शनिवार, नवंबर 07, 2020

जीवन | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

गीत
      जीवन
          - डॉ. वर्षा सिंह

हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक
जब तक भी यह जीवन है ।।
फिर अनंत तक का सफर अनवरत
टूटा हर एक बंधन है ।।

तिरस्कार, उपहास, मान के
सारे किस्से बेमानी
गागर सागर में डूबी तो
मिलता पानी से पानी

भुला हक़ीक़त मानव का मन 
करता रहता नर्तन है ।।

साथ समय के नाम-ख्याति सब 
भुला दिए जाते हैं 
नई-नई घटनाएं लेकर 
दिवस-वर्ष आते हैं

इस दुनिया की फ़ितरत सबको 
भाता जो भी नूतन है ।।

आपस में संग्राम किस लिए 
राग-द्वेष सब व्यर्थ यहां 
हर पल धुंधले होते दर्पण 
खो देते हैं अर्थ है यहां 

जब तक "वर्षा" की रिमझिम है 
तब तक भादों,सावन है ।।
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#गीतवर्षा #गीत #जीवन #सावन #सागर #रिमझिम #दर्पण

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-11-2020) को    "अहोई अष्टमी की शुभकामनाएँ!"  (चर्चा अंक- 3879)        पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --

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  2. हार्दिक आभार आदरणीय डॉ.शास्त्री जी 🙏🍁🙏

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  3. व्यवहारिक यथार्थ के धरातल पर प्रतिदिन की अनुभूतियों को बहुत सुन्दर भाव व शब्दों में पिरोया है आपने.. मैं जब भी आपका सृजन पढती हूँ मन्त्रमुग्ध हो उठती हूँ । अनुपम सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई वर्षा जी 🌹🌹

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    1. प्रिय मीना जी,
      आपके उद्गार पढ़ कर भावविह्वल हो उठी हूं मैं। आप सभी का स्नेह ही है जो मेरे सृजन को उत्तमता देता है... इसे मनग्राही बनाता है। हार्दिक आभार आपकी इस आत्मीय टिप्पणी के लिए 🙏🌹🙏
      मेरे ब्लॉगस् पर सदैव आपका स्वागत है।

      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. आपस में संग्राम किस लिए
    राग-द्वेष सब व्यर्थ यहां
    हर पल धुंधले होते दर्पण
    खो देते हैं अर्थ है यहां ..वाह!मन को छूता बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी सराहनीय लेखनी।
    सादर

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  5. तिरस्कार, उपहास, मान के
    सारे किस्से बेमानी
    गागर सागर में डूबी तो
    मिलता पानी से पानी - - उम्मीदों से लबरेज़ बहुत सुन्दर रचना - - साधुवाद नमन सह।

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    उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी.🙏

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  6. आपस में संग्राम किस लिए
    राग-द्वेष सब व्यर्थ यहां
    हर पल धुंधले होते दर्पण
    खो देते हैं अर्थ है यहां
    जब तक "वर्षा" की रिमझिम है
    तब तक भादों,सावन है ।।
    बहुत सही कहा आपने ... वर्षा है तो सावन भादों

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  7. तिरस्कार, उपहास, मान के
    सारे किस्से बेमानी
    गागर सागर में डूबी तो
    मिलता पानी से पानी.....
    यही सत्य किसी की समझ में नहीं आता !

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