सोमवार, फ़रवरी 08, 2021

दस दोहे वृद्धजन पर | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh with her mother Dr. Vidyawati 'Malvika'

दस दोहे वृद्धजन पर

   

                   - डॉ वर्षा सिंह


वृद्धों की सेवा करें, वृद्धों का सम्मान ।

उनके आशीर्वाद से, मिलता हमको मान ।।


बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, रखिए निर्मल भाव ।

जीवन के हर मोड़ पर, दिखता सुखद प्रभाव ।।


ऐसे भी हैं वृद्धजन, जग में जो असहाय ।

उनसे नाता जोड़ कर, उनके बनें सहाय ।।


याद रखें जो हैं युवा, आयुवृद्धि अनिवार्य ।

कर पाएंगे वृद्ध हो, तिरस्कार स्वीकार्य ?


दर्पण को रख सामने, देखें ख़ुद का अक़्स ।

जो भीतर है क्या वही, बाहर भी है शख़्स ?


बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, मन में श्रद्धाभाव ।

कभी न उनसे कीजिए, जीवनभर अलगाव ।।


वृद्धावस्था रुग्णता, कर देती लाचार।

किन्तु नम्र व्यवहार से, दें उनको उपहार।।


सहज न कलियुग में मिलें, ऐसे श्रवणकुमार ।

मातु-पिता हित हेतु जो, त्यागें सुख-संसार ।।


करुणा, मानवता, दया, आदर औ' सत्कार ।  

पाई मानव देह तो,  मुक्तहस्त उपकार ।।


अपने हों या ग़ैर हों, करिए सदा प्रणाम ।

मातु-पिता-चरणों तले, "वर्षा" चारों धाम ।।


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15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सारगर्भित एवं संदेश पूर्ण दोहे..

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह"  (चर्चा अंक- 3973)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. "बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, मन में श्रद्धा लाएं ।
    काम बिगड़ते तब बनें, शुभाशीष जब पाएं ।।


    वृद्धावस्था रुग्णता जैसे कष्ट दिलाए ।
    किन्तु नम्र व्यवहार से, हंसी-ख़ुशी कट जाए ।। "
    --
    ये दो दोहे दोहे की परिधि से इतर हैं.
    --
    यदि इस प्रकार से कर देंगे तो अच्छा रहेगा-
    बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, मन में श्रद्धाभाव ।
    कभी न उनसे कीजिए, जीवनभर अलगाव ।।

    वृद्धावस्था रुग्णता, कर देती लाचार।
    किन्तु नम्र व्यवहार से, दो उनको उपहार।।

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  5. करुणा, मानवता, दया, आदर औ' सत्कार ।

    पाई मानव देह तो, मुक्तहस्त उपकार ।।

    सुंदर दोहे...

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विकास नैनवाल 'अंजान' जी 🙏

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  6. भाषा सरल और सीख अनमोल ! अभिनंदन आपका वर्षा जी ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी 🙏

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  7. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी।
    सादर

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  8. सुंदर नीति के दोहे सुंदर संदेश देते उद्गार ।
    सुंदर सृजन।

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    1. आदरणीया आपकी इस आत्मीयतापूर्ण टिप्पणी के लिए सादर धन्यवाद 🙏

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