Dr. Varsha Singh |
आज मावस की निशा
रोशनी के छंद गढ़ती आज मावस की निशा
दीप से श्रृंगार करती आज मावस की निशा
भीतियों पर सातियों की पांत, मंगल कामना
द्वार पर शुभ-लाभ लिखती आज मावस की निशा
पान, श्रीफल में, बताशे- खील, अक्षत फूल में
रूप नूतन गंध भरती आज मावस की निशा
फुलझड़ी झरती बनाती अल्पनाएं अग्नि की
अग्निपुंजों से संवरती आज मावस की निशा
शंख की ध्वनि में निनादित सामवेदी स्वर मधुर अर्चना के श्लोक पढ़ती आज मावस की निशा
कंचनी वातावरण में कार्तिक स्वर्णिम हुआ
स्वर्ण का भंडार लगती आज मावस की निशा
श्री रमा-आराधना में व्यस्त “वर्षा” नभ-धरा
भक्ति- गीतों से निखरती आज मावस की निशा
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