बुधवार, अक्तूबर 24, 2018

गीत ... सृजन - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

जीवन का जब छंद नया बन जाएगा
प्राणवान हो अमृत रस छलकायेगा
सृजन हमारा तभी रंग ला पायेगा

भाषा केवल संप्रेषण तक रह नहीं रहे
भावों की सरिता बनकर निर्बाध बहे
रूप, बिंब, संदर्भ, अर्थ सब नूतन हों
शब्द-शब्द विस्तारित हो आल्हाद गहे
विषय वस्तु और कथ्य नया ले आएगा
सृजन हमारा तभी रंग ला पायेगा

सिर्फ कल्पना ही हावी ना हो पाए
सच के नव आयामों से भी सज जाए
स्वयं बढ़े दृढ़ता से मुश्किल राहों पर
विचलन से बचने का गुर भी सिखलाए
प्रासंगिकता लेकर सबको भायेगा
सृजन हमारा तभी रंग ला पाएगा

मनोराग के साथ बुद्धि का संगम हो
प्रगतिशीलता की भी उसमें सरगम हो
अनुभव से वैचारिकता को पुष्टि मिले
लेखन मावस नहीं, वरन् वह पूनम हो
जीवन में नव दृष्टि, नयापन लाएगा
सृजन हमारा तभी रंग ला पाएगा

जीवन का जब छंद नया बन जाएगा
प्राणवान हो अमृत रस छलकायेगा
सृजन हमारा तभी रंग ला पायेगा



1 टिप्पणी:

  1. डॉक्टर वर्षा , आप की यह रचना बहुत सुन्दर है*का *जीवन का जब छंद नया बन जाएगा*
    *प्राणवान हो अमृत रस छलकायेगा* ‌‌ यह कल्पना मुझे काळी रोचक लगी

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