मंगलवार, फ़रवरी 16, 2021

दोहाकारों की दृष्टि में वसंत | वसंतपंचमी की शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

दोहाकारों की दृष्टि में वसंत :

वसंत पर कुछ चुनिंदा दोहे

- डॉ. वर्षा सिंह


सरस्वती पूजन एवं वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏


प्रिय ब्लॉग पाठकों, प्रस्तुत हैं दोहाकारों की दृष्टि में वसंत के आज कुछ चुनिंदा दोहे….


1.



हे वाणी वरदायिनी


       -संदीप सृजन


हे वाणी वरदायिनी, करिए हृदय निवास।

नवल सृजन की कामना, यही सृजन की आस।।

 

मात शारदा उर बसो, धरकर सम्यक रूप।

सत्य सृजन करता रहूं, लेकर भाव अनूप।।

 

सरस्वती के नाम से, कलुष भाव हो अंत।

शब्द सृजन होवे सरस, रसना हो रसवंत।।

 

वीणापाणि मां मुझको, दे दो यह वरदान।

कलम सृजन जब भी करे, करे लक्ष्य संधान।।

 

वास करो वागेश्वरी, जिव्हा के आधार।

शब्द सृजन हो जब झरे, विस्मित हो संसार।।


हे भव तारक भारती, वर दे सम्यक ज्ञान।

नित्य सृजन करते हुए, रचे दिव्य अभिधान।।

 

भाव विमल विमला करो, हो निर्मल मति ज्ञान।

निर्विकार होवे सृजन, दो ऐसा वरदान।।

 

विंध्यवासिनी दीजिए, शुभ श्रुति का वरदान।

गुंजित होती दिव्य ध्वनि, सृजन करे रसपान।।

 

महाविद्या सुरपुजिता, अवधि ज्ञानस्वरूप।

लोकानुभूति से सृजन, रचे जगत अनुरूप।।

 

शुभ्र करो श्वेताम्बरी, मन:पर्यव प्रकाश।

मन शक्ति सामर्थ्य से, सृजन करे आकाश।।

 

शुभदा केवल ज्ञान से, करे जगत कल्याण।।

सृजन करे गति पंचमी, पाए पद निर्वाण।।

 

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2.


जीवित हुआ बसन्त
- डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"

अच्छे दिन आने लगे, हुआ शीत का अन्त।

धीरे-धीरे चमन में, सजने लगा बसन्त।।


नदियों में बहने लगा, पावन निर्मल नीर।

जल में डुबकी लगाकर, निर्मल करो शरीर।।


जीवन में उल्लास के, बहुत निराले ढ़ंग।

बलखाती आकाश में, उड़ती हुई पतंग।।


सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप।

शस्य-श्यामला धरा का, निखरेगा अब रूप।।


कुहरा सारा छँट गया, चमका भानु-प्रकाश।

भुवन-भास्कर भी नहीं, लेगा अब अवकाश।।


रजनी आलोकित हुई, खिला चाँद रमणीक।

देखो अब आने लगे, युव-युगल नजदीक।।


पतझड़ का मौसम गया, जीवित हुआ बसन्त।

नव पल्लव पाने लगा, बूढ़ा बरगद सन्त।।


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3.



सपने वासंती हुए


    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


सपने वासंती हुए, रंगों से भरपूर। 

ऐसे में कोई रहे, क्यों अपनों से दूर।।


खेतों में सरसों खिले, जंगल खिले पलाश ।

खजुराहो की भांति ऋतु, किसने दिया तराश ।।


दुख के दड़बे से निकल, सुख के दो पग नाप ।

पहले से दूना लगे, खुद को अपना आप ।।


तोता मैना कर रहे, 'ऋतुसंहारम्' याद ।

मौसम ने जो कर दिया, पोर-पोर अनुवाद ।।


उसी राह मिलने लगे, महके हुए बबूल।

जिस पर चलने से चुभे, विगत वर्ष में शूल।।


कागज, कलम, दवात का, आज नहीं कुछ काम ।

संकेतों से व्यक्त है मन की चाहत तमाम ।।


आशाओं की देहरी, जाग रही है आज ।

आहट गुजरी थी अभी, देकर इक आवाज़ ।।


वासंती दोहे 'शरद', खोलें दिल के राज़।

अपनापन मिलता रहे, चलते रहें रिवाज़।।


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4.



दिखे नहीं मधुमास


        -शिव कुमार 'दीपक'


बथुआ,खरपतवार पर,पड़े दवा की मार ।

तभी विषैला हो रहा, गेहूँ का आहार ।।


गेहूँ का मामा हुआ, इतना बड़ा दलाल ।

बिना काम के खा रहा, उसका सारा माल ।।


सरसों झूमे खेत में, पीली चादर ओढ़ ।

गेहूँ नैन लड़ा रहा, करने को गठजोड़ ।।


हुईं तरुण अब डालिया, मधुमय भरी जमीन ।

कलियाँ घूँघट खोलतीं, जैसे वधू नवीन ।।


कुसुम कली के कान में,मधुप सुनाएँ राग ।

मस्त हुए रसपान में, लिपटे पदम पराग ।।


देख मंजरी आम पर,डर कर भागा शीत ।

खेतों दुधर बालियाँ , चिड़ियाँ गायें गीत ।।


नारी के शृंगार में, हो सकती है भूल ।

धरा सजाने प्रकृति में, खिलते ताजे फूल ।।


जीवन पतझड़ हो गया,दिखे नहीं मधुमास ।

बेकारी के दौर में, खुशियां रहा तलाश ।।


काँटे और गुलाब के,अलग-अलग हैं काम ।

एक दर्द को बाँटता, दूजा महक तमाम ।


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5.



   बसंंत बहार


            - पम्मी सिंह'तृप्ति'



नेह द्वार को खोलता, होली का त्योहार।

रिश्तों में उल्लास है, भावों में व्यवहार ।।


मस्त मलंग की टोलियां, गाते फाग बयार।

गलियों उड़ी गुलाल है, दिखी बसंत बहार।।


वीणा के स्वर छेड़ते, सुन कर राग मल्हार।

प्रीत रीत की राग से, गाये फाग बहार।। 


हुई राधिका बांवरी, रंगें अंग प्रत्यंग।

फगुनाहट की आहटें, तन मन हुआ मलंग।।


रंग बिरंगी ओढ़णी, लहरा कर बलखाय।

कोयल की कुहुकार से, अमराई इतराय ।।


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6.



आई बसंत बहार


      - सुमन अग्रवाल “सागरिका”


पीत चुनरिया ओढ़कर, आई बसंत बहार।

धरा वासंती हो गई,…कर सोलह श्रंगार।।


सूर्य उदित अब हो गया, भोर हुई अब जाग।

चहचहाती चिड़ियाँ भी, करती कलरव राग।।


पतझड़ का मौसम हुआ,…पत्ते गिरे हजार।

नव-पल्लव अंकुरित हुए, आई नयी बहार।।


पीली सरसों खेत में, गेंदा, पुष्प, पलास।

रंगोली सज रही यहाँ, मन में हर्षोल्लास।।


गुंजन करती तितलियाँ, भौरों का आगाज।

फुलवारी चहुँओर है, पीत सजा वनराज।।


धरा बसंतमय हो गई, खुशहाली चहुँओर।

बारिश का मौसम हुआ, वन में नाचे मोर।।


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7. 



ऋतु बसंत में


      -संजीव ‘सलिल’


स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित हैं कचनार.

किंशुक कुसुम विहंस रहे या दहके अंगार..


पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार.

पवन खो रहा होश है, लख वनश्री श्रृंगार..


महुआ महका देखकर, बहका-चहका प्यार.

मधुशाला में बिन पिए’ सर पर नशा सवार..


नहीं निशाना चूकती, पञ्च शरों की मार.

पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार..


नैन मिले लड़ झुक उठे, करने को इंकार.

देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार..


मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार.

ऋतु बसंत में मन करे, मिल में गले, खुमार..


ढोलक टिमकी मंजीरा, करें ठुमक इसरार.

तकरारों को भूलकर, नाचो गाओ यार..


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8.



ऋतु बसन्त

- बाबू लाल शर्मा "बौहरा"


आता है ऋतुराज जब,पछुवा चले समीर।

सूर्य ताप लगने लगे, कामदेव के तीर।।


तरुवर सर्वस दान दें, राजा कर्ण समान।

प्रेरित करे समाज को,मानव करना दान।।


जो भी संभव दान दो, विद्या,धन अरु नेह।

अन्न वस्त्र सद्भावना, सरस सनेही मेह।।


मातु शारदे सुमिर के, अक्षर अक्षर दान।

दान करे विद्या बढ़े, नित नूतन सम्मान।।


तरुवर जैसे फिर मिले, नव तुरंत सौगात।

फूल फलोंं से तरु सजे,हरषे नवल प्रभात।।


दिया दूर जावे नहीं, कहता यही बसंत।

दान पुण्य सुकर्म कर,कहते गुरुजन संत।।


कर्म फले मानस भले, यही सनातन रीत।

ऋतु बसन्त के आगमन,सत्य सनेही प्रीत।।


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9.



आया है मधुमास


      -सुनीता बिश्नोलिया


भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस।

सबके खातिर रंग ले, आया है मधुमास।।


चूनर ओढ़े प्रीत की,वसुधा रही लजाय।

देख वसंती साजना,रोम-रोम खिल जाय।।


माँ वसुधा मुस्का रही,देखे रंग हजार।

ऋतु बसंती आ गई, लेकर संग बहार ।।


सौरभ से महके धरा,सुमन खिले हैं अंक।

मात धरा की नजर में, सम हैं राजा-रंक ।।


खग भी कलरव कर रहे,बैठ विटप की डाल।

वन - उपवन फुल्लित हुए,पुष्प सजे तरुभाल।।


मंद -पवन यों चल रही,ज्यों सरगम के साज।

करते स्वागत सुमन हैं,आओ जी ऋतुराज।।


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10. 



फिर वसंत है ट्रेंड में


      - डॉ. वर्षा सिंह


सबकी अपनी चाहतें, सबके अपने फ्रेम।

फिर वसंत है ट्रेंड में, हैशटैग में प्रेम।।


अर्थहीन सम्वाद पर,  होता डाटा खर्च।

यूनिक मैसेज के लिए, गूगल करते सर्च।।


युवा नहीं पहचानते, सेमल और पलाश।

नेट-चैट पर है टिकी, उनकी सकल तलाश।।


कुहरे के संजाल में, धरती थी बेहाल।

शीतलहर भी पूछती, हंस कर पूरा हाल।।


कोरोना के त्रास में, गुज़रा पूरा साल ।

वैक्सीन ले आ गई, आशा भरा गुलाल।।


जंगल हरियाले हुए, बाग हुए रंगीन।

सरसों फूली खेत में, शहर स्वयं में लीन।।


धीरे-धीरे बढ़ रहा, सूरज वाला ताप ।

कानों में पड़ने लगी, फागुन की पदचाप।।


मुक्ति रजाई से मिली, हुई कुनकुनी धूप।

निखरा-निखरा लग रहा, मौसम का यह रूप।।


माघ शुक्ल की पंचमी, प्रकृति करे श्रृंगार ।

वर देती वागीश्वरी, विद्या का उपहार।।

  

"वर्षा" की शुभकामना, रहें सभी ख़ुशहाल।

अपनेपन का, प्रेम का, मौसम रहे बहाल।।


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#वसंत #बसंत #वसन्त #वसंतपंचमी #दोहेे #दोहा #माघपंचमी #शुभकामनाएंं #सरस्वती #ऋतुराज #मधुमास

रविवार, फ़रवरी 14, 2021

दस दोहे वसंत पर | फिर वसंत है ट्रेंड में, हैशटैग में प्रेम | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

दस दोहे वसंत पर :  

    फिर वसंत है ट्रेंड में, हैशटैग में प्रेम

                      - डॉ. वर्षा सिंह

सबकी अपनी चाहतें, सबके अपने फ्रेम।
फिर वसंत है ट्रेंड में, हैशटैग में प्रेम।।

युवा नहीं पहचानते, सेमल और पलाश।
नेट-चैट पर है टिकी, उनकी सकल तलाश।।

अर्थहीन सम्वाद पर,  होता डाटा खर्च।
यूनिक मैसेज के लिए, गूगल करते सर्च।।

कुहरे के संजाल में, धरती थी बेहाल।
शीतलहर भी पूछती, हंस कर पूरा हाल।।

कोरोना के त्रास में, गुज़रा पूरा साल ।
वैक्सीन ले आ गई, आशा भरा गुलाल।।

जंगल हरियाले हुए, बाग हुए रंगीन।
सरसों फूली खेत में, शहर स्वयं में लीन।।

धीरे-धीरे बढ़ रहा, सूरज वाला ताप ।
कानों में पड़ने लगी, फागुन की पदचाप।।

मुक्ति रजाई से मिली, हुई कुनकुनी धूप।
निखरा-निखरा लग रहा, मौसम का यह रूप।।

माघ शुक्ल की पंचमी, प्रकृति करे श्रृंगार ।
वर देती वागीश्वरी, विद्या का उपहार।।
  
"वर्षा" की शुभकामना, रहें सभी ख़ुशहाल।
अपनेपन का, प्रेम का, मौसम रहे बहाल।।

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सोमवार, फ़रवरी 08, 2021

दस दोहे वृद्धजन पर | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh with her mother Dr. Vidyawati 'Malvika'

दस दोहे वृद्धजन पर

   

                   - डॉ वर्षा सिंह


वृद्धों की सेवा करें, वृद्धों का सम्मान ।

उनके आशीर्वाद से, मिलता हमको मान ।।


बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, रखिए निर्मल भाव ।

जीवन के हर मोड़ पर, दिखता सुखद प्रभाव ।।


ऐसे भी हैं वृद्धजन, जग में जो असहाय ।

उनसे नाता जोड़ कर, उनके बनें सहाय ।।


याद रखें जो हैं युवा, आयुवृद्धि अनिवार्य ।

कर पाएंगे वृद्ध हो, तिरस्कार स्वीकार्य ?


दर्पण को रख सामने, देखें ख़ुद का अक़्स ।

जो भीतर है क्या वही, बाहर भी है शख़्स ?


बड़े-बुज़ुर्गों के लिए, मन में श्रद्धाभाव ।

कभी न उनसे कीजिए, जीवनभर अलगाव ।।


वृद्धावस्था रुग्णता, कर देती लाचार।

किन्तु नम्र व्यवहार से, दें उनको उपहार।।


सहज न कलियुग में मिलें, ऐसे श्रवणकुमार ।

मातु-पिता हित हेतु जो, त्यागें सुख-संसार ।।


करुणा, मानवता, दया, आदर औ' सत्कार ।  

पाई मानव देह तो,  मुक्तहस्त उपकार ।।


अपने हों या ग़ैर हों, करिए सदा प्रणाम ।

मातु-पिता-चरणों तले, "वर्षा" चारों धाम ।।


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