कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
जाने कितना लिख्खा मैंने जाने कितना बांचा मैंने. 📖 आड़ी तिरछी इस दुनिया में ढूंढा अपना खांचा मैंने.
दागरहित जो दिखा हमेशा वही फरेबी निकला अक्सर, बदनामी जिसके सिर चिपकी उसको पाया सांचा मैंने.
📚 - डॉ. वर्षा सिंह
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