रविवार, अक्तूबर 28, 2018

गीत .... लुप्त होती जा रही है चेतना - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

शून्य होती जा रही संवेदना
लुप्त सी होने लगी है चेतना

बद से बदतर गांव की हालत हुई
घर से बेघर चैन की चाहत हुई
पड़ रहा अक्सर स्वयं को बेचना
लुप्त सी होने लगी है चेतना

वीडियो बनते रहे वायरल हुए
हादसों से मन नहीं व्याकुल हुए
कौन समझे घायलों की वेदना
लुप्त सी होने लगी है चेतना

बिन चुभोये देह में चुभते हैं पिन
हाथ में पत्थर लिए दिखते हैं दिन
हो रहा मुश्किल बहुत ही झेलना
लुप्त होती जा रही है चेतना

सच की कड़वाहट भली लगती नहीं
झूठ की लेकिन सदा चलती नहीं
फैसला ना हो गलत, यह देखना
लुप्त होती जा रही है चेतना


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