शुक्रवार, मार्च 23, 2018

शहीद दिवस पर ग़ज़ल

चल दिये थे वो अकेले, काफ़िला देखा नहीं
देश को देखा था, अपना फ़ायदा देखा नहीं

बांध कर सिर पर कफ़न निकले थे जो बेख़ौफ़ हो
मंज़िलों पर थी नज़र फिर रास्ता देखा नहीं

देश को आज़ाद करने का ज़ुनूं दिल में लिए
हंस के बंदी बन गये थे, कठघरा देखा नहीं

उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं

राजगुरु, सुखदेव, "वर्षा", भगत सिंह, आज़ाद ने
आंधियों में आशियों का आसरा देखा नहीं

  -  डॉ. वर्षा सिंह

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