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सोमवार, मार्च 29, 2021

घरई में होरी मनाओ | होली | बुंदेली गीत | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh with Dr. (Miss) Sharad Singh

होली पर बुंदेली गीत

घरई में होरी मनाओ

           - डॉ. वर्षा सिंह

औरन दुआरे ने जाओ मोरी बिन्ना।
घरई में होरी मनाओ मोरी बिन्ना।।

जात-जात आ गओ, जो गिरमां खों तोड़ के 
नासमिटो कोरोना, भगईयो खचोड़ के

दो गज की दूरी रखाओ मोरी बिन्ना।
घरई में होरी मनाओ मोरी बिन्ना।।

बाहर निकरियो ने, मों रख के खुल्ला
इते-उते जाके ने, खइयो रसगुल्ला

घरई में गूझा बनाओ मोरी बिन्ना।
घरई में होरी मनाओ मोरी बिन्ना।।

सिनेटाइज कर के, लगइयो गुलाल खों
मास्क धरो मों पे, अब भूलो धमाल खों

जीवन सबई खों बचाओ मोरी बिन्ना।
घरई में होरी मनाओ मोरी बिन्ना।।

जी को जो सबरो, सो चाये पोसाय ना
दूरई से ले लईयो, "वर्षा" को बायना

दूरई से फगुआ सुनाओ मोरी बिन्ना।
घरई में होरी मनाओ मोरी बिन्ना।।


        इस वर्ष कोरोना आपदा के कारण हमारे क्षेत्र, हमारे मध्यप्रदेश में "मेरा घर-मेरी होली" के संदेश के साथ अपने घर में परिवार जन के साथ होली मनाई जा रही है। अतः मैं आज यहां ब्लॉग जगत में आ कर स्वयं को परिवार के सदस्यों के बीच महसूस कर रही हूं।
सभी ब्लॉग साथियों को होली पर्व पर वंदन...
अभिनंदन ...
रंग गुलाल का टीका-चंदन...
होली की ढेर सारी रंगबिरंगी शुभकामनाएं !!!
यथोचित आदर एवं स्नेह सहित,
डॉ. वर्षा सिंह

        ------------------
मेरे इस बुंदेली गीत को लोकप्रिय वेब पोर्टल "युवाप्रवर्तक" दि. 29.03.2021 में भी प्रकाशित किया गया है। अवलोकन हेतु लिंक यहां प्रस्तुत है -

#मेरी_होली_मेरा_घर
#हमाई_होली_हमाओ_घर
#होली #HappyHoli 
#जयबुंदेली #जयबुंदेलखण्ड
#गीतवर्षा #बुंदेली 
#कोरोना_को_हराना_है

रविवार, मार्च 28, 2021

होली का त्यौहार | दस दोहे होली के | डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

दस दोहे होली के 


होली का त्यौहार
                  - डाॅ. वर्षा सिंह

चढ़ कर यदि उतरे नहीं, होली वाला रंग ।
समझो इसमें है छुपा, बेशक़ प्रेम प्रसंग।। 1।।


सखी न पूछो - क्या हुआ ? क्यों चुनरी है लाल ?
अब कैसे तुमसे कहूं , अपने दिल का हाल ।। 2।।


ख़त कोई लिखता नहीं , मैसेज चलते आज।
मोबाइल पर खुल रहे, मन के सारे राज़ ।। 3।।


सूखी होली खेलना, पानी है अनमोल ।
व्यर्थ गंवाना ना इसे, समझो जल का मोल।। 4।।


टेसू, सेमल खोजना, रहा नहीं आसान।
ऊंची बनी इमारतें, हैं शहरों की शान ।। 5।।


दादी- नानी की कथा, अब सुनता है कौन !
क्यों जलती है होलिका ? बच्चे हैं सब मौन ।। 6।।


सबको अपना जानिए, छोड़ मान-अभिमान।
मुक्त हस्त करिये सदा, हंसी-ख़ुशी का दान ।। 7।।


मास्क लगाएं याद से, दूरी रखें ज़रूर।

गर्व कोरोना का हमें, करना होगा चूर ।। 8।।


माथे पर टीका लगे, गालों लाल गुलाल।
होंठों पर मुस्कान हो,मन का मिटे मलाल।। 9।।


‘‘वर्षा’’ हो सद्भाव की, बहे ख़ुशी की धा
तभी सार्थक हो सके, होली का त्यौहार।। 10।।


रविवार, मार्च 21, 2021

धरती के गीत | गीत | विश्व कविता दिवस | 21 मार्च | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों, विश्व कविता दिवस, 21 मार्च की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
विश्व कविता दिवस पर प्रस्तुत है मेरा एक गीत-

धरती के गीत
                    -डॉ. वर्षा सिंह

आज चलो गाएं ज़रा, धरती के गीत।।
          धरती के गीत, धरती के गीत।।

गीत प्रतिबंधों के, गीत अनुबंधों के
गीत संबंधों के, गीत रसगंधों के
आज चलो गाएं ज़रा, धरती के गीत।।
           धरती के गीत,धरती के गीत ।।

अलसाई रात के, अंगड़ाती भोर के
नदिया के पानी में,उठती हिलोर के
शरमाते चंदा के, रंगराते सूरज के
अम्बर में उड़ते पंछियों के शोर केे

गीत कुछ उपवन के, गीत कुछ मधुबन के
गीत कुछ देहरी के, गीत कुछ आंगन के
आज चलो गाएं ज़रा,धरती के गीत।।
          धरती के गीत,धरती के गीत ।।

किशोरी झरबेरी के, बूढ़े बबूल के
हवाओं में झूलते बरगद के मूल के
बांस के, कपास के,युवा अमलतास के,
अरहर के, मेथी के, इमली के फूल के

गीत कुछ तरुवर के, गीत गुलमोहर के
गीत कुछ पतझर के, गीत कुछ अंकुर के
आज चलो गाएं ज़रा, धरती के गीत।।
           धरती के गीत,धरती के गीत।।

लहराते सागर के, नैया के, पाल के
खेत - खलिहान के, पगडंडी, चौपाल के,
बादल के, “वर्षा” के, गागर के, निर्झर के,
तृप्ति के, प्यास के, धूल के, गुलाल के,

गीत बौछार के, गीत कुछ प्यार के
गीत त्यौहार के, गीत अभिसार के
आज चलो गाएं ज़रा, धरती के गीत ।।
           धरती के गीत,धरती के गीत ।।

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शुक्रवार, मार्च 19, 2021

फागुन की सौगात | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

गीत


फागुन की सौगात

- डॉ. वर्षा सिंह


जब से आया है मधुमास 

हुई जो खुशियों की बरसात।

यही है फागुन की सौगात।।


लाज भरा उषा-सा आंचल, शबनम से गहने 

सूरज पर न्योछावर सुधियां, चंदा पर सपने 

नेहा से सराबोर हैं दिन 

प्रणय से भीगी भीगी रात।

यही है फागुन की सौगात।।


हर पल माणिक, हर पल मुक्ता, हर पल है सोना 

तृप्ति-प्यास का अद्भुत संगम, पाकर क्या खोना !

निखरता रंगों का उल्लास 

निकलती खुशियों की बारात।

यही है फागुन की सौगात।।


बांहों के घेरे ने लिख दी, बंधन की कविता 

होठों के तटबंध तोड़ती, गीतों की सरिता 

बहती पोर-पोर रसधार 

हुई जो रंग-रंगीली बात।

यही है फागुन की सौगात।।


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सोमवार, मार्च 08, 2021

औरत | 08 मार्च | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

औरत

      -डॉ. वर्षा सिंह

मां, बेटी, बहन, सहेली हूं, बेशक़ मैं तो इक औरत हूं।

पत्नी, भाभी ढेरों रिश्ते, मैं हर इक घर की इज़्ज़त हूं।

अपनी करुणा से मैंने ही, इस दुनिया को सींचा हरदम,
बंट कर भी जो बढ़ती जाती, ऐसी ममता की दौलत हूं।

राधा, मीरा, लैला बन कर, मैं चली प्रेम की राहों पर,
बन कर दुर्गा काली मैं ही,  दुष्टों के लिये क़यामत हूं।

मैं सहनशीलता, धीरज का, पर्याय सदा बनती आई,
संकट का समय रहा जब भी, मैं बनी स्वयं की ताकत हूं।

"वर्षा", सलमा, सिमरन, मरियम, हो नाम भले कोई मेरा,
कह लो औरत, महिला, वूमन, आधी दुनिया की सूरत हूं।

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