रविवार, मार्च 25, 2018

क्या किया सोचो कभी तो

बेबसी में ज़िन्दगानी
बोतलों में बंद पानी

काटना होगा जो बोया
है यही चिंता पुरानी

नीर के स्त्रोतों से कब तक
और होगी छेड़खानी

कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रही जो आज धानी

गर नहीं सत्ता रहेगी
कौन राजा, कौन रानी !

क्या किया, सोचो कभी तो
गुम कुंआ, नदिया सुखानी

काटना होगा जो बोया
रीत दुनिया की पुरानी

रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी

- डॉ. वर्षा सिंह

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