कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
शहरी हंगामें में भूल गये गांव। पनघट, चौबारे और पीपल की छांव। बात-बात बिछती शतरंजी बिसात, क़दम-क़दम चालें है, क़दम- क़दम दांव । 🍀 - डॉ वर्षा सिंह
यही हाल है अभी तो, शुभकामनाएं.रामराम#हिन्दी_ब्लॉगिंग
ताऊ रामपुरिया जी, टिप्पणी देने के लिये आपका आभार
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