Dr. Varsha Singh |
परों में बांध कर हिम्मत, परिन्दे घर से निकले हैं।
करेंगे पार हर पर्वत, परिन्दे घर से निकले हैं ।
नहीं है ख़ौफ़ मौसम का, न कोई डर हवाओं का
उड़ानों की लिए चाहत, परिन्दे घर से निकले हैं।
चहकना है इन्हें हर हाल, हों हालात कैसे भी
भले ही मन रहे आहत, परिन्दे घर से निकले हैं।
न कोई वास्ता नफ़रत, सियासत, शानोशौकत से
मुहब्बत की लिए दौलत, परिन्दे घर से निकले हैं।
सुबह से सांझ तक "वर्षा", रहेगी खोज तिनके की
मिले चाहे नहीं राहत ,परिन्दे घर से निकले हैं।