कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
तब न था मालूम , ऐसे फ़ासले हो जाएंगे।💔 ज़ख़्म बीते दिन के सारे फिर हरे हो जाएंगे।❣ शाम आयेगी ज़ख़ीरा याद का लेकर यहां ख़्वाब बुनने के नये फिर सिलसिले हो जाएंगे।💝 ❤- डॉ. वर्षा सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें