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बुधवार, जनवरी 30, 2019

ग़ज़ल ... परिन्दे घर से निकले हैं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


परों में बांध कर हिम्मत, परिन्दे घर से निकले हैं।
करेंगे  पार  हर  पर्वत, परिन्दे घर से निकले हैं ।

नहीं है ख़ौफ़ मौसम का, न कोई डर हवाओं का
उड़ानों की लिए चाहत, परिन्दे घर से निकले हैं।

चहकना है इन्हें हर हाल, हों हालात कैसे भी
भले ही मन रहे आहत, परिन्दे घर से निकले हैं।

न कोई वास्ता नफ़रत, सियासत, शानोशौकत से
मुहब्बत की लिए दौलत, परिन्दे घर से निकले हैं।

सुबह से सांझ तक "वर्षा", रहेगी खोज तिनके की
मिले चाहे नहीं राहत ,परिन्दे घर से निकले हैं।



गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह



शान तिरंगा है, अपनी आन तिरंगा है ।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

नहीं झुका है सिर भारत का
नहीं झुकेगा ये,
विश्वपटल पर गुरु गरिमा से
दिव्य बनेगा ये,
देशभक्ति गौरवगाथा का गान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

हम भारत के वासी,
हमको निर्भय रहना है,
अपनी आजादी को हरदम
अक्षुण्ण रखना है,
हर इक भारतवासी का अभिमान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

लोकतंत्र की सदा आरती
तन-मन से की है,
संविधान की पंक्ति-पंक्ति को
अदरांजलि दी है,
अमृत है गणतंत्र और वरदान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है

"वर्षा" हमने जन्मभूमि को
मां का मान दिया,
वीरों ने अपना जीवन
इस पर कुर्बान किया,
रहे सदा सबसे ऊंचा अरमान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।
                          -डॉ. वर्षा सिंह
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रविवार, जनवरी 13, 2019

कवि सम्मेलन - मुशायरे में डॉ. वर्षा सिंह का ग़ज़लपाठ


Dr. Varsha Singh
   सागर नगर की अग्रणी साहित्यिक संस्था हिन्दी-उर्दू मजलिस द्वारा आज दिनांक 13.01.2019 को आयोजित कवि सम्मेलन - मुशायरे में मैंने यानी डॉ. वर्षा सिंह ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी.... Please Listen & Share .


बुधवार, जनवरी 02, 2019

कथाओं के पंख होते हैं ... डॉ. वर्षा सिंह


कथाओं के पंख होते हैं
उड़ती फिरती हैं
ध्रुवों से भूमध्य रेखा तक
उत्तरी से दक्षिणी गोलार्ध तक ...
पूरी पृथ्वी पर
समयबंधन मुक्त
आदिकाल से अनादिकाल तक
उड़ती फिरती हैं कथायें.

ईश्वर ने बनाया हमें नश्वर
लेकिन हमने बनायी कथायें अनश्वर
जीव, मनुष्य, वनस्पति, पृथ्वी, अंतरिक्ष
और तो और
ईश्वर की कथायें अनश्वर
... और लगा दिये उनमें पंख

तभी तो
समयबंधन मुक्त
आदिकाल से अनादिकाल तक
उड़ती फिरती हैं कथायें
कथाओं के पंख होते हैं.
      - डॉ. वर्षा सिंह