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Dr. Varsha Singh |
प्रिय मित्रों,
मेरी ग़ज़ल को web magazine "नवीन क़दम" के अंक दिनांक 07 मार्च 2019 में स्थान मिला है।
"नवीन क़दम" के प्रति हार्दिक आभार 🙏
ग़ज़ल
- डॉ. वर्षा सिंह
मां, बेटी, बहन, सहेली हूं, बेशक़ मैं तो इक औरत हूं।
पत्नी, भाभी ढेरों रिश्ते, मैं हर इक घर की इज़्ज़त हूं।
अपनी करुणा से मैंने ही, इस दुनिया को सींचा हरदम,
बंट कर भी जो बढ़ती जाती, ऐसी ममता की दौलत हूं।
राधा, मीरा, लैला बन कर, मैं चली प्रेम की राहों पर,
बन कर दुर्गा काली मैं ही, दुष्टों के लिये क़यामत हूं।
मैं सहनशीलता, धीरज का, पर्याय सदा बनती आई,
संकट का समय रहा जब भी, मैं बनी स्वयं की ताकत हूं।
"वर्षा", सलमा, सिमरन, मरियम, हो नाम भले कोई मेरा,
कह लो औरत, महिला, वूमन, आधी दुनिया की सूरत हूं।
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कृपया पत्रिका में मेरी ग़ज़ल पढ़ने हेतु निम्नलिखित Link पर जायें....
http://navinkadam.com/?p=3697
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