मंगलवार, फ़रवरी 04, 2020

कुछ और दोहे वसंत के -डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

मौसम ने छेड़ा यहां, फिर वासंती राग।
फूलों का मेला लगा, झूम उठे हैं  बाग़ ।।1।।

मौसम ने जादू किया, ख़्वाब गए सब जाग।
हवा संदेशा ला रही, अब आएगा फाग ।।2।।

दिनदूना फिर से बढ़े, आपस में अनुराग।
प्रेमभाव फूले-फले, बैर-बुराई त्याग ।। 3।।

संगम के अवदान से, जो पवित्र भू-भाग।
वही इलाहाबाद है, बेशक वही प्रयाग ।।4 ।।

अमुआ बौराने लगा, भूल गया बैराग।
रातें छोटी हो चलीं, खुले दिवस के भाग ।।5।।

सरसों बांधे खेत को, सुख की पीली पाग
बिखरा ख़ुशियों से भरा, चारों ओर पराग ।।6।।

चढ़ ऊंची मुंडेर पर, बोल रहा है काग।
फागुन पाहुन आएगा, शीत जाएगी भाग।। 7।।

सबकी अपनी किस्मतें, सबके अपने भाग।
बाती की पीड़ा कहां समझे कभी चिराग़ ।।8।।

दिन दूना बढ़ने लगे, रंगों के अनुभाग ।
लेखे-जोखे के लिए, खोले नये विभाग ।।9।।

प्रेम-प्यार ऐसा बढ़े, बुझे द्वेष की आग ।
"वर्षा" की है ये दुआ, धुलें क्लेश के दाग़ ।। 10 ।।

                       -डॉ. वर्षा सिंह
         
     










     

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