Dr. Varsha Singh |
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस जो अंग्रेज़ी में International Day Of Older Persons के नाम से जाना जाता है, इसे प्रत्येक वर्ष 01 अक्टूबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 14 दिसम्बर, 1990 को निर्णय लेने के बाद 01 अक्तूबर 1991 का दिन ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध-दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। 'अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस' को कई और भी नाम दिए गए हैं जैसे - 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस', 'अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस', 'विश्व प्रौढ़ दिवस', 'अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस' 'सीनियर सिटीजन डे', Day of Senior Citizen आदि। किन्तु इन सबका उद्देश्य एक है, और वह है अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करना एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना। वर्तमान समय में वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है। उनके पास जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनसे किसी बात पर परामर्श नहीं लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। वृद्ध जन स्वयं को उपेक्षित, निष्प्रयोज्य महसूस करने लगे हैं। अपने वरिष्ठ नागरिकों को, बुज़ुर्गों को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है।
कवियों, शायरों ने वृद्ध जन के प्रति अनेक कविताएं लिखी हैं। कुछ कविताएं आज
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के अवसर पर मैं आप सब से साझा कर रही हूं।
सीनियर सिटीजन दिवस
मान जो भी मिल रहा वो नौजवाँ तेवर को है।
अब बुजुर्गों का तो बस सम्मान कहने भर को है।
पल रहे वृद्धाश्रम में जाने कितने वृद्ध जन ,
सीनियर सिटीजन दिवस यूँ एक अक्टूबर को है।
🍁 - कुँवर कुसुमेश
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वृद्धजन दिवस
उन सभी वृद्धजन को मेरा प्रणाम -
जो नहीं जानते
कि आज है वृद्ध जन्म दिवस !!!
वह जो लगा रहा है अदालत के चक्कर
दशकों से
अपने मृत बेटे को न्याय दिलाने,
झुक गई है उसकी कमर
घिस गया है चश्मा,
उस वृद्ध को मेरा प्रणाम !
वह मां जो अपनों के द्वारा
ठुकरा दी गई
और बैठी है सड़क के किनारे
टूटा, पिचका कटोरा लिए भीख मांगते
पेट की खातिर
दुआएं देती अपने बच्चों को
उस मां को प्रणाम !
मेरा प्रणाम, उस दादी को, उस नानी को,
उस दादा को, उस नाना को
जो अपने नाती-पोतों को
लेना चाहते हैं अपनी गोद में
सुनाना चाहते हैं एक कहानी
मगर छोड़ दिए गए हैं घर से दूर
एक वृद्ध आश्रम में।
तो, मेरा प्रणाम उन सभी वृद्धजन को
जो नहीं जानते कि आज वृद्धजन दिवस है !!!
🍁 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
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दादी जियो हजारों साल
हम बच्चों के जन्मदिवस को,
धूम-धाम से आप मनातीं।
रंग-बिरंगे गुब्बारों से,
पूरे घर को आप सजातीं।।
आज मिला हमको अवसर ये,
हम भी तो कुछ कर दिखलाएँ।
दादी जी के जन्मदिवस को,
साथ हर्ष के आज मनाएँ।।
अपने नन्हें हाथों से हम,
तुमको देंगे कुछ उपहार।
बदले में हम माँग रहे हैं,
दादी से प्यार अपार।।
अपने प्यार भरे आँचल से,
दिया हमें है साज-सम्भाल।
यही कामना हम बच्चों की
दादी जियो हजारों साल।।
🍁- डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
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काया से बुज़ुर्ग
खुद हरे पत्ते ही शाखा छोड़ देते है,
और पतंग बन उड़के माँझा तोड़ देते है!
संस्कारों को देते बेहतरीन सलीके से,
बच्चों को वो लगाके रखते अपने सीने से,
राह पे इनकी चलके राह मोड़ देते है,
और पतंग बन उड़के माँझा तोड़ देते है!
खुद हरे पत्ते ही शाखा छोड़ देते है,
और पतंग बन उड़के माँझा तोड़ देते है!
काया से बुज़ुर्ग लेकिन जवाँ इरादे होते,
आँखों पे चश्मा होता नज़रों में ज़माने होते,
टूटके वो खुद ही रिश्ता जोड़ देते है,
खुद हरे पत्ते ही शाखा छोड़ देते है!
खुद हरे पत्ते ही शाखा छोड़ देते है,
और पतंग बन उड़के माँझा तोड़ देते है!
🍁 - योगेन्द्र "यश"
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वो बूढ़ी निगाहें
काश जान पाते उसके बचपन के हसीं
लम्हात क्या थे,
वो बूढ़ा माथे पे बोझ लादे हुए
मुख़्तलिफ़ ट्रेनों का पता देता रहा,
मुद्दतों प्लेटफ़ॉर्म में तनहा ही रहा,
काश, जान पाते
उसकी मंज़िल का पता क्या था,
शहर की उस बदनाम बस्ती में
पुराने मंदिर के ज़रा पीछे,
मुग़लिया मस्जिद के बहुत क़रीब,
शिफर उदास वो बूढ़ी निगाहें तकती हैं गुज़रते राहगीरों को,
काश जान पाते उसकी नज़र में
मुहब्बत के मानी क्या थे,
वृद्धाश्रम में अनजान, भूले बिसरे वो तमाम
झुर्रियों में सिमटी जिंदगी,
काश जान पाते, वो उम्मीद की गहराई
जब पहले पहल तुमने चलना सिखा था,
वो मुसाफिरों की भीड़, कोलाहल,
जो बम के फटते ही रेत की मानिंद
बिखर गई ख़ून और हड्डियों में
काश जान पाते कि
उनके लहू का रंग
हमसे कहीं अलहदा तो न था,
ख़ामोशी की भी ज़बाँ होती है,
करवट बदलती परछाइयाँ
और सुर्ख़ भीगी पलकों में कहीं,
काश हम जान पाते ख़ुद के सिवा भी
ज़िन्दगी जीते हैं और भी लोग
🍁 - शांतनु सान्याल
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बूढ़ी देह
वह ख़ुश थी,बहुत ही ख़ुश
आँखों से झलकते पानी ने कहा।
असीम आशीष से नवाज़ती रही
लड़खड़ाती ज़बान कुछ शब्दों ने कहा।
पुस्तक थमाई थी मैंने हाथ में उसके
एक नब्ज़ से उसने एहसास को छू लिया।
कहने को कुछ नहीं थी वह मेरी
एक ही नज़र में ज़िंदगी को छू लिया।
परिवार एक पहेली समर्पण चाबी
अनुभव की सौग़ात एक मुलाक़ात में थमा गई।
पोंछ न सकी आँखों से पीड़ा उसकी
मन में लिए मलाल घर पर अपने आ गई।
अकेलेपन की अलगनी में अटकी सांसें
जीवन के अंतिम पड़ाव का अनुभव करा गई।
स्वाभिमान उसका समाज ने अहंकार कहा
अपनों की बेरुख़ी से बूढ़ी देह कराह गई।
🍁 - अनीता सैनी 'दीप्ति'
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वृद्ध जन
बोझिल मन
अकेला खालीपन
बढ़ती उम्र।
सारा जीवन
तुम पर अर्पण
अब संघर्ष।
वृद्ध जन
तिल-तिल मरते
क्या न करते?
🍁 - सुशील कुमार शर्मा
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माँ को वृद्धाश्रम मत भेज
जिस माँ ने तुम्हें जीवन दिया
उस माँ को क्यों तुम भूलना चाहते हो,
तुम इतने क्यों लाचार बनना चाहते हो।
बार-बार माँ तुमसे यही कहती है कि अपना ले
माँ को वृद्धाश्रम मत भेज।
तुम्हारे घर के सामने मुझे
छोटी सी कुटिया मुझे रहने के लिए दे दे ,
मैं उसमें रह लूँगी।
तुम सुख दो या दुःख दो
मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता,
बस तुम दिन में एक बार दिख जाओ
इसी बात की मुझे खुशी हो।
फिर माँ वही कहती है अपना ले
माँ को वृद्धाश्रम मत भेज।
🍁 - रवि पाटीदार
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ढलती सांझ का दर्शन
कुछ नये के फेर में ,
अपना पुराना भूल गए ।
देख मन की खाली स्लेट ,
कुछ सोचते से रह गए ।।
ढलती सांझ का दर्शन ,
शिकवे-गिलों में डूब गया ।
दिन-रात की दहलीज पर मन ,
सोचों में उलझा रह गया ।।
दो और दो के जोड़ में ,
भावों का निर्झर सूख गया ।
तेरा था साथ रह गया ,
मेरा सब पीछे छूट गया ।।
🍁 - मीना भारद्वाज
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और अंत में प्रस्तुत है मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की वृद्ध दिवस पर यह ग़ज़ल -
बूढ़ा दरवेश
बूढ़ी आंखें जोह रही हैं एक टुकड़ा संदेश मां- बाबा को छोड़ के बिटवा बसने गया विदेश
घर का आंगन, तुलसी बिरवा और काठ का घोड़ा
पोता-पोती, बहू बिना ये सूना लगे स्वदेश
जीपीएफ से एफडी तक किया निछावर जिस पे
निपट परायों जैसा अब तो वही आ रहा पेश
"तुम बूढ़े हो, क्या समझोगे" यही कहा था उसने
जिस की चिंता करते करते श्वेत हो गए केश
"वर्षा" हो या तपी दुपहरी दरवाजे वो बैठा बिखरी सांसों से जीवित है जो बूढ़ा दरवेश
🍁 - डॉ. वर्षा सिंह
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वृद्धजन दिवस पर केंद्रित इस महत्वपूर्ण आलेख में मेरी कविता को भी शामिल करने के लिए हार्दिक आभार एवं कोटिशः धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम् शरद 🙏❤🙏
हटाएंदुर्लभ प्रस्तुति और अत्यंत सुन्दर सूत्रों का संयोजन । वृद्धजन दिवस पर श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अनेकानेक धन्यवाद इस संग्रह में मेरे सृजन को मान देने के लिए .🙏🙏
जवाब देंहटाएं🙏❤🙏 सुस्वागतम् 🙏❤🙏
हटाएंप्रिय मीना जी 💐💐💐
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचनाएँ, आज के प्रजन्म के लिए बहुत ही ज़रूरी है वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करना, जिसकी शुरुआत घर के संस्कार से होती है, दरअसल एकक या अणु परिवार की वजह से वृद्धों के प्रति उपेक्षा में वृद्धि पायी जाती है, इसलिए अनेकों माता पिताओं का पता वृद्धाश्रम हो चला है, जो की समाज के लिए दुःखदायी है, और नवीन प्रजन्मों के लिए भी हानिकारक है, वृद्ध अच्छे पथ प्रदर्शक होते हैं सिर्फ़ ज़रूरत है उनसे प्यार करना, थोड़ा सम्मान देना, उन से कुछ बातचीत करना ताकि उनका शेष जीवन ख़ुशी से गुज़र जाए, ये कोई ऋण अदायगी का रस्म न हो कर एक इंसानियत की भावनाओं से भरा होना चाहिए और हर एक को इसी पथ से लौटना है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं🙏💐🙏
हटाएंहार्दिक धन्यवाद अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए
🙏💐🙏
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी 💐🙏💐
हटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय.Hindiguru जी
हटाएंअद्भुत संकलन ,सभी रचनाएं मन को द्रवित करती सभी रचनाकारों को साधुवाद इस आयोजन का हिस्सा बनने के लिए ,आपकी रचना के साथ आपका यह संकलन मील का पत्थर है ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
हार्दिक आभार कुसुम कोठारी जी 🙏💐🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवृद्धजनों के सम्मान में अलग - अलग रचनाओं का संकलन अत्यंत सुन्दर एवं सराहनीय लगा... आपके इस संकलन में मैं भी अपनी एक रचना का योगदान देना चाहूँगा, जो इस प्रकार है...
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों को योंँ लावारिस कभी तुम छोड़ मत देना
कि हो शर्मिन्दा माँ की कोख ऐसी कोढ़ मत देना,
कहा जाता है बच्चे हैं हमारे कल की बुनियादें
भरोसा है ये सदियों का कहीं तुम तोड़ मत देना...
ये रचना मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध है... देखने के लिये लिंक इस प्रकार है...
https://charchchit32.blogspot.com/2017/02/blog-post_15.html?spref%3Dbl&n=विशाल+चर्चित+(Vishaal+Charchchit):+हमारे+बुजुर्ग...&t=++
हार्दिक स्वागत है आपका मेरे इस ब्लॉग पर।
हटाएंकृपया मेरे अन्य ब्लॉगस् का भी अवलोकन कर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी से नवाज़ें।
बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों की रचनाएँ दिल को छूने वाली हैं। सभी को हार्दिक बधाई! इस सुन्दर संकलन के लिए डॉ. वर्षा को विशेष बधाई!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय Gajendra Bhatt "हृदयेश" जी 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर संकलन है. सभी रचनाएँ बेहद उम्दा हैं. सभी रचनाकारों को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद डॉ. जेन्नी शबनम जी 🙏
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