- डॉ. वर्षा सिंह
हमसे बात हमई की करियो ।
और न कोनऊ की कुछ कहियो।
का कैसो चल रओ सहर में ,
मोबाइल पे हाल बतइयो ।
बोनी हो गई इते खेत में ,
उते भओ का जा तो सुनइयो ।
सहर की लपझप रूप है न्यारो,
हंसी-हंसी में नाय फिसलियो ।
फीको अब तो लगत गांव है ,
कछू हमायी सुध ले लइयो ।
मेला इते लगो है नोनो,
आ के मेला हमें घुमइयो ।
तुम ‘सागर’ में ऐसे रम गए,
हम औरन खों भूल ने जइयो ।
मुन्ना मुन्नी हींड़ रये हैं ,
“अब तो पप्पा घर आ जइयो” ।
जनम जनम के बंधन अपने ,
फिर-फिर के, फिर छोर बंधइयो ।
तुम सुहाग के टीका साजन ,
अपने हाथन हमें सजइयो ।
हम बुंदेली नार हैं “वर्षा”,
सोच समझ के हमें सतइयो ।
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बुंदेली दरसन- डॉ. वर्षा सिंह |
बुंदेली दरसन- डॉ. वर्षा सिंह |
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