Dr. Varsha Singh |
परों में बांध कर हिम्मत, परिन्दे घर से निकले हैं।
करेंगे पार हर पर्वत, परिन्दे घर से निकले हैं ।
नहीं है ख़ौफ़ मौसम का, न कोई डर हवाओं का
उड़ानों की लिए चाहत, परिन्दे घर से निकले हैं।
चहकना है इन्हें हर हाल, हों हालात कैसे भी
भले ही मन रहे आहत, परिन्दे घर से निकले हैं।
न कोई वास्ता नफ़रत, सियासत, शानोशौकत से
मुहब्बत की लिए दौलत, परिन्दे घर से निकले हैं।
सुबह से सांझ तक "वर्षा", रहेगी खोज तिनके की
मिले चाहे नहीं राहत ,परिन्दे घर से निकले हैं।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 31 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1294 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
न कोई वास्ता नफ़रत, सियासत, शानोशौकत से
जवाब देंहटाएंमुहब्बत की लिए दौलत, परिन्दे घर से निकले हैं।
बहुत खूब......यथार्थ.......लाजवाब
धन्यवाद रविन्द्र जी
हटाएंलाजवाब गजल...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुधा जी, अत्यंत आभार
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