Dr. Varsha Singh |
उसे देखा नहीं कितने दिनों से
सुकूं पाया नहीं कितने दिनों से
न पलकों से लगीं पलकें ज़रा भी
दिखा सपना नहीं कितने दिनों से
शज़र तन्हा, परिन्दे दूर जाते
समा बदला नहीं कितने दिनों से
न पूछो दोस्तो अब हाल मेरा
पता अपना नहीं कितने दिनों से
नदी सूखी, हवा भी नम नहीं है
हुई "वर्षा" नहीं कितने दिनों से
ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह |
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