लेख
ओ रे, पाऊने बसंत...
तुमाये आबे की...!
- डॉ. वर्षा सिंह
ओ रे पाऊने बसंत...!!! तुमाये आबे की खबर
हमें लग गई। इत्ते दिना कहां रये ? ... तुमें हमाई तनकउ खबर ने
आई ? बाकी हमने तो तुमें खूबई याद करो। काय से के पूस को जड़कारो...ओ
जड़कारो ऐसो के -
कन्हैया बिना, कौन हरे मोरी पीरा। पूस मास में ठंड जो ब्यापे,
माघ में हलत सरीरा।।
जंगल, गांव, सहर सबई को हाल बुझो-बुझो सो हतो। ने कोउ रंग, ने कोउ ढंग।
जबईं देखो, धुंधयारो सो छाओ रहत तो। कोउ को कछु काम में जी न लगत तो। तुम आए तो
तनक ढाढस बंधी। भुनसारे से कोयल के बोल, कानों में रए मिसरी सी घोल....मौसम को
कछु-कछु होन लगो, सोत-सोत सो मनो सूरज जगो। अमुआ बौरा गए, टेसू औ सेमल फूलन लगे।
ढुलकिया की थापें औ रमतूला की टेरें, सगोना को मनो कामदेव घेरें। जेई लाने कहनात आए – ‘आम के ब्याओ में सगौना फूलो’।
इते चलन लगी बयार फगुनाई की, उते ठुमरी, चकरी, गिरदी होन लगी राई की। रागें
औ फागें, बधाओ औ ढिमरियाई, जे सब बुंदेलन ने नोनी चलाई, काए से के बसंत ! तुमाई
रुत आई। औ जोन जे तुमाई रुत आई तो जो लगो के पद्माकर ने कही रही सांची -
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में।
बनन में, बागन में बगरो बसंत है।।
अब जो सबई ओर दिखत हो तुमई तुम, सो आ रईं
याद ईसुरी की जे लकीरें -
अब रुत आई बसंत बहारन,
पान फूल फल डारन।
कपटी कुटिल कंदरन बहिं,
गई वैराग बिगारन।।
कोऊ कहत है-‘‘आ गओ बांको बसंत’, तो कोऊ कहत है के ‘आ गओ बैरी बसंत’ ....। ओ पाऊने बसंत ! तुम
कोऊ के लाने कछु हो, तो कोऊ के लाने कछु। जोन के मन हरे-भरे, उनके लाने ‘बांके बसंत’। जोन के मन पीर भरे, उनके
लाने ‘बैरी बसंत’।
तुम जो आए तो फूलन की बहार लाए। सरस्वती मैया खों पूज रए लुगवा-लुगाईयां, जो
करी जाए बात आज के नए मोड़ा-मोड़ी की, सो ‘व्हाट्सएप्प’
पे चलन लगी तुमाए आबे की बधाइयां। भली करी आए जो तुम पाऊने बसंत....हो गओ सबकी
दुख-पीरा को अंत।
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