आज दुष्यंत कुमार की पुण्यतिथि 30 दिसम्बर पर सन् 2010 में लिखी एवं एक समारोह में पढ़ी अपनी यह ग़ज़ल यहां प्रस्तुत कर रही हूं।
दुष्यंत की ग़ज़ल
आवाम की आवाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
पीड़ित दिलों का साज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
पीड़ित दिलों का साज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
हिन्दी में ग़ज़ल को दिया पहचान अलग से
हिन्दी जगत की नाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
हिन्दी जगत की नाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
सच बोलने का हौसला, सबके दिलों में हो
सच का ही इक रिवाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
सच का ही इक रिवाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
साकी, शराब, इश्क़ से बाहर निकाल कर
देती नई परवाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
देती नई परवाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
सहरा में जैसे ‘वर्षा’, मावस में रोशनी
सबसे अलग अंदाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
सबसे अलग अंदाज़ है, दुष्यंत की ग़ज़ल
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