शुक्रवार, जुलाई 10, 2020

लावण्या शाह की मानसून और सावन के झूलों पर कविताएं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
प्रिय ब्लॉग पाठकों, सहज, सरल स्वभाव की धनी संवेदनशील लेखिका एवं कवयित्री लावण्या शाह उत्तर अमेरिका के ओहायो प्रांत में सिनसिनाटी में रहती हैं। वे सुप्रसिद्ध गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा की पुत्री हैं। भारतीयता उनके रग- रग में बसी है। समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या शाह भारतीय  टेलीविजन दूरदर्शन पर प्रसारित बी.आर.चोपड़ा के धारावाहिक “महाभारत” के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। उनकी एक चर्चित पुस्तक “फिर गा उठा प्रवासी”  पिता पंडित नरेन्द्र शर्मा की प्रसिद्ध कृति “प्रवासी के गीत” के प्रति श्रद्धांजलि पर आधारित है।
         उनकी नवीनतम पुस्तक "सांग्स फ्रॉम ए मानसून स्विंग एण्ड अदर पोयम"  ( Songs from a Monsoon Swing and Other Poems ) ..... आशा है कि पठनीय होगी और साहित्य प्रेमियों को रुचिकर लगेगी। हिन्दी के पाठकों को इस पुस्तक के हिन्दी अनुवाद की प्रतीक्षा रहेगी।



लावण्या शाह की दो कविताएं यहां प्रस्तुत है....

1. बरखा-सहृदया

उमड़-घुमड़कर बरसे,
तृप्त हुई, हरी-भरी, शुष्क धरा।

बागों में खिले कंवल-दल,
कलियों ने ली मीठी अंगड़ाई।
फैला बादल दल, गगन पर मस्ताना
सूखी धरती भीगकर मुस्काई।

 मटमैले पैरों से हल जोत रहा,
कृषक थका गाता पर उमंग भरा।
'मेघा बरसे, मोरा जियरा तरसे,
आंगन देवा, घी का दीप जला जा।'

रुनझुन-रुनझुन बैलों की जोड़ी,
जिनके संग-संग सावन गरजे।
पवन चलाए बाण, बिजुरिया चमके,
सत्य हुआ है स्वप्न धरा का आज,

पाहुन बन हर घर बरखा जल बरसे।


 लावण्या शाह, लेखिका एवं कवयित्री
2. गुंजित पुरवाई

खिले कंवल से,
लदे ताल पर,
मंडराता मधुकर,
मधु का लोभी।

गुंजित पुरवाई,
बहती प्रति क्षण,
चपल लहर,
हंस, संग-संग हो ली।

एक बदली ने झुककर पूछा,
'मधुकर, तू गुन-गुन क्या गाए?
छपक-छप मार कुलांचे,
मछलियां, कंवल पत्र में,
छिप-छिप जाएं।'

हंसा मधुप रस का लोभी,
बोला, 'कर दो छाया बदली रानी।
मैं भी छिप जाऊं कंवल जाल में,
प्यासे पर कर दो, मेहरबानी।'

रे धूर्त भ्रमर तू रस का लोभी,
फूल-फूल मंडराता निस दिन,
मांग रहा क्यों मुझसे छाया?
गरज रहे घन ना मैं तेरी सहेली।'

 टप-टप बूंदों ने,
बाग, ताल, उपवन पर,
तृण पर, बन पर,
धरती के कण-कण पर,
अमृत रस बरसाया,
निज कोष लुटाया।

अब लो बरखा आई,
हरीतिमा छाई,
आज कंवल में कैद
मकरंद की सुन लो
प्रणयपाश में बंधकर,
हो गई सगाई।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐनमस्ते सुश्री वर्षा जी
    आपके स्नेह से अभिभूत हूँ।
    आप से स हृदय, सुधि, साहित्यिक साथियों के स्नेहिल प्रतिभावसे जीवन यात्रा के विभिन्न कार्य करते हुए जब आप की तरह, दूर, मेरे भारत से,यदि कोई,इतना स्नेह देता है तब यह मीलों की सारी भौगोलिक दूरियाँ दूर हो जातीं हैं। आप परिवार सहित स्वस्थ एवं सानंद रहें मेरी ढेरों शुभकामनाएं स्वीकारें। इस पोस्ट के लिए मेरे हाथ जोड़ कर बहुत सारे धन्यवाद
     सादर, सस्नेह,
    ~ लावण्या

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    1. आदरणीया लावण्या जी, आपके इसी सहज आत्मीयता भरे व्यक्तित्व और अमेरिका में रह कर भी हिन्दी के प्रति आपकी प्रतिबद्धता की बहुत बड़ी प्रशंसिका हूं मैं।
      आपकी इस औदार्यपूर्ण टिप्पणी के प्रति हार्दिक आभार एवं कोटिशः शुभकामनाएं 🙏💐🙏

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  2. Bahut hi sunder manbhavan kavitaon ke liye priy lavanya ko shubhkamnayein
    V ise pathakon tak pahunchane ke liye Dr varsha singh ji
    Ko hardik badhai

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    1. Devi Nangrani ji,
      Lavanya ji deserve it. Her poetry is heart touching.
      आप मेरे ब्लॉग पर पधारीं इस हेतु आपके प्रति हार्दिक आभार 🙏

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