मंगलवार, अगस्त 22, 2017
सोमवार, अगस्त 21, 2017
शनिवार, अगस्त 19, 2017
ज़िन्दगी में.....
ज़िन्दगी में
बेवज़ह
कभी कुछ नहीं होता है.
कोई नफ़रतों के बाग में
इश्क़ बोता है.
कोई मुस्कुराहटों के बीच
आंसुओं से दुपट्टा भिगोता है.
ज़िन्दगी में
बेवज़ह
कभी कुछ नहीं होता है.
शुक्रवार, अगस्त 18, 2017
कविताएं
अक्षर-अक्षर जुड़ कर
बनते शब्द कई
शब्दों से मिल कर बनती है
पंक्ति नई
.....और पंक्ति दर पंक्ति बनी जब कविताएं
बही भाव और संवेगों की सरिताएं
- डॉ वर्षा सिंह
बुधवार, अगस्त 16, 2017
यादों के ठिकाने
कुछ लिफाफे
कुछ टिकटें
कुछ पुरानी चिट्ठियां
कुछ तस्वीरें
और कुछ डायरी के पन्ने
यादों के ठिकाने
पता नहीं कहां- कहां होते हैं
- डॉ वर्षा सिंह
यादों के ठिकाने....
कभी सोते हुए
कभी जागते हुए
अचानक, अप्रयास
सामने आ जाती हैं
बीते हुए दिनों की कतरनें
यादों के ठिकाने
पता नहीं कहां- कहां होते हैं
- डॉ वर्षा सिंह
मंगलवार, अगस्त 15, 2017
संघर्षों के बाद मिली है आज़ादी
संघर्षों के बाद मिली है आज़ादी
दिल की ले कर चाह पली है आज़ादी
हम भारत के लोग बढ़ाते क़दम जहां
परचम ले कर साथ चली है आज़ादी
- डॉ वर्षा सिंह
#IndependenceDayIndia
बुधवार, अगस्त 02, 2017
हम जहां पर हैं....
प्रिय मित्रों,
मेरे ग़ज़ल संग्रह " हम जहां पर हैं" में संग्रहीत मेरी एक ग़ज़ल..... Please read & share.
हम जहां पर हैं वहां विज्ञापनों की भीड़ है।
मोहपाशी छद्म के आयोजनों की भीड़ है।
अब नहीं पढ़ना सहज सम्पूर्णता से कुछ यहां,
मिथकथाओं की अपाहिज कतरनों की भीड़ है ।
किस तरह से हो सकेगा सर्वजनहित का कलन,
व्यक्तिगत रेखागणित के गोपनों की भीड़ है ।
शब्द कैसे हों प्रतिष्ठित, आइए सोचें जरा,
व्यर्थ के संकेत बुनते मायनों की भीड़ है।
"रात है" कह कर नहीं हल हो सकेगा कुछ यहां ,
रोशनी लाओ, अंधेरे बंधनों की भीड़ है।
टूटती अवधारणायें सौंप जाती हैं चुभन,
हर कदम रखना संभलकर, फिसलनों की भीड़ है।
श्रावणी लय से न "वर्षा" हो कहीं जाना भ्रमित,
छल भरे सम्मोहनी संबोधनों की भीड़ है।
- डॉ वर्षा सिंह