैट- चैट की बातों में
चिट्ठी हुई पुरानी है।
पहले लव की शेष यही
सूखा फूल निशानी है।
सबके मन को भाये जो,
मीठी बोली- बानी है।
गर वसन्त है राजा तो,
"वर्षा" ऋतु की रानी है।
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Happy Rose Day 🌹
इश्क़ का जब भी सिलसिला होगा।
ज़िक्र तेरे गुलाब का होगा।
दीन-दुनिया से बेख़बर है वो,
उसने 'लव यू', उसे कहा होगा।
भर गई ताज़गी हवाओं में,
फूल कोई कहीं खिला होगा।
उसके होंठों पे मुस्कुराहट है,
उसने मैसेज अभी पढ़ा होगा।
जा के जिस ठौर बसेगा सावन
वही "वर्षा" का भी पता होगा।
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ज़िन्दगी से शिकायत करें भी तो क्या !
हर तरफ है शिकायत का मेला लगा ।
जबसे मैंने भी की दिल्लगी आपसे
रंग बदलने लगा चेहरा आपका ।
अब न कोई यहां जिसको अपना कहें
रास आती नहीं अब यहां की हवा।
जब भी चाहा करूं मैं भी मनमर्जियां
रोक लेते हैं रिश्ते मेरा रास्ता ।
हर किसी को मिले मीत जिसका हो जो
दिल से "वर्षा" के निकली है अब ये दुआ
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शुक्रिया ...
एक छोटा सा लफ़्ज़
लेकिन कानों से
जा पहुंचता है दिल तक.
लोग कहते हैं -
प्यार और दोस्ती में
यह ज़रूरी नहीं....
क्या सचमुच ?
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Thanks Facebook ❤
Thanks Friends 🌹
जिंदगी क्या है बताये कोई
राह जीने की दिखाये कोई
कौन हूँ मैं, वजूद क्या मेरा
मुझको मुझसे ही मिलाये कोई
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लगती भले हों पहेली किताबें ।
बनती हैं हरदम सहेली किताबें।
भले हों पुरानी कितनी भी लेकिन
रहती हमेशा नवेली किताबें।
देती हैं भाषा की झप्पी निराली
अंग्रेजी, हिन्दी, बुंदेली किताबें।
चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
नहीं रूठती इक अकेली किताबें।
शब्दों की ख़ुशबू से तर-ब-तर सी
महकाती "वर्षा", हथेली किताबें।
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चंद शेर....
पीठ पीछे, इश्क़ वाली गुफ़्तगू करते रहे,
सामने आए तो पूछा 'हाल मौसम का है क्या'।
वाह री दुनिया, तुम्हारे रंग भी देखे कई,
आज कांधे पर बिठाया, कल दिया दिल से भुला।
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शक नहीं लाना कभी तुम
दोस्ती के दरमियां
बीज नफ़रत का न बोना
ज़िन्दगी के दरमियाँ
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कवयित्री- वर्षा सिंह
आकलन- सलीम तन्हा
शायर सलीम तन्हा |
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