गुरुवार, जुलाई 19, 2018

साहित्य वर्षा-18 सामाजिक सरोकारों के सजग कवि : कपिल बैसाखिया - डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों,
       स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र "सागर झील" में प्रकाशित मेरे कॉलम "साहित्य वर्षा" की अट्ठारहवीं कड़ी में पढ़िए मेरे शहर सागर के विशिष्ट कवि कपिल बैसाखिया पर मेरा आलेख । ....  और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को  ....

साहित्य वर्षा - 18

सामाजिक सरोकारों के सजग कवि : कपिल बैसाखिया

       - डॉ. वर्षा सिंह

        छंदबद्ध काव्य धैर्य और समय की मांग करता है। जबकि वर्तमान आपाधापी और शीघ्रता वाले समय में अनेक साहित्यकार ऐसे हैं जो छंद साधना का धैर्य नहीं रख पाते हैं तथा कठोर खुरदरी किसी नारे के समान लगने वाली कवितायें रचने लगते हैं। किन्तु सागर के साहित्य जगत में कपिल बैसाखिया एक ऐसे कवि हैं जो निरंतर छंदबद्ध रचनाएं लिख रहे हैं। 07 जून 1957 को सागर में जन्में कपिल बैसाखिया ने डॉ हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से विज्ञान विषय में स्नातक उपाधि अर्जित करने के बाद शासकीय सेवा की राह पकड़ ली। साहित्य के प्रति उनका रुझान सतत् बना रहा। उनके पिता स्व. कपूरचंद बैसाखिया सागर नगर के लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित कवि थे। उनकी काव्यधर्मिता की विरासत को और अधिक सम्पन्न बनाते हुए कपिल बैसाखिया ने काव्य सृजन को गम्भीरता से लिया। उन्होंने दोहे और कुण्डलियां के साथ ही मुक्तक और ग़ज़ल भी लिखे हैं। अपने लेखन के आरम्भिक दिनों में समसामयिक लेख एवं कहानियां भी लिखीं। किन्तु छंदबद्ध रचनाओं के प्रति उनके लगाव ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। विशेष रूप से उनके दोहे और कुण्डलियों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि अनेक सरोकार निबद्ध हैं। उनके दोहों में पर्यावरण के प्रति गहन चिंता दिखई देती है। उदाहरण के लिऐ उनके ये दोहे देखें -
            भाग रहे हैं जानवर, पक्षी भरे उड़ान।
            मौसम में बदलाव नित, पस्त पड़ा इंसान।।
            शुद्ध हवायें गुम हुईं, बचा न पाये पेड़।
            हुए मतलबी जन सभी, रहे धरा को छेड़।।
        कवि कपिल ने पर्यावरण के प्रति चिन्ता व्यक्त करने के साथ ही प्रकृति के सांदर्य को भी अपने दोहों में मुखर किया है, जैसे -
            तपन घटी बादल दिखे, मौसम बदले रूप।
            पानी-पानी अब धरा, भरे सरोवर , कूप।।
        कपिल बैसाखिया ने उन विषयों पर भी विश्लेष्णात्मक ढ़ंग से दोहे लिखे हैं जिन पर आम तौर पर लिखा ही नहीं जाता है। ताले पर केन्द्रित उनके ये दोहे देखें -
            ताले का होता बड़ा, गहन मनोविज्ञान।
            रखता साज सम्हाल के, ये सारा सामान।।
            जहां जहां ताला लगे, पाता वो सम्मान ।
            पेटी हो या द्वार हो, ताले से ही मान।।
        रोटी पर केन्द्रित अपने दोहों में कवि कपिल ने जिस प्रकार रोटी की प्रशंसा की है वह बड़ी लुभावनी है, दोहे देखें -
            सोंधी- सोंधी हो महक, अच्छी जाये फूल।
            ऐसी रोटी याद रख, बाकी जायें भूलं।।
            गरम-गरम रोटी रहे , गोल-गोल आकार।
परसी हो फूली हुई, भला लगे आहार।।
फूली रोटी देख कर , मिलता बहुत सुकून।
आती जब ये थाल पर, बढ़ जाता है खून।।
आज युवाओं में मोबाइल के प्रति जिस प्रकार अंधानुराग है, वह उनके जीवन के लिए भी घातक है, फिर भी वे इस तथ्य को अनदेखा कर मोबाइल हाथ में आते ही मानों दीन-दुनिया भुला देते हैं। फिर चाहे उन्हें अपने प्राण ही क्यों न गंवाने पड़ें। युवाओं की इस दशा पर कटाक्ष करते हुए कपिल बैसाखिया ने ये दोहे लिखे हैं -
    बाल गये, चमड़ी गई, सूख गया है मांस।
    फोन न छूटा हाथ से, उखड़ गई है सांस।।
    गर मोबाइल यंत्र को , सदा रखो तुम थाम।
अस्थिपंजर निकल पड़े, मिलता यह परिणाम।।
कपिल बैसाखिया के दोहों में विषय की विविधता के क्रम में उनके चाय पर दोहे भी उल्लेखनीय हैं। ये बानगी देखें -
    देती सबको ताजगी, गरम-गरम ये चाय।
    पी कर इसको जन सभी, मंद-मंद हर्षाय।।
    आधे कप-मग चाय की, फरमाइश चहुं ओर।
    मिलती जल्दी ताजगी, नाचे मन का मोर।।
सागर नगर के प्रतिष्ठित शासकीय बहु उच्च माध्यमिक उत्कृष्ट विद्यालय से सेवानिवृत्त कपिल बैसाखिया ने अपने सेवाकाल में स्कूल की पत्रिका ‘’वाग्दम्बिका’’ का सफल सम्पादन किया। विद्यार्थियों के लिए पत्रिका की उपयोगिता को ध्यान मं रखते हुए महत्वपूर्ण विशेषांकों का सम्पादन किया। जैसे कैरियर मार्गदर्शन विशेषांक, जनसंख्या शिक्षा विशेषांक, जल संरक्षण, संवर्द्धन एवं उपयोगिता विशेषांक, ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत विशेषांक, वन्यप्राणी संरक्षण विशेषांक आदि। उल्लेखनीय है कि उनके सम्पादन काल में ‘’वाग्दम्बिका’’को राज्यस्तर पर अनेक बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुए।
कपिल बैसाखिया साहित्य साधना के साथ ही साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। वर्तमान में वे नगर की कला, साहित्य, संस्कृति, एवं भाषा के लियं समर्पित संस्था श्यामलम् के सचिव तथा पाठक मंच, सागर के सह केन्द्र संयोजक हैं। ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कपिल बैसाखिया का सामाजिक दायरा भी विस्तृत है, वे सदैव हर किसी के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं तथा यही प्रेरणा देते हैं कि उन्हीं के शब्दों में -
    हरदम रखिये हौसला, छोड़ें कभी न आस।
    बदलेंगे हालत फिर, धीरज रखियें पास।।

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(साप्ताहिक सागर झील दि. 10.07.2018)
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