Dr. Varsha Singh with Dr. (Miss) Sharad Singh |
सोमवार, मार्च 29, 2021
घरई में होरी मनाओ | होली | बुंदेली गीत | डॉ. वर्षा सिंह
रविवार, मार्च 28, 2021
होली का त्यौहार | दस दोहे होली के | डाॅ. वर्षा सिंह
दस दोहे होली के
होली का त्यौहार
- डाॅ. वर्षा सिंह
चढ़ कर यदि उतरे नहीं, होली वाला रंग ।
समझो इसमें है छुपा, बेशक़ प्रेम प्रसंग।। 1।।
सखी न पूछो - क्या हुआ ? क्यों चुनरी है लाल ?
अब कैसे तुमसे कहूं , अपने दिल का हाल ।। 2।।
ख़त कोई लिखता नहीं , मैसेज चलते आज।
मोबाइल पर खुल रहे, मन के सारे राज़ ।। 3।।
सूखी होली खेलना, पानी है अनमोल ।
व्यर्थ गंवाना ना इसे, समझो जल का मोल।। 4।।
टेसू, सेमल खोजना, रहा नहीं आसान।
ऊंची बनी इमारतें, हैं शहरों की शान ।। 5।।
दादी- नानी की कथा, अब सुनता है कौन !
क्यों जलती है होलिका ? बच्चे हैं सब मौन ।। 6।।
सबको अपना जानिए, छोड़ मान-अभिमान।
मुक्त हस्त करिये सदा, हंसी-ख़ुशी का दान ।। 7।।
मास्क लगाएं याद से, दूरी रखें ज़रूर।
गर्व कोरोना का हमें, करना होगा चूर ।। 8।।
माथे पर टीका लगे, गालों लाल गुलाल।
होंठों पर मुस्कान हो,मन का मिटे मलाल।। 9।।
‘‘वर्षा’’ हो सद्भाव की, बहे ख़ुशी की धा
तभी सार्थक हो सके, होली का त्यौहार।। 10।।
रविवार, मार्च 21, 2021
धरती के गीत | गीत | विश्व कविता दिवस | 21 मार्च | डॉ. वर्षा सिंह
शुक्रवार, मार्च 19, 2021
फागुन की सौगात | गीत | डॉ. वर्षा सिंह
Dr. Varsha Singh |
गीत
फागुन की सौगात
- डॉ. वर्षा सिंह
जब से आया है मधुमास
हुई जो खुशियों की बरसात।
यही है फागुन की सौगात।।
लाज भरा उषा-सा आंचल, शबनम से गहने
सूरज पर न्योछावर सुधियां, चंदा पर सपने
नेहा से सराबोर हैं दिन
प्रणय से भीगी भीगी रात।
यही है फागुन की सौगात।।
हर पल माणिक, हर पल मुक्ता, हर पल है सोना
तृप्ति-प्यास का अद्भुत संगम, पाकर क्या खोना !
निखरता रंगों का उल्लास
निकलती खुशियों की बारात।
यही है फागुन की सौगात।।
बांहों के घेरे ने लिख दी, बंधन की कविता
होठों के तटबंध तोड़ती, गीतों की सरिता
बहती पोर-पोर रसधार
हुई जो रंग-रंगीली बात।
यही है फागुन की सौगात।।
------------------
सोमवार, मार्च 08, 2021
औरत | 08 मार्च | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह
Dr. Varsha Singh |
औरत
-डॉ. वर्षा सिंह
मां, बेटी, बहन, सहेली हूं, बेशक़ मैं तो इक औरत हूं।
पत्नी, भाभी ढेरों रिश्ते, मैं हर इक घर की इज़्ज़त हूं।
अपनी करुणा से मैंने ही, इस दुनिया को सींचा हरदम,
बंट कर भी जो बढ़ती जाती, ऐसी ममता की दौलत हूं।
राधा, मीरा, लैला बन कर, मैं चली प्रेम की राहों पर,
बन कर दुर्गा काली मैं ही, दुष्टों के लिये क़यामत हूं।
मैं सहनशीलता, धीरज का, पर्याय सदा बनती आई,
संकट का समय रहा जब भी, मैं बनी स्वयं की ताकत हूं।
"वर्षा", सलमा, सिमरन, मरियम, हो नाम भले कोई मेरा,
कह लो औरत, महिला, वूमन, आधी दुनिया की सूरत हूं।
----------------------