शुक्रवार, नवंबर 10, 2017

सूर्य हुआ फिर उदित

सूर्य हुआ फिर उदित
प्रकृति हो गई मुदित
        कि रोशनी फैल गई
             जगी उम्मीद नई
          नहीं रहती कायम हरदम
              अंधेरे की काली छाया
           बदलती रहती है प्रतिपल
         समय की गतिशाली काया
हो कब कैसे क्या - क्या
नहीं किसी को विदित
      ☀- डॉ. वर्षा सिंह

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