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Dr. Varsha Singh |
- डॉ. वर्षा सिंह
आख़िर अब तो हो गया, इंतज़ार का अंत।
माघ पंचमी आ गई, ले कर साथ वसंत ।।1।।
कितने दिन से जोहती थी वसंत की बाट।
आज प्रकृति के खुल गए सारे बंद कपाट।।2।।
कल तक लगता था भला जिसका हर इक रूप।
तीखी- सी लगने लगी वही कुनकुनी धूप।।3।।
जबसे मौसम ने यहां बदली अपनी चाल।
बदले- बदले लग रहे आम, नीम के हाल।।4।।
टेसू अब करते नहीं, हरे पात की बात।
फूल, फूल, बस फूल की बातें हैं दिन रात।।5।।
समझ गए नादान भी , वासंती संकेत ।
पीले फूलों से भरे, सरसों वाले खेत ।।6।।
बाग़-बग़ीचों में चला फिर उत्सव का दौर।
हवा कह रही -''चाहिए ख़ुशबू थोड़ी और" ।।7।।
देह नदी की छरहरी, लुभा रही वनप्रांत।
जाएगी फिर से लिखी, बेशक कथा सुखांत ।।8।।
यहां शहर में है वही, हर दिन एक समान।
वही एक-सी बांसुरी, वही एक-सी तान ।।9।।
कौन करेगा अब यहां, "वर्षा" ऋतु की याद।
वासंती पुरवाइयां, करतीं मन आबाद ।।10।।
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प्रिय मित्रों,
❣💛 वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 💛❣
मेरे वासंती दोहों को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 जनवरी 2020 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=24737
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दस दोहे वसंत के - डॉ. वर्षा सिंह |
Bahut sundar
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद 🙏
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