Dr. Varsha Singh |
पिता यहीं हैं पास ...
- डॉ. वर्षा सिंह
हरदम इक अहसास बना सा रहता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
पिता हुए स्वर्गीय, समय प्रतिकूल हुआ,
निपट अकेली मां ने है पाला-पोसा,
बचपन मेरा था कितना संत्रास घिरा,
बिना पिता की छाया के संघर्ष भरा,
किन्तु पिता की छवि ताज़ा हो जाती है
जब तूफान कहीं कोई भी उठता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
निपट अकेली मां ने है पाला-पोसा,
बचपन मेरा था कितना संत्रास घिरा,
बिना पिता की छाया के संघर्ष भरा,
किन्तु पिता की छवि ताज़ा हो जाती है
जब तूफान कहीं कोई भी उठता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
कभी -कभी मन किन्तु ये सोचा करता है,
याद पिता को अक्सर करता रहता है,
पिता अगर जीवित होते तो क्या होता !
जैसा अब है, जीवन वैसा ना रहता,
मेरी अपनी दुनिया भी रोशन होती
अंधियारों में एक दिया - सा जलता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
याद पिता को अक्सर करता रहता है,
पिता अगर जीवित होते तो क्या होता !
जैसा अब है, जीवन वैसा ना रहता,
मेरी अपनी दुनिया भी रोशन होती
अंधियारों में एक दिया - सा जलता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
रक्त उन्हीं का रग में मेरी दौड़ रहा,
जिनका तेजस्वी स्वरूप है मुझे मिला,
ईश्वर को मंजूर यही तो बेशक़ ही,
मुझे नियति से कभी न कोई रहा गिला,
किन्तु न उनका होना भी तो खलता है
बन कर जैसे फांस हृदय में चुभता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
--------------------जिनका तेजस्वी स्वरूप है मुझे मिला,
ईश्वर को मंजूर यही तो बेशक़ ही,
मुझे नियति से कभी न कोई रहा गिला,
किन्तु न उनका होना भी तो खलता है
बन कर जैसे फांस हृदय में चुभता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
मेरे इस गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 16 जून 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
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