डॉ. वर्षा सिंह |
दो बुंदेली ग़ज़लें
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- डॉ. वर्षा सिंह
एक
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काय चांद पर धब्बा देखत
आग पराई तुम का सेंकत
बिटिया कौन गली से जाएं
इते - उते हैं लपरा छेंकत
कोनउ को ना फिकर काऊ की
सबई इते हैं पासा खेलत
मोड़ा तो हो गओ सहर को
इते मताई रस्ता हेरत
जिनखों हाथ बढ़ाओ चइये
बेई कुंआ में सबको ठेलत
ऊको दिल तो पथरा हुइये
अपनी मोड़ी खों जो बेंचत
धरे पटा पे लोई घांई
किस्मत हमखों रोजई बेलत
बदल रओ है मौसम सगरो
"वर्षा" जाने का-का झेलत
–--------–-----////------–---- ----
दो
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चुप ना रइयो मंझले कक्का
मन की कइयो मंझले कक्का
घर में सौचालय बनवा ल्यो
खुले ने जइयो मंझले कक्का
मोड़ी खों ने घरे बिठइयो
खूब पढ़इयो मंझले कक्का
मोड़ा पे सो नजर राखियो
फेर ने कइयो मंझले कक्का
ठोकर खा जो गिरत दिखाए
हाथ बढ़इयो मंझले कक्का
मुस्किल आए चाए कैसई
ने घबरईयो मंझले कक्का
ठाकुर बाबा पूजे "वर्षा"
दीप जलइयो मंझले कक्का
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- डॉ. वर्षा सिंह
एक
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काय चांद पर धब्बा देखत
आग पराई तुम का सेंकत
बिटिया कौन गली से जाएं
इते - उते हैं लपरा छेंकत
कोनउ को ना फिकर काऊ की
सबई इते हैं पासा खेलत
मोड़ा तो हो गओ सहर को
इते मताई रस्ता हेरत
जिनखों हाथ बढ़ाओ चइये
बेई कुंआ में सबको ठेलत
ऊको दिल तो पथरा हुइये
अपनी मोड़ी खों जो बेंचत
धरे पटा पे लोई घांई
किस्मत हमखों रोजई बेलत
बदल रओ है मौसम सगरो
"वर्षा" जाने का-का झेलत
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दो
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चुप ना रइयो मंझले कक्का
मन की कइयो मंझले कक्का
घर में सौचालय बनवा ल्यो
खुले ने जइयो मंझले कक्का
मोड़ी खों ने घरे बिठइयो
खूब पढ़इयो मंझले कक्का
मोड़ा पे सो नजर राखियो
फेर ने कइयो मंझले कक्का
ठोकर खा जो गिरत दिखाए
हाथ बढ़इयो मंझले कक्का
मुस्किल आए चाए कैसई
ने घबरईयो मंझले कक्का
ठाकुर बाबा पूजे "वर्षा"
दीप जलइयो मंझले कक्का
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बुंदेली बसंत - डॉ. वर्षा सिंह |
बुंदेली बसंत - डॉ. वर्षा सिंह |
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