बुधवार, फ़रवरी 28, 2018

साहित्य वर्षा - 1 - कवि ‘निर्मल’ के दोहों में पर्यावरण चिन्तन - डॉ. वर्षा सिंह


       स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र "सागर झील" में प्रकाशित मेरा कॉलम "साहित्य वर्षा" । जिसकी पहली कड़ी में मेरे शहर सागर के वरिष्ठ कवि 'निर्मल' के दोहों में पर्यावरण चिंतन। पढ़िए और मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को जानिए ....
साहित्य वर्षा - 1
कवि ‘निर्मल’ के दोहों में पर्यावरण चिन्तन
  - डॉ. वर्षा सिंह
पर्यावरण हमारी पृथ्वी के अस्तित्व का आधार है। जब तक पर्यावरण अपने संतुलित रूप में विद्यमान है तब तक पृथ्वी पर जीवन का क्रम सतत् रूप से चलता रहेगा। प्रगति के नाम पर हमने अपने आवासीय क्षेत्रों का इतना विस्तार किया कि हमारे गांव और शहर अपने प्रदूषणमय वातावरण के साथ वनक्षेत्रों पर अतिक्रमण करते चले गए। परिणाम यह हुआ कि जंगल कटते चले जा रहे हैं, वन्यपशु निराश्रित हो रहे हैं और हम कांक्रीट का मरुथल फैलाते चले जा रहे हैं। पर्यावरण के इस असंतुलन के कारण ऋतुओं ने अपना समय बदल लिया है। बारिश का समय कम हो गया है और तपन भरे सूखे का विस्तार होता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी के सरोकारों में यदि सबसे बड़ा कोई सरोकार है तो वह निश्चित रूप से वह पर्यावरण ही है। बचपन से हम सुनते और गुनते आ रहे हैं कि जल ही जीवन है फिर भी जल संरक्षण के प्रति हम इतने लापरवाह हो चले हैं कि कुंए, तालाब जैसे जलस्रोत गंदे और उथले हो गए हैं और नदियां सूखने लगी हैं। सम्पूर्ण विश्व आज निरन्तर बढ़ते ‘पर्यावरण-प्रदूषण की विभीषिका’ से संत्रस्त है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण प्रकृतिक असंतुलन अपने चरमशिखर की ओर बढ़ चला है। इसीलिए आज विश्व में पर्यावरण चिन्तन का प्रमुख बिन्दु बन गया है।
सदियों से भारतीय मनीषियों ने प्रकृति के आश्रय में रहकर वेद उपनिषद आरण्यक, ब्राह्मण, भाष्य, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ रचे हैं। हमारे पूर्वज प्रकृति के संरक्षण एवं पर्यावरण संतुलन को ले कर बहुत सजग थे। उस समय वनस्पति को काटते समय यह प्रर्थना की जाती थी कि उसमें अनेक स्थानों पर फिर से अंकुर फूटें। इस संबंध में यजुर्वेद संहिता (5.43) में यह श्लोक मिलता है-
अयं हित्वा स्वाधितिस्तेतिजानः प्रणिनाय महते सौभाग्याय
अतस्त्वं देव वनस्पते षतवल्सो, विरोहसहस्त्रंवल्या विवयं रुहेम।।
ऋषि-मुनियों का वृक्षादि वनस्पतियों से अपार प्रेम रहा है। रामायण और महाभारत में वृक्षों-वनों का चित्रण पृथ्वी के रक्षक वस्त्रों के समान प्रदर्शित है, महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् में प्रकृति शकुन्तला की सहचरी से दिखती हैं ,वहीं मनुस्मृति आदि धर्मग्रन्थों में स्वार्थ के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटना पाप घोषित किया गया है। अनाश्यक रूप से काटे गये वृक्षों के लिए दण्ड का विधान है। मत्स्यपुराण में वृक्ष महिमा का वर्णन करते हुए दस पुत्रों के समान एक वृक्ष को महत्व दिया गया है।
पर्यावरण की उपयोगिता उसके बढ़ते महत्व को सृजनकारों द्वारा विविध माध्यमों से रेखांकित किया जाता रहा हैं। कविता का सम्बन्ध चूंकि मानव हृदय से है इसलिए प्रकृति की सहचरी कविता अपने विविध रंग-रूपों में सदियों से रही है। दोहों में पर्यावरण चिन्ता आज के रचनाकार सम्भवतः इस लिए अधिकाधिक व्यक्त कर रहे हैं कि छोटा सा दोहा छन्द आदमी की स्मृति में सरलता से बस जाता है। कवि निर्मल चन्द ‘निर्मल’ अपने समय के एक गहनचिन्तनशील एवं सजग रचनाकार हैं। यू ंतो उन्होंने काव्य की लगभग सम्पूर्ण विधाओं में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है किन्तु उनके दोहे भावनाओं की विलक्षण संप्रेषणीयता रखते हैं। कवि ‘निर्मल’ समकालीन समस्याओं को एक विमर्श के रूप में अपने दोहों में पिरोते हैं जिन्हें पढ़ कर कोई भी व्यक्ति चिन्तन किए बिना नहीं रह सकता है। सन् 1931 की 06 मार्च को जन्में वरिष्ठ कवि ‘निर्मल’ अपने जीवन के दीर्घ अनुभवों के आधार पर सप्रमाण संवाद करते हैं। उन्होंने जंगल को विषय के रूप में चुन का अनेक दोहे लिखे हैं। कुछ दोहों की बानगी देखिए जिनमें अतीत और वर्तमान के वनसंपदा की महत्ता का सुंदर वर्णन है -
चरोखरों की सभ्यता, पशुपालन व्यवसाय।
काष्ठशिल्प उद्योग की, दिन प्रति उन्नत आय।।
कवि ‘निर्मल’ ने सही कहा है कि यदि वनस्पतियां नहीं होतीं तो औषधियां भी नहीं होतीं। ये वनस्पतियां ही हैं जो हमें जीवनरक्षक औषधियां प्रदान करती हैं।-
जड़ी-बूटियों ने दिया, औषधियों का ज्ञान।
जंगल देते हैं हमें आत्मशुद्धि वा ध्यान।।
ये व नही तो हैं जिन्होंने हमारे ऋषियों को आश्रय दिया और यहां तक कि हमारे देव-अवतारों को भी उनकी लौकिक-क्रीड़ा के लिए स्थान उपलब्ध कराया। श्रीराम और श्रीकृष्ण के अवतारों का संदर्भ देते हुए कवि ने वनसंपदा की उपादेयता को अनूठे ढंग से सराहा है-
राम रहे चौदह बरस, रघुकुल के आदित्य।
कुटियों की शोभा घनी, मुनियों का संग नित्य।।
धेनु चरैया कृष्ण जी, वन खण्डों के बीच।
ऋषि मुनियों की स्थली, विश्वामित्र, दधीच। 
वन पर्यावरण को संतुलन प्रदान करते हैं और यही वन अने जीवों को आश्रय भी देते हैं। आज हम आए दिन ऐसे समाचार सुनते और पढ़ते रहते हैं कि फलां गांव में तेंदुआ घुस आया तो फलां गांव में शेर ने किसी आदमी को मार डाला। यह सोचने का विषय है कि वन्यपशु अपना आवास छोड़ कर गांवों की ओर क्यों रुख करते हैं? एक बेघर, भूखा-प्यासा जीव कहीं तो जाएगा न। यदि वन नहीं रहेंगे तो वन्य पशु-पक्षी कहां रहेंगे? यह चिन्ता कवि के मन को सालती है और यह दोहा मुखर होता है-
मोर, पीहा, रीछ कपि, शेरों का आवास।
छेड़ें क्यों वन खण्ड को, पशुओं का मधुमास।।
जंगलों के कटने और वन्य प्शुओं के बेघर होने को ले कर कवि के मन में कोई दुविधा नहीं है। कवि को भली-भांति पता है कि यह कृत्य किसने किया है। यह दोहा देखिए-
कृत्य आदमी ने किए, भाग्यवाद का नाम।
बर्बादी हो प्रगति हो, किसको दें इल्जाम।।
कवि ‘निर्मल’ ने वनसंपादा की महत्ता को समझाने का बारम्बार प्रयास किया है। वे चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के तत्वों के महत्व को समझे जिससे वह अपने विनाशकारी कदम रोक सके। कवि ‘निर्मल’ याद दिलाते हैं कि -
बाग-बगीचों की हवा और नीम की छांव।
बरगद का आशीष है, पीपल प्रभु का ठांव।।
रही निकटता नीर से, मानव पशु की जाति।
स्थावर के प्राण भी सब प्राणों की भांति।।
कवि ‘निर्मल’ मात्र अतीत अथवा भावुकता के संदर्भों के साथ ही जंगल के व्यावहारिक महत्व को भी प्रमुखता से गिनाते हैं-
जंगल जल के स्रोत हैं, करना नहीं विनष्ट।
सूखी धरती निर्जला, सदा भोगती कष्ट।।
उदधि नीर जल जीव का, बहुविध है आवास।
इनके बिना अपूर्ण है, संसारी इतिहास।।
कवि ने मानव जीवन के लिए अजैविक खनिज संपदा को भी वन द्वारा प्रदत्त बताते हुए वनों के महत्व को कुछ इस प्रकार प्रतिपादित किया है-
खनिज संपदा के धनी, पशु जीवन आधार।
प्राण वायु भंडार हैं, वन सबके उपकार।।
पर्वत, नदियां आदि भौगालिक सीमाएं तय करती रही हैं और मानव की विविध सभ्यताओं के विकास में सहायक रही हैं। इनकी सांस्कृतिक महत्ता भी है। इन तथ्यों कवि ने इन शब्दों में व्यक्त किया है कि -
विंध्याचल आरावली, हिम आलय बलवान।
ये रक्षक हैं देश के, इनमें भी हैं प्राण।।
गंगा यमुना नर्मदा, जल स्रोतों की खान।
ब्रह्मपुत्र और सिंधु पर, भारत को अभिमान।।
जल कुआ, तालाब, नदी, पोखर आदि चाहे जिस भी सा्रेत से प्राप्त हो, वह जीवनदायी ही होता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में जल की गणना पंचतत्वों में की गई है। इसके साथ ही पानी को मनुष्य की प्रतिष्ठा और मान-सम्मान का पर्याय भी माना गया है। जैसा कि रहीम ने कहा है- ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।’ इसी सच्चाई को कवि ‘निर्मल’ ने कुछ इस प्रकार कहा है -
पंच तत्व में है प्रमुख, उदक राशि का नाम।
इसने ही संभव किए, जन-जीवन के काम।।
जंगल से शुद्धिकरण, जड़ें पोषती नीर।
रक्षित करना लाजमी, पाने स्वस्थ शरीर।।
पानी है संसार में, सम्मानों का रूप।
उतरा पानी मनुष का, धूमिल हुआ स्वरूप।।
कवि ‘निर्मल’ ने पर्यावरण के औषधीय महत्व को भी अपने दोहे में बड़ी ही सुंदरता से प्रस्तुत किया है-
जड़ी-बूटियां छांट लें, उगे वनों के बीच।
गुण धर्मो को जान कर, लीजे जीवन सींच।।
किन्तु कवि को यह चिन्ता है कि मनुष्य इस बात से लापरवाह हो चला है कि वह अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए र्प्यावरण का एक भयावह स्वरूप छोड़े जा रहा है जिसमें जलसंकट प्रमुख है। आज यह कहा भी जाने लगा है कि यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह पानी के लिए ही होगा। प्रत्येक ग्रीष्म ऋतु आते ही जल संकट अपने चरम पर पहुंच जाता है फिर भी जलसंरक्षण के प्रति हम चेत नहीं रहे हैं। गंगा जैसी विशाल नदियों को हम मनुष्यों ने ही गंदा कर डाला है और अनगिनत जलस्रोत हैं जो हमारी लापरवाही की भेंट चढ़ गए हैं। इसीलिए कवि निर्मल कहते हैं कि हमारी लापरवाहियों को देख कर मानो प्रकृति भी भयभीत रहने लगी है। यह दोहा देखिए -
नदियां डरतीं मनुज से, डरे हुए हैं ताल।
सुखा न देना उदधि को,अरज करे बैताल।।
कवि निर्मल चन्द ‘निर्मल’ ने अपने दोहों में जिस प्रकार पर्यावरण के तत्वों की महत्ता को रेखांकित किया है तथा जिस गंभीरता से पर्यावरण के प्रति चिन्ता प्रकट की है वह उनकी दोहों को कालजयी बनाने में सक्षम है।
                    -----------------------
धन्यवाद सागर झील !
(साप्ताहिक सागर झील दि. 20.02.2018)
#साप्ताहिक_सागर_झील #साहित्य_वर्षा #वर्षासिंह #मेरा_कॉलम #MyColumn #Varsha_Singh #Sahitya_Varsha #Sagar #Sagar_Jheel #Weekly

मंगलवार, फ़रवरी 27, 2018

होली की दस्तक

होली दस्तक दे रही,
वन, आंगन, घर, द्वार ।
मन फगुनाया जोहता
रंगों का त्यौहार ।।

मौसम से करने लगी
चाहत नये सवाल ।
उड़ने को आतुर हुआ
सपनों भरा गुलाल ।

- डॉ. वर्षा सिंह


Hello Everyone

काम काज की बेला

शनिवार, फ़रवरी 17, 2018

Lecture & Poetry at Dr HariSingh Gour Central University , Sagar, MP

दिनांक 16.02.2018 को डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर  के हिंदी विभाग के नंददुलारे बाजपेयी सभागार में "समकालीन ग़ज़ल और अशोक मिज़ाज " विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें मैंने भी अपना व्यक्तव्य दिया। इस अवसर पर काव्य गोष्ठी भी हुई।
तस्वीरें उसी अवसर की....

Lecture & Poetry at Dr HariSingh Gour Central University , Sagar, MP

मंगलवार, फ़रवरी 13, 2018

महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

आज पूजन के पलों में
स्मरण शिव का करें
मां उमा की छवि नयन में
पूर्ण श्रद्धा से धरें
     होंगे पूरे सब मनोरथ
     होगी पावन भावना
     कर रही "वर्षा" हृदय से
     सर्व जन हित कामना

            🌷 - डॉ. वर्षा सिंह
 

सोमवार, फ़रवरी 12, 2018

मुक्त उजाला रहे सदा

कुण्ठा का तम घेर न पाये
मुक्त उजाला रहे सदा,
"वर्षा" रोशन रहे हर इक पल
कोसों दूर अंधेरा हो ।
     💕- डॉ. वर्षा सिंह

सिर्फ़ सुखों का फेरा हो

जहां -जहां भी जाये मनवा
अपनी चाहत को पाये,
इर्दगिर्द चौतरफा हरदम
ख़ुशियों वाला घेरा हो ।
आंसू दूर रहें आंखों से
होंठों पर मुस्कान बसे,
दुख ना आये कभी किसी पर
सिर्फ़ सुखों का फेरा हो ।
- डॉ वर्षा सिंह

फूल खिले तो

फूल खिले तो बिखरे ख़ुशबू
बिना किसी भी बंधन के,
रहे न दिल में कभी निराशा
उम्मीदों का डेरा हो ।
- डॉ वर्षा सिंह

Khwab adhura rahe na koi

इसीलिये सूरज डूबा है
कल फिर नया सबेरा हो ।
ख़्वाब अधूरा रहे न कोई
तेरा हो या मेरा हो ।
- डॉ. वर्षा सिंह

From My Book " Dil banjara...."

सोमवार, फ़रवरी 05, 2018

बाबूराव पिंपलापुरे स्मृति व्याख्यानमाला 2018

बाबूराव पिंपलापुरे स्मृति व्याख्यानमाला के बारहवें आयोजन में  "भारतीय विचार और हम" विषय पर सांसद एवं पूर्व राजदूत श्री पवन वर्मा ने अपने विचार साझा किए। जिसमें मैं डॉ. वर्षा सिंह एवं डॉ. (सुश्री) शरद सिंह शामिल हुए। व्याख्यान माला में भारतीय कला संस्कृति से जुड़े प्रख्यात विद्वानों को आमंत्रित कर उनके विचार रखे गए और उनसे संवाद भी हुआ। 

स्थान था रवींद्र भवन, सागर, म.प्र.
तस्वीरें उसी अवसर की...

#PavanK_Varma
#Baburao_Pimplapure