एक बरस के बाद फिर, आया है आषाढ़ ।
प्रकृति-हृदय में आ गई, खुशहाली की बाढ़ ।।
प्रकृति-हृदय में आ गई, खुशहाली की बाढ़ ।।
जंगल होंगे फिर हरे, नये खिलेंगे फूल ।
अब ढूंढे से भी नहीं, कहीं दिखेगी धूल ।।
अब ढूंढे से भी नहीं, कहीं दिखेगी धूल ।।
"वर्षा" की ऋतु आ गई, बरसन लागे मेह ।
धरती हरियाने लगी, भीगी सूखी देह।।
धरती हरियाने लगी, भीगी सूखी देह।।
गीतों में फिर ढाल कर, कहना मन की बात।
रिमझिम का संगीत है, "वर्षा" के दिन- रात ।।
रिमझिम का संगीत है, "वर्षा" के दिन- रात ।।
❤ - डॉ वर्षा सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
जवाब देंहटाएंरविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक आभार 🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३१ 'पावस ऋतु' (चर्चा अंक -३७७४) पर भी होगी
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अरे वाह, वास्तव में अत्यंत सुखद समाचार
हटाएंहार्दिक आभार अनीता सैनी जी 🙏
बहुत धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंवर्षा ऋतु पर लाजवाब दोहे
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे दोहे |
बहुत सुंदर दोहे आदरणीया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे । हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे।
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