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मंगलवार, नवंबर 28, 2017

आई शाम.... Good Evening

Good Evening Everyone .... !!!!

दिन डूबा और आई शाम
रात की आहट लाई शाम

याद आ गया कोई अपना
मन ही मन मुस्काई शाम

     - डॉ. वर्षा सिंह

सोमवार, नवंबर 27, 2017

हरीसिंह गौर नाम है जिनका

हरीसिंह गौर नाम है जिनका
सबके दिल में रहते हैं
बच्चे बूढ़े गांव शहर सब
उनकी गाथा कहते हैं… बच्चे बूढ़े

रोक न पाई निर्धनता भी
बैरिस्टर बन ही ठहरे
उनका चिंतन उनका दर्शन
उनके भाव बहुत गहरे
ऐसे मानव सारे दुख को
हंसते हंसते सहते हैं ...बच्चे बूढ़े

शिक्षा ज्योति जलाने को ही
अपना सब कुछ दान दिया
इस धरती पर सरस्वती को
तन,मन,धन से मान दिया
उनकी गरिमा की लहरों में
ज्ञानदीप अब बहते हैं.. बच्चे बूढ़े

ऋणी सदा बुंदेली धरती
ऋणी रहेगा युवा जगत
युगों युगों तक गौर भूमि पर
शिक्षा का होगा स्वागत
ये है गौर प्रकाश कि जिसमें
अंधियारे सब ढहते हैं.. बच्चे बूढ़े
  - डॉ. वर्षा सिंह

सोमवार, नवंबर 20, 2017

मैं और मेरी माताश्री श्रीमती डॉ. विद्यावती " मालविका " 

मेरी माताश्री श्रीमती डॉ. विद्यावती " मालविका "  हिन्दी साहित्य की विदुषी लेखिकाओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। " बौद्ध धर्म पर मध्ययुगीन हिन्दी संत साहित्य का प्रभाव " विषय में पीएच.डी उपाधि प्राप्त डॉ. विद्यावती " मालविका "  की लगभग 40 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

पाठक मंच

पाठक मंच सागर नगर की मासिक गोष्ठी में लेखक साने गुरुजी के उपन्यास "श्याम की मां" (प्रसिद्ध मराठी लेखक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पांडुरंग सदाशिव साने की मूल मराठी पुस्तक "श्यामची आई " का संध्या पेडणेकर द्वारा हिन्दी अनुवाद ) पर चर्चा हुई.
तस्वीरों में डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. शरद सिंह एवं अन्य

बुधवार, नवंबर 15, 2017

‘सामयिक सरस्वती’ पत्रिका में मेरी छः ग़ज़लें - डॉ वर्षा सिंह

Ghazals of Dr Varsha Singh in  Samayik Saraswati Oct.-Dec 2017

Ghazals of Dr Varsha Singh in  Samayik Saraswati Oct.-Dec 2017
हिन्दी साहित्य जगत् की लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण पत्रिका ‘‘सामयिक सरस्वती’’ के अक्टूबर-दिसम्बर 2017 अंक में मेरी छः ग़ज़लें प्रकाशित हुई हैं।
मैं आभारी हूं ‘‘सामयिक सरस्वती’’ के संपादक महेश भारद्वाज जी की जिन्होंने मेरी ग़ज़लों को अपनी पत्रिका में स्थान दिया।

आया दिन उजियाला


Ghazal by Dr Varsha Singh

बीती रात जुन्हाई वाली
आया दिन उजियाला
करना है जो आज करो, कल
किसने देखा- भाला
      - डॉ. वर्षा सिंह

दोस्ती

ज़िन्दगी जीना सज़ा है इन दिनों
कुछ नहीं अपना पता है इन दिनों
दोस्ती उनसे हुई तो ये हुआ
पूछते सब क्या हुआ है इन दिनों
         - डॉ. वर्षा सिंह

सूर्य हुआ फिर उदित

सूर्य हुआ फिर उदित
प्रकृति हो गई मुदित
        कि रोशनी फैल गई
             जगी उम्मीद नई
          नहीं रहती कायम हरदम
              अंधेरे की काली छाया
           बदलती रहती है प्रतिपल
         समय की गतिशाली काया
हो कब कैसे क्या - क्या
नहीं किसी को विदित
      ☀- डॉ. वर्षा सिंह

गुरुवार, नवंबर 02, 2017

परछाई

अंधेरों में बसी रहती
है तन्हाई ही तन्हाई
उजालों की कथाओं में
है परछाई ही परछाई
कहां जायें, कहें किससे
समझ में कुछ नहीं आता,
बड़ी मुश्किल हुई 'वर्षा'
नहीं कोई भी सुनवाई
       - डॉ. वर्षा सिंह

DR VARSHA SINGH IN PROGRESSIVE WITTERS ASSOCIATION



प्रिय मित्रों,
प्रगतिशील लेखक संघ , मकरोनिया शाखा की चर्चा एवं काव्य गोष्ठी दिनांक 22.10.2017 को सम्पन्न हुई। तस्वीरें उसी अवसर की..... तस्वीरों में मैं डॉ वर्षा सिंह , पी.आर.मलैया आदि.....

Dr varsha Singh at Central University Sagar
























प्रिय मित्रो,
     डॉ हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय , सागर के आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी सभागार में दिनांक 26.10.2017 को पाठक मंच द्वारा आयोजित वरिष्ठ कथाकार डॉ विद्या बिंदु सिंह की किताब " हिरण्यगर्भा" की समीक्षा गोष्ठी/ परिचर्चा में मुझे मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित होने का अवसर मिला।आयोजन की कुछ तस्वीरें आप सब से शेयर कर रही हूं।

Dear Friends, where I was present as Chief Guest ... Pathak Manch Samiksha Goshthi Held at  Dr. Hari Singh Gour Central University , Sagar's Aacharya Nand Dulare Bajpai Sabhagaar, 26.10.2017 ... I am sharing some pictures of the event with all of you.