Varsha Singh
कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
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गुरुवार, नवंबर 02, 2017
परछाई
अंधेरों में बसी रहती
है तन्हाई ही तन्हाई
उजालों की कथाओं में
है परछाई ही परछाई
कहां जायें, कहें किससे
समझ में कुछ नहीं आता,
बड़ी मुश्किल हुई 'वर्षा'
नहीं कोई भी सुनवाई
- डॉ. वर्षा
सिंह
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