प्रिय मित्रों,
स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र "सागर झील" में प्रकाशित मेरे कॉलम "साहित्य वर्षा" की सोलहवीं कड़ी में पढ़िए मेरे शहर सागर की साहित्यकार डॉ. सरोज गुप्ता पर मेरा आलेख । .... और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
साहित्य वर्षा - 16
डॉ. सरोज गुप्ता : बुंदेली विरासत के प्रति सजग साहित्यकार
- डॉ. वर्षा सिंह
बुंदेली धरती साहित्य और संस्कृति की धनी है। यहां की साहित्यिक, सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का कार्य कई विद्वान एवं संस्थाएं सतत् रूप से करती आ रही हैं। यह अपनी माटी के प्रति प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है कि वह अपनी माटी को भूमि का टुकड़ा मात्र मान कर अनदेखा न करे अपितु उसे अपनी जन्मस्थली मान कर उसे सहेजे, संवारे और उसके प्रति अपने कर्त्तव्यबोध का सदा जाग्रत रखे। अपनी क्षेत्रीय एवं जातीय संस्कृति को सहेजना भी अपनी माटी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के समान है। डॉ. सरोज गुप्ता एक ऐसी ही विदुषी हैं जो बुंदेली संस्कृति एवं साहित्य को सहेजने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। 20 जुलाई 1963 को बड़ागांव, झांसी, उत्तरप्रदेश में जन्मीं डॉ. सरोज गुप्ता ने बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी से एम.ए और बी.एड. करने के उपरांत डॉ. भगीरथ मिश्र के निर्देशन में पी.एचडी. उपाधि प्राप्त की। सागर डॉ सरोज गुप्ता का कर्मक्षेत्र है। वर्तमान में पंडित दीनदयाल उपाध्याय आर्ट एण्ड कामर्स कॉलेज के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत डॉ. गुप्ता के अब तक कई समीक्षाग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं- सियारामशरण गुप्त के काव्य में समाज एवं संस्कृति, बुंदेली संस्कृति एवं प्रमुख कवि, बुंदेली धरती सर्जना और सृजन, लोकजीवन में बुंदेलखण्ड तथा सृजन और समीक्षा आदि। उनका एक काव्य संग्रह ‘‘कालचक्र’’ भी प्रकाशित हुआ है। डॉ. गुप्ता ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन भी किया है, जिनमें प्रमुख हैं- प्रेमपराग, बुंदेली स्वास्थ्यपरक गीत, बुंदेलखण्ड के खेल गीत, अंक महिमाः-ज्ञान खजाना, पहेलियां, उदारचेता मनस्वी स्मृति ग्रंथ, मां, समय, बेटियां, मुक्तिबोध, अपनों के वातायन अभिनंदन ग्रंथ तथा सत्य से साक्षात्कार के कवि निर्मलचंद ‘निर्मल’ अभिनंदन ग्रंथ।
बुंदेलखण्ड के साहित्य और संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग रखने के कारण डॉ. सरोज गुप्ता ने बुंदेली बोली के शब्दों को सहेजने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए बुंदेली शब्दकोष का संपादन किया है। यद्यपि यह कार्य दुरूह था फिर भी अपनी लगन के बल पर डॉ सरोज ने इसे पूर्ण कर ही लिया। इस ग्रंथ ने उनके लेखकीय एवं संपादन दृष्टि को विशेष ऊंचाई प्रदान किया है। अपने कर्म क्षेत्र में सतत् क्रियाशील रहने वाली डॉ. सरोज गुप्ता अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार का संयोजन कर चुकी हैं। जिनमें रामकथा पर केंद्रित सेमीनार विशेष उल्लेखनीय हैं। उन्होंने रामकथा पर केन्द्रित दो शोध ग्रंथों का भी संपादन किया है।
विश्वहिन्दी सम्मेलन एवं सिंहस्थ वैचारिक महाकुंभ में सम्मिलित होने वाली डॉ. सरोज गुप्ता अब तक अनेक सम्मानों से सम्मानित हो चुकी हैं, जिनमें प्रमुख हैं - रिसर्च लिंक सम्मान वर्ष 2002-2003, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग प्रशस्ति पत्र 2006, मैत्री पुरस्कार आत्मीय विद्वत सम्मान 2006, भारतीय भाषा परिषद सम्मान उज्जैन 2006, महादेवी स्मृति सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग 2007, नेशनल अवार्ड एवं राष्ट्र सेवा नेशनल अवार्ड, अखिल भारतीय नारी प्रगति मंच सागर 2009, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा राजस्थान 2010, विशिष्ट हिन्दीसेवी सम्मान जे.उम.डी. पब्लीकेशन 2010, स्वामी विवेकानेद सम्मान नगर विधायक श्री शैलेन्द्र जैन द्वारा 2013, म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन शाखा सागर पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी सम्मान 2013, राव बहादुर सिंह बुंदेला सम्मान बुंदेली विकास संस्थान बसारी छतरपुर म.प्र. 2014 आदि।
बुंदेली संस्कृति के बारे में डॉ सरोज गुप्ता का कहना है कि -‘‘लोकजीवन अनादिकाल से अनन्तकाल तक मानव जीवन यात्रा में प्रवाहमान है। बुंदेलखण्ड साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।विविधता यहां की विशिष्टता है। बुंदेली धरती पर वीर, श्रृंगार, भक्ति एवं करुण रस की धरा एक साथ प्रवाहित हुई है। वैद्यक, ज्योतिष, कृषि, धर्म, दर्शन, आध्यात्म, समाज, संस्कृति एवं दैनिक लोक व्यवहार संबंधी नीति, उपदेशपरक रचनाएं, अथाह साहित्य भंडार इस क्षेत्र की विरासत है।’’
डॉ सरोज गुप्ता ने बुंदेली विरासत को लेखबद्ध करने के लिए उसकी विशेषताओं को निकट सेअनुभव करने का प्रयास किया है। इस संबंध में वे कहतीं हैं कि ‘‘मैंने शासकीय ऐवा में कार्यरत रहते हुए लघु शोध एवं वृहद शोध परियोजना के दौरान बुंदेलखण्ड के मूक साधकों को महत्वाकांक्षाओं की बलि दे कर समुद्र की तरह फैले गांवों के हृदय में डुबकी लगाते हुए, लोक जीवन को अनुपम रत्नों से सजाते, संवारते हुए देखा है।’’
बुन्देली संस्कृति को देखने और परखने की डॉ सरोज गुप्ता का अपना अलग दृष्टिकोण हैं। जब वे लोक की बात करती हैं तो उनकी दृष्टि में व्यष्टि और समष्टि एकाकार हो कर एक नहीं परिभाषा गढ़ता है जिसमें लोक अपने समग्र के साथ प्रस्तुत होता है। जैसाकि पुस्तक ‘हमारा बुन्देलखण्ड’ में ‘अपनी बात’ के अंतर्गत् डॉ. गुप्ता ने लिखा है कि ‘‘भारत के मानचित्र पर अंकित बुन्देलखण्ड का विशेष महत्व है। इसका अतीत उन्नतशील, समुज्ज्वल तथा गौरवशाली है। यह वही बुन्देलखण्ड है जहां वेदों, उपनिषदों के ऋषियों- महर्षि व्यास, वाल्माकि, पाराशर, विश्वामित्र, अत्रि, द्रोण, जमदाग्नि व ऋषि याज्ञवल्क्य जैसे चिन्तक मनीषियों ने अपनी साधना की चमक बिखेरी है। जहां कण-कण में चिन्तन की कोई न कोई चिनगारी छिपी हुई है। जहां चरवाहा, हलवाहा, खेतिहर, मजदूर भी वेदान्त बोलता है। जहां गांव-गांव, गली-गली में किसी न किसी उत्सर्ग का चौरा स्थापित है। बुन्देलखण्ड भारत का हृदयस्थल है। यहां की सांस्कृतिक परम्परा अत्यंत समृद्धशाली रही है।’’
डॉ. सरोज गुप्ता की लेखकीय यात्रा के सुचारु रूप से चलते रहने में उनके पति डॉ. हरिमोहन गुप्ता का सदैव सहयोग रहा। यद्यपि डॉ. हरिमोहन गुप्ता फॉरेन्सिक साईन्स लेबोरेटरी सागर में सीनियर साइन्टिफिक ऑफीसर रहे हैं और वे स्वयं साहित्य सृजन में दखल नहीं रखते हैं किन्तु उन्होंने अपनी जीवनसंगिनी डॉ. सरोज को प्रोत्साहित किया। बुन्देली विरासत के प्रति डॉ सरोज गुप्ता का अनुराग एवं सजगता उन्हें सागर नगर के एक विशिष्ट साहित्यकार के रूप में रेखांकित करती है।
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(साप्ताहिक सागर झील दि. 19.06.2018)
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