मंगलवार, फ़रवरी 26, 2019

ग़ज़ल.... सुबह की ताज़ा हवा... डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


सुबह की ताज़ा हवा में सांस ले लें दो घड़ी।
फिर वही होगा रुटिन और रोज़ जैसी हड़बड़ी।

दौड़ती सी, भागती सी ज़िन्दगी, मत पूछिये
जुड़ रही है किस तरह से एक से दूजी कड़ी

आप ही बतलाइए सच-झूठ में है फ़र्क क्या
अक्ल मेरी है ज़रा सी, आपकी बातें बड़ी

टीस देती हैं खरोंचे, देह रिश्तों की व्यथित
टूटता विश्वास हर पल,हर क़दम धोखाधड़ी

देश से बाहर गया वो लौट कर आया नहीं
मां- पिता का अब सहारा एक टूटी सी छड़ी।

ढेर सारी दिक्कतें हैं, राह बचने की नहीं
सामना करना ज़रूरी, सामने जो आ खड़ी

तेज़ है रफ़्तार "वर्षा" वक़्त की, चलना कठिन
कौन पीछे रह गया, देखें ये किसको है पड़ी
          - डॉ. वर्षा सिंह

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ग़ज़ल.... डॉ. वर्षा सिंह


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