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गुरुवार, दिसंबर 24, 2020

🎄🏩⭐ क्रिसमस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ⭐🏩🎄

🎄🌟Happy X'mas🌟🎄

⭐❤️🎄🎇✝️🎇🎄❤️⭐
Wishing you a Merry Christmas surrounded by your loved ones!
                   - Dr. Varsha Singh
⭐❤️🎄🎇✝️🎇🎄❤️⭐

शनिवार, दिसंबर 05, 2020

घर | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, सादर प्रस्तुत है मेरा एक गीत ....

घर
   -डॉ. वर्षा सिंह

छत न खिड़की से, नहीं दीवार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

घर जहां पर नेह के दीपक जलें 
घर वही सुख के जहां मोती मिलें
घर हमेशा है बड़ा संसार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

है थकन मिटती जहां मन-देह की 
बारिशें होती जहां स्नेह की 
घर नहीं कम है किसी उपहार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

घर की पुख़्ता नींव रिश्तों से बने 
मिल के रहने से ये होते हैं घने 
हैं सफल जो भी जुड़े घर-बार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

बात कोई भी न हो विद्वेष की 
हो अगर तो प्रेम के संदेश की 
टूटते घर आपसी तकरार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

जूझते हों जब अकेलेपन से हम 
घेरते हैं जब कई अनजान ग़म 
जोड़ता घर ही हमें परिवार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से
              ---------------


गुरुवार, दिसंबर 03, 2020

श्रद्धांजलि | स्व. ललित सुरजन | डॉ. वर्षा सिंह

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और देश की राजधानी दिल्ली में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले देशबन्धु समाचार पत्र के प्रधान समूह संपादक ललित सुरजन जी का कल 03 दिसम्बर को ब्रेन हैमरेज के कारण 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
स्व. ललित सुरजन जी को मेरे द्वारा दी गई श्रद्धांजलि को वेबपोर्टल 'युवाप्रवर्तक' ने प्रकाशित किया है। 'युवाप्रवर्तक' के प्रति हार्दिक आभार 🙏

श्रद्धांजलि
   अलविदा ललित सुरजन
         - डॉ. वर्षा सिंह

अभी कुछ देर पहले आदरणीय ललित सुरजन जी के निधन का समाचार पा कर हतप्रभ हूं।😥
बड़े भाई के रूप में मुझे सदैव मिलने वाली उनकी आत्मीयता हमेशा स्मरणीय रहेगी।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि 🙏😥💐
देशबंधु समाचार समूह के प्रधान संपादक व वरिष्ठ पत्रकार ,कवि ललित सुरजन को ब्रेन हैमरेज होने के कारण  निधन हो गया। 74 वर्षीय श्री सुरजन को कल मंगलवार 01 नवम्बर को  नोयडा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

22 जुलाई 1946 को जन्में ललित सुरजन देशबंधु पत्र समूह के प्रधान संपादक थे। वे 1961 से एक पत्रकार के रूप में कार्यरत रहे थे। वे एक जाने माने कवि व लेखक थे। ललित सुरजन स्वयं को एक सामाजिक कार्यकर्ता मानते थे तथा साहित्य, शिक्षा, पर्यावरण, सांप्रदायिक सदभाव व विश्व शांति से सम्बंधित विविध कार्यों में उनकी गहरी संलग्नता थी ।  वे छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे। 
          हिन्दी पत्रकारिता जगत में श्रद्धेय स्व. मायाराम सुरजन जी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आदरणीय ललित सुरजन ‘‘देशबंधु के साठ साल’’ के रूप में एक ऐसी लेखमाला लिखी जो देशबंधु समाचारपत्र की यात्रा के साथ हिन्दी पत्रकारिता की यात्रा से बखूबी परिचित कराती है। उनकी अनुमति से इसे धारावाहिक रूप से डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने ब्लॉग में शेयर किया था ...
https://samkalinkathayatra.blogspot.com/2019/11/1.html?m=1

ट्विटर पर ललित जी सदैव तत्परता से अपने विचार व्यक्त करते थे। मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" जी से संबंधित एक पोस्ट पर उनकी टिप्पणी इसका प्रमाण है -
https://twitter.com/LalitSurjan/status/1270901547224846338?s=19

(डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के ट्विटर एकाउंट से साभार )

यहां प्रस्तुत है स्व. ललित सुरजन जी की एक कविता -

लखनऊ के पास सुबह-सुबह

अभी-अभी
सरसों के खेत से
डुबकी लगाकर निकला है
आम का एक बिरवा,

अभी-अभी
सरसों के फूलों पर
ओस छिड़क कर गई है
डूबती हुई रात,

अभी-अभी
छोटे भाई के साथ
शरारत करती चुप हुई है
एक नन्हीं बिटिया,

अभी-अभी
बूढ़ी अम्माँ को सहारा दे
बर्थ तक लाई है
एक हँसमुख बहू,

अभी सुबह की धूप में
रेल लाईन के किनारे
उपले थाप रही है
एक कामकाजी औरत,

अभी सुदूर देश में
अपने नवजात शिशु के लिए
किताब लिख रहा है
एक युद्ध संवाददाता,

अभी मोर्चे से लौट रहा है
वीरता का मैडल लेकर
अपने परिवार के पास
एक सकुशल सिपाही,

अभी मैंने
अवध की शाम
नहीं देखी है,
अभी मैं जग रहा हूँ
लखनऊ के पास
अपना पहिला सबेरा, 
और खुद को
तैयार कर रहा हूँ
एक खुशनुमा दिन के लिए।

06.02.1998

(ललित सुरजन की कविताएं)

उनका निधन अपूर्णनीय क्षति है।
श्रद्धानवत - डॉ. वर्षा सिंह,
                 वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक
                 सागर, मध्यप्रदेश




रविवार, नवंबर 29, 2020

जन्मदिन की शुभकामनाएं | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. (Miss) Sharad Singh & Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
     आज 29 नवम्बर को मेरी अनुजा डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन है। उन्हें मेरी अनंत हार्दिक शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद 🎂💐🌹💐🔶🌿☘️🌷🥀🌾🌿🌺🌹💐🆚

Happy Birthday To Dr. (Miss) Sharad Singh

 एक वाकया आप सबसे साझा कर रही हूं .... मुझे याद है कि जब मैं कक्षा 06 में पढ़ती थी तब विद्यालय में एक कविता लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। इसमें प्रतियोगियों के लिए कक्षावार तीन वर्ग निर्धारित किए गए थे- प्रायमरी, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक। मैंने माध्यमिक वर्ग में अपना नाम लिखा दिया। अब समस्या थी कविता लिखने की। मैंने इस संबंध में नानाजी ठाकुर श्यामचरण सिंह जी से मदद मांगी, तो उन्होंने कहा - तुम प्रतिभागी हो इसलिए स्वयं कविता लिखो। तब मैंने पूछा कि मैं कैसे लिखूं। नानाजी ने कहा अपनी छोटी बहन पर कविता लिख डालो। और फिर क्या था, मैंने फटाफट अपनी छोटी बहन शरद पर कविता लिख डाली। मुझे उस कविता पर प्रथम पुरस्कार भी मिला। मेरी वह कविता थी -
मेरी बहना, मेरी बहना
सदा मानती मेरा कहना
खेल कूद से अधिक सुहाता
हरदम उसको लिखना-पढ़ना ।

Dear Friends,
    Today HAPPY BIRTHDAY of my sister Dr Sharad Singh. Please blessing to her. Thanks.

Dr. (Miss) Sharad Singh

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 


संक्षिप्त परिचय


भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के पं. बालकृष्ण शर्मा "नवीन" पुरस्कार सहित राज्य स्तरीय रामेश्वर गुरू पत्रकारिता सम्मान पुरस्कार,  प्रादेशिक वागीश्वरी सम्मान, नई धारा कथा सम्मान, कस्तूरी देवी चतुर्वेदी लोकभाषा सम्मान, रामानंद तिवारी स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान, विजय वर्मा कथा सम्मान आदि अनेक सम्मानों से सम्मानित वरिष्ठ लेखिका डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह द्वारा  लिखित विभिन्न विषयों पर लगभग पचास से अधिक पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने शोषित, पीड़ित स्त्रियों के पक्ष में अपने लेखन के द्वारा हमेशा आवाज़ उठाई है।  बुन्देलखण्ड की महिला बीड़ी श्रमिकों पर केन्द्रित ‘पत्तों में कैद औरतें’ तथा स्त्री विमर्श पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरें’ मनोरमा ईयर बुक में शामिल की जा चुकी हैं। बेड़िया स्त्रियों पर केन्द्रित ‘पिछले पन्ने की औरतें’ तथा लिव इन रिलेशन पर 'कस्बाई सिमोन' नामक उनके उपन्यासों को राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनका एक और उपन्यास "पचकौड़ी" राजनैतिक और पत्रकारिता जगत की पर्तों का बारीकी से विश्लेषण करने वाला पठनीय एवं लोकप्रिय उपन्यास है। हाल ही में डॉ. शरद सिंह का नया उपन्यास "शिखण्डी… स्त्री देह से परे" प्रकाशित हुआ है जो महाभारत के एक प्रमुख पात्र शिखण्डी के जीवन को नए नज़रिए से व्याख्यायित करता है।
29 नवम्बर को पन्ना, मध्यप्रदेश में जन्मीं खजुराहो की मूर्तिकला विषय में पीएचडी , सागर की प्रतिष्ठित साहित्यकार, कथालेखिका, उपन्यासकार, स्तम्भकार एवं  कवयित्री और मेरी अनुजा डॉ शरद सिंह वर्तमान में मध्यप्रदेश के सागर नगर में निवास करते हुए स्वतंत्र लेखन के कार्य के साथ नई दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "सामयिक सरस्वती" में कार्यकारी सम्पादक का दायित्व निभा रहीं हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं सहित सोशल मीडिया पर वे लगातार अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। वे मानती हैं कि अधिकारों का ज्ञान और साहस ही स्त्रियों को शोषण-मुक्त जीवन दे सकता है। सागर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र "सागर दिनकर" में उनका नियमित कॉलम "चर्चा प्लस" अनेक समसामयिक मुद्दों पर विश्लेषणात्मक लेखन के लिए प्रबुद्ध पाठकों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। इससे पूर्व डॉ. शरद सिंह सागर से ही प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में अनेक वर्षों तक "बतकाव" शीर्षक का नियमित कॉलम लेखन कर चुकी हैं। 

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शनिवार, नवंबर 14, 2020

दीपावली की शुभकामनाएं | श्री सूक्त | डॉ. वर्षा सिंह

🚩💥🍁🌟🌹🍀🌹🌟🍁💥🚩
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
🚩💥🍁🌟🌹🍀🌹🌟🍁💥🚩

आईए, दीपावली के पावन पर्व पर हम देवी लक्ष्मी का आह्वान करें। हम, हमारा परिवार, हमारा समाज, हमारा देश और सकल विश्व धन-धान्य, सम्पदा से परिपूर्ण रहे। "वसुधैव कुटम्बकम्" का मंत्र हम सदैव स्मरण रखें और इस जगत के समस्त प्राणी निर्भय हो कर अपना जीवन व्यतीत करें। देवी लक्ष्मी को नमन 🚩🙏🚩 

🚩अथ श्री सूक्तं 🚩

॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥

ॐ ॥ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥ 1॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ 2॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ 3॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ 4॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ 5॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ 6॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ 7॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ 8 ॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ 9॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ 10।।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ 11॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ 12॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 13॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 14॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ 15॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ 16॥

॥ इति श्री सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥

[ ऋग्वेदीय सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद् में वर्णित श्रीसूक्त ]


फलश्रुति

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नु ते ॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ॥
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ।

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगण खचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरंगधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ।

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधरां ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं ताम् ॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरिप्रसीद मह्यम् ॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखींम् देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमही । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः ।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः स्वयम् श्रीरेव देवता ॥ 

चन्द्रभां लक्ष्मीमीशानाम् सुर्यभां श्रियमीश्वरीम् ।
चन्द्र सूर्यग्नि सर्वाभाम् श्रीमहालक्ष्मीमुपास्महे ॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महीयते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु ।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजंति सद्यः सविता विदध्यून् ॥

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति । सन्ततमृचा वषट्कृत्यं
सन्धत्तं सन्धीयते प्रजया पशुभिः । य एवं वेद ।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
 
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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बुधवार, नवंबर 11, 2020

अमावस पूनम सी उजियार | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज प्रस्तुत है मेरा यह गीत जिसके माध्यम से मैंने दीपावली पर बुंदेलखंड की सुहागिन स्त्री का चित्रण किया है....

गीत....
अमावस पूनम सी उजियार
            - डॉ. वर्षा सिंह

रोशनी बिखरी आंगन द्वार
   अमावस पूनम सी उजियार
    नए गोरी के साज-सिंगार
    रोशनी बिखरी आंगन द्वार

लक्ष्मी मैया सब सुख देना
मन की भोली चाह कहे
रात दिवाली रहे बरस भर
जगमग कातिक मास रहे

     चढ़ा कर श्रद्धा से फिर फूल
     सुहागिन मांगे सुख-संसार
     रोशनी बिखरी आंगन द्वार

सिर-माथे पर आंचल डाले
हाथों पूजा-थाल लिए
तुलसी चौरे झुक कर रखती
माटी के अनमोल दिए

      आंखों बसा सजन का रूप
      अब तो सांस-सांस त्यौहार
      रोशनी बिखरी आंगन द्वार
                -------------
               

#दीपावली #अमावस्या #बुंदेलखंड #सुहागिन #रोशनी

शनिवार, नवंबर 07, 2020

जीवन | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

गीत
      जीवन
          - डॉ. वर्षा सिंह

हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक
जब तक भी यह जीवन है ।।
फिर अनंत तक का सफर अनवरत
टूटा हर एक बंधन है ।।

तिरस्कार, उपहास, मान के
सारे किस्से बेमानी
गागर सागर में डूबी तो
मिलता पानी से पानी

भुला हक़ीक़त मानव का मन 
करता रहता नर्तन है ।।

साथ समय के नाम-ख्याति सब 
भुला दिए जाते हैं 
नई-नई घटनाएं लेकर 
दिवस-वर्ष आते हैं

इस दुनिया की फ़ितरत सबको 
भाता जो भी नूतन है ।।

आपस में संग्राम किस लिए 
राग-द्वेष सब व्यर्थ यहां 
हर पल धुंधले होते दर्पण 
खो देते हैं अर्थ है यहां 

जब तक "वर्षा" की रिमझिम है 
तब तक भादों,सावन है ।।
       --------
#गीतवर्षा #गीत #जीवन #सावन #सागर #रिमझिम #दर्पण

मंगलवार, अक्तूबर 20, 2020

हरसिद्धी देवी | रानगिर | सागर | नवरात्रि | शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह

🙏🚩 सभी ब्लॉग पाठकों को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 🚩🙏

🚩 जय मैया हरसिद्धी रानगिर 🚩
प्रिय मित्रों, मध्यप्रदेश के सागर ज़िले में आदि शक्ति मां जगदम्बा कई रूपों में विराजमान हैं। यहां रहली तहसील में उनका एक रूप है - रानगिर की मां हरसिद्धी देवी। यहां सामान्य तौर पर पूरे साल भक्त देवी के दर्शन करने आते हैं। शारदीय नवरात्र में इस सिद्ध पीठ में भक्तों की भीड़ पूरे नौ दिन लगी रहती है। किन्तु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण भक्तों की संख्या कम ही है। मेलों का आयोजन भी नहीं किया गया है। 
      सागर से करीब 46 किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि यहां देहार नदी के किनारे स्थित प्राचीन मंदिर में विराजीं मां हरसिद्धि देवी की मूर्ति दिन में तीन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। दुर्गा सप्तशती में दुर्गा कवच के आधार पर स्वयं ब्रह्मा जी ने ऋषियों को नवदुर्गा के नामों का उल्लेख करते हुए कहा है कि-
“प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चंद्रघण्टेति, कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।
पंचमं स्कंदमातेति,षष्ठं कात्यायनीति च ,
सप्तमं कालरात्रीति,महागौरीति चाष्टमम् ।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः।।
    नवीं देवी सिद्धिदात्री भक्तों की मनोकामनाएं सिद्ध करने वाली देवी ही रानगिर में हरसिद्धी के रूप में विराजमान हैं । सुबह के समय कन्या, दोपहर में युवा और शाम के समय प्रौढ़ रुप में माता दर्शन देती हैैं। यह सूर्य, चंद्र, अग्नि शक्ति के प्रकाशमय, तेजोमय व अमृतमय करने का संकेत है। किवदंती है कि देवी भगवती के 52 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक रानगिर है। जहां सती की रान गिरी थी। इसलिए इस क्षेत्र को रानगिर कहा जाता है। 

   एक किंवदंती यह भी है कि रानगिर में एक अहीर था जो दुर्गा का परम भक्त था,वह अहीर बहुत बलशाली था तो अपने राज्य की तरफ से युद्ध लड़ने जाता था तो उसकी नन्हीं बेटी जंगल में रोज़ गाय चराने जाती थी जहाँ पर उसे एक कन्या रोज़ भोजन भी कराती थी और चांदी के सिक्के भी देती थी । यह बात बेटी रोज़ अपने पिता को सुनाती थी । एक दिन जब अहीर युद्ध पर जा रहा था तो उसने सोचा चलो रास्ते में देखते चलूं कि आखिर कौन है वह स्त्री जो मेरी पुत्री को रोज भोजन कराती और चाँदी के सिक्के देती है। झुरमुट में छिपकर अहीर ने देखा कि एक दिव्य कन्या बिटिया को भोजन करा रही है तो वह समझ गया कि यह तो साक्षात जगदम्बा हैं । जैसे ही अहीर दर्शन के लिए आगे बढ़ा तो कन्या अदृश्य हो गई और उसके बाद वहां यह अनगढ़ पाषाण प्रतिमा प्रकट हो गई और इसके बाद इसी अहीर ने इस प्रतिमा पर छाया प्रबंध कराया और मंदिर बनवाया तब से प्रतिमा आज भी उसी स्थान पर विराजमान है ।

 एक प्रचलित कथा यह भी है कि- शिवभक्त रावण ने इस पर्वत पर घोर तपस्या के फलस्वरूप इस स्थान का नाम रावणगिरि रखा गया जो कालांतर में संक्षिप्त होकर रानगिर बन गया । एक कथा के अनुसार पुराण-पुरुष भगवान राम ने वनवास के समय इस पर्वत पर अपने चरण रखे और इस पर्वत का नाम रामगिरि पड़ गया जो अपभ्रंश स्वरूप आज का रानगिर बन गया। ऐसा भी संभव प्रतीत होता है क्योंकि इस पर्वत के समीप स्थित एक गाँव आज भी रामपुर के नाम से जाना जाता है ।
 रानगिर देवी मंदिर के निर्माण काल के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते किंतु कहा जाता है कि सन् 1727 ईस्वी में इस पर्वत पर महाराजा छत्रसाल और नवाब बंगस खान और धामोनी के फ़ौज़दार ख़ालिक के बीच युद्ध हुआ था । यद्यपि महाराजा छत्रसाल ने सागर जिला पर अनेक बार आक्रमण किया जिसका विवरण लालकवि ने अपने ग्रंथ छत्रप्रकाश में इस प्रकार किया है –
“वहाँ तै फेरी रानगिर लाई , ख़ालिक चमूं तहौं चलि आई,
उमड़ि रानगिर में रन कीन्हों,ख़ालिक चालि मान मैं दीन्हौं”
नवाब के खिलाफ युद्ध लड़ने में सहायता करने के लिए राजा छत्रसाल स्वयं चल कर होरा गोत्र के यदुवंशी घोषी अहीर राजा कीरत सिंह जूदेव से मदद मांगी ।
इस लड़ाई में महाराजा छत्रसाल और महाराजा कीरत सिंह जूदेव विजय हुई थे जब युद्ध के बाद जब कीरत सिंह जूदेव और महाराजा छत्रसाल वापस लौट रहे थे तो राजा कीरत ने छत्रसाल से कहा कि आपने यदुकुल की कन्या और रानगिर वाली माता के दर्शन की कहानी सुनी होगी क्यों न आज दर्शन कर लेंं। उसके बाद राजा छत्रसाल और राजा कीरत सिंह जूदेव उस स्थान पर पहुंचे जहांं दोनों को देवी माता ने दर्शन दिए और दोनों राजाओं और उनकी पूरी सेना को भोजन करवाया। रानगिर की महिमा से प्रभावित होकर महाराज कीरत सिंह जूदेव और महाराजा छत्रसाल ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 
इस धार्मिक स्थल तक जाने के दो मार्ग हैं पहला - सागर शहर से दक्षिण में झांसी-लखनादौन राष्ट्रीयकृत राजमार्ग क्र.-26 पर 24 कि.मी. चलकर तिराहे से पूर्व में 8 कि.मी. पक्का सड़क मार्ग और दूसरा रहली से सागर मार्ग पर 8 कि.मी. चलकर पांच मील से दक्षिण में पक्की सड़क से 12 कि.मी. का रास्ता।
इस मंदिर का निर्माण दुर्ग-शैली में किया गया है ।बाहरी परकोटे से चौकोर बरामदा जोड़ा गया है,  जिसकी छत पर चढ़कर ऊपर ही ऊपर मंदिर की परिक्रमा की जा सकती है ।
चैत्र और क्वांर में नवरात्रि के समय इस स्थान का महत्व द्विगुणित हो जाता है।
🚩 जय मैया हरसिद्धी रानगिर 🚩

जय भगवति देवि नमो वरदे 
जय पापविनाशिनि बहुफलदे। 
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे 
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे 
जय पावकभूषितवक्त्रवरे। 
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे 
जय लोकसमस्तकपापहरे। 
जय देवि पितामहविष्णुनते 
जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते 
जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे 
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे 
जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे। 
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे 
जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:। 
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

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गुरुवार, अक्तूबर 01, 2020

वृद्धजन पर कविताएं | अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस जो अंग्रेज़ी में International Day Of Older Persons के नाम से जाना जाता है, इसे प्रत्येक वर्ष 01 अक्टूबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 14 दिसम्बर, 1990 को निर्णय लेने के बाद 01 अक्तूबर 1991 का दिन ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध-दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। 'अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस' को कई और भी नाम दिए गए हैं जैसे -  'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस', 'अंतरराष्ट्रीय वरिष्‍ठ नागरिक दिवस',  'विश्व प्रौढ़ दिवस', 'अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस' 'सीनियर सिटीजन डे', Day of Senior Citizen आदि। किन्तु इन सबका उद्देश्य एक है, और वह है अपने वरिष्‍ठ नागरिकों का सम्मान करना एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना। वर्तमान समय में वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है। उनके पास जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनसे किसी बात पर परामर्श नहीं लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। वृद्ध जन स्वयं को उपेक्षित,  निष्प्रयोज्य महसूस करने लगे हैं। अपने वरिष्ठ नागरिकों को, बुज़ुर्गों को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है।
कवियों, शायरों ने वृद्ध जन के प्रति अनेक कविताएं लिखी हैं। कुछ कविताएं आज 
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के अवसर पर मैं आप सब से साझा कर रही हूं।

सीनियर सिटीजन दिवस
कुंवर कुसमेश
           
मान जो भी मिल रहा वो नौजवाँ तेवर को है। 
अब बुजुर्गों का तो बस सम्मान कहने भर को है। 
पल रहे वृद्धाश्रम में जाने कितने वृद्ध जन ,
सीनियर सिटीजन दिवस यूँ एक अक्टूबर को है। 
            🍁 - कुँवर कुसुमेश
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वृद्धजन दिवस

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

उन सभी वृद्धजन को मेरा प्रणाम -
जो नहीं जानते 
कि आज है वृद्ध जन्म दिवस !!!
वह जो लगा रहा है अदालत के चक्कर
दशकों से 
अपने मृत बेटे को न्याय दिलाने,
झुक गई है उसकी कमर 
घिस गया है चश्मा, 
उस वृद्ध को मेरा प्रणाम !
वह मां जो अपनों के द्वारा 
ठुकरा दी गई 
और बैठी है सड़क के किनारे 
टूटा, पिचका कटोरा लिए भीख मांगते 
पेट की खातिर 
दुआएं देती अपने बच्चों को 
उस मां को प्रणाम ! 
मेरा प्रणाम, उस दादी को, उस नानी को,
उस दादा को, उस नाना को
जो अपने नाती-पोतों को 
लेना चाहते हैं अपनी गोद में
सुनाना चाहते हैं एक कहानी 
मगर छोड़ दिए गए हैं घर से दूर 
एक वृद्ध आश्रम में। 
तो, मेरा प्रणाम उन सभी वृद्धजन को 
जो नहीं जानते कि आज वृद्धजन दिवस है !!!
        🍁 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

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दादी जियो हजारों साल

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक

हम बच्चों के जन्मदिवस को,
धूम-धाम से आप मनातीं।
रंग-बिरंगे गुब्बारों से,
पूरे घर को आप सजातीं।।

आज मिला हमको अवसर ये,
हम भी तो कुछ कर दिखलाएँ।
दादी जी के जन्मदिवस को,
साथ हर्ष के आज मनाएँ।।

अपने नन्हें हाथों से हम,
तुमको देंगे कुछ उपहार।
बदले में हम माँग रहे हैं,
दादी से प्यार अपार।।

अपने प्यार भरे आँचल से,
दिया हमें है साज-सम्भाल।
यही कामना हम बच्चों की
दादी जियो हजारों साल।।
        🍁- डॉ.  रूपचंद्र शास्त्री मयंक
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काया से बुज़ुर्ग

योगेन्द्र यश

खुद  हरे  पत्ते   ही   शाखा   छोड़  देते है,
और  पतंग  बन  उड़के माँझा तोड़ देते है!

संस्कारों  को  देते   बेहतरीन   सलीके  से,
बच्चों को वो लगाके रखते अपने  सीने से,
राह  पे  इनकी  चलके  राह  मोड़  देते  है,
और  पतंग  बन  उड़के माँझा तोड़ देते है!

खुद  हरे  पत्ते   ही   शाखा  छोड़  देते  है,
और  पतंग  बन उड़के  माँझा तोड़ देते है!

काया से बुज़ुर्ग  लेकिन  जवाँ  इरादे  होते,
आँखों पे चश्मा होता नज़रों में ज़माने होते,
टूटके  वो  खुद  ही   रिश्ता  जोड़  देते  है,
खुद  हरे   पत्ते   ही  शाखा   छोड़  देते  है!

खुद   हरे  पत्ते  ही   शाखा   छोड़  देते  है,
और  पतंग  बन उड़के माँझा तोड़  देते  है!
       🍁 - योगेन्द्र "यश"
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वो बूढ़ी निगाहें

शांतनु सान्याल

काश जान पाते उसके बचपन के हसीं
लम्हात क्या थे, 
वो बूढ़ा माथे पे बोझ लादे हुए 
मुख़्तलिफ़ ट्रेनों का पता देता रहा, 
मुद्दतों प्लेटफ़ॉर्म में तनहा ही रहा, 
काश, जान पाते 
उसकी मंज़िल का पता क्या था,
शहर की उस बदनाम बस्ती में
पुराने मंदिर के ज़रा पीछे,
मुग़लिया मस्जिद के बहुत क़रीब,
शिफर उदास वो बूढ़ी निगाहें तकती हैं गुज़रते राहगीरों को, 
काश जान पाते उसकी नज़र में 
मुहब्बत के मानी क्या थे,
वृद्धाश्रम में अनजान, भूले बिसरे वो तमाम
झुर्रियों में सिमटी जिंदगी, 
काश जान पाते, वो उम्मीद की गहराई
जब पहले पहल तुमने चलना सिखा था,
वो मुसाफिरों की भीड़, कोलाहल, 
जो बम के फटते ही रेत की मानिंद 
बिखर गई ख़ून और हड्डियों में 
काश जान पाते कि  
उनके लहू का रंग 
हमसे कहीं अलहदा तो न था, 
ख़ामोशी की भी ज़बाँ होती है,
करवट बदलती परछाइयाँ
और सुर्ख़ भीगी पलकों में कहीं,
काश हम जान पाते ख़ुद के सिवा भी
ज़िन्दगी जीते हैं और भी लोग 
      🍁 - शांतनु सान्याल

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बूढ़ी देह

अनीता सैनी दीप्ति

वह ख़ुश थी,बहुत ही ख़ुश 
आँखों से झलकते पानी ने कहा। 
असीम आशीष से नवाज़ती रही 
लड़खड़ाती ज़बान कुछ शब्दों ने कहा।  

पुस्तक थमाई थी मैंने हाथ में उसके 
एक नब्ज़ से उसने एहसास को छू लिया। 
कहने को कुछ नहीं थी वह मेरी 
एक ही नज़र में  ज़िंदगी को छू लिया। 

परिवार एक पहेली समर्पण चाबी 
अनुभव की सौग़ात एक मुलाक़ात में थमा गई। 
पोंछ न सकी आँखों से पीड़ा उसकी 
 मन में लिए मलाल घर पर अपने आ गई। 

अकेलेपन की अलगनी में अटकी  सांसें 
जीवन के अंतिम पड़ाव का अनुभव करा गई। 
स्वाभिमान उसका समाज ने अहंकार कहा  
अपनों की बेरुख़ी से बूढ़ी देह कराह  गई। 
    🍁 - अनीता सैनी 'दीप्ति'

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वृद्ध जन

सुशील कुमार शर्मा

बोझिल मन 
अकेला खालीपन 
बढ़ती उम्र। 
 
सारा जीवन 
तुम पर अर्पण 
अब संघर्ष। 
 
वृद्ध जन 
तिल-तिल मरते 
क्या न करते?
     🍁 - सुशील कुमार शर्मा

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माँ को वृद्धाश्रम मत भेज

रवि पाटीदार

जिस माँ ने तुम्हें जीवन दिया
उस माँ को क्यों तुम भूलना चाहते हो,
तुम इतने क्यों लाचार बनना चाहते हो।
बार-बार माँ तुमसे यही कहती है कि अपना ले
माँ को वृद्धाश्रम मत भेज।
तुम्हारे घर के सामने मुझे
छोटी सी कुटिया मुझे रहने के लिए दे दे ,
मैं उसमें रह लूँगी।
तुम सुख दो या दुःख दो
मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता,
बस तुम दिन में एक बार दिख जाओ
इसी बात की मुझे खुशी हो।
फिर माँ वही कहती है अपना ले
माँ को वृद्धाश्रम मत भेज।
        🍁 -  रवि पाटीदार

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ढलती सांझ का दर्शन

मीना भारद्वाज

   कुछ नये के फेर में ,
   अपना पुराना भूल गए ।
    देख मन की खाली स्लेट ,
    कुछ सोचते से रह गए ।।

     ढलती सांझ का दर्शन ,
     शिकवे-गिलों में डूब गया ।
     दिन-रात की दहलीज पर मन ,
     सोचों में उलझा रह गया ।।

     दो और दो  के जोड़ में ,
     भावों का निर्झर सूख गया ।     
     तेरा था साथ  रह गया ,
     मेरा सब पीछे छूट गया ।।
             🍁 - मीना भारद्वाज
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और अंत में प्रस्तुत है मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की वृद्ध दिवस पर यह ग़ज़ल -

बूढ़ा दरवेश

डॉ. वर्षा सिंह

बूढ़ी आंखें जोह रही हैं एक टुकड़ा संदेश मां- बाबा को छोड़ के बिटवा बसने गया विदेश 

घर का आंगन, तुलसी बिरवा और काठ का घोड़ा 
पोता-पोती, बहू बिना ये सूना लगे स्वदेश

जीपीएफ से एफडी तक किया निछावर जिस पे
निपट परायों जैसा अब तो वही आ रहा पेश

"तुम बूढ़े हो, क्या समझोगे" यही कहा था उसने 
जिस की चिंता करते करते श्वेत हो गए केश

"वर्षा" हो या तपी दुपहरी दरवाजे वो बैठा बिखरी सांसों से जीवित है जो बूढ़ा दरवेश
            🍁 - डॉ. वर्षा सिंह

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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस

राष्ट्रपिता गांधी हो जाना सबके बस की बात नहीं | गांधी जयंती विशेष | डॉ. वर्षा सिंह


प्रिय ब्लॉग पाठकों, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिवस 02 अक्टूबर को हम सभी महात्मा गांधी जी का स्मरण कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। गांधी जी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। वास्तविक अर्थों में वे महापुरुष थे। उनमें अनेक खूबियां थीं। उन जैसा बन पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है।

राष्ट्रपिता गांधी हो जाना सबके बस की बात नहीं
                                 - डॉ. वर्षा सिंह

सत्य अहिंसा को अपनाना सबके बस की बात नहीं
राष्ट्रपिता गांधी हो जाना सबके बस की बात नहीं

आजादी का स्वप्न देखना, देशभक्त हो कर रहना
बैरिस्टर का पद ठुकराना, सबके बस की बात नहीं

एक लंगोटी, एक शॉल में, गोलमेज चर्चा करना
हुक्मरान से रुतबा पाना, सबके बस की बात नहीं

आजादी जिसकी नेमत हो, वही आमजन बीच रहे
लोभ, मोह, सत्ता ठुकराना, सबके बस की बात नहीं

आत्मशुद्धि के लिए निरंतर, महाव्रती हो कर रहना
हंस कर सारे कष्ट उठाना, सबके बस की बात नहीं

सच के साथ प्रयोगों की "वर्षा" में शुष्क बने रहना
ऐसी अद्भुत  राह दिखाना, सबके बस की बात नहीं
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सोमवार, सितंबर 21, 2020

शुभकामनाएं | विश्व शांति दिवस 2020 | डॉ. वर्षा सिंह

विश्व शांति दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी को
🙏💐🌺💐🙏

दे  रहा  मन  हो  विह्वल, शुभकामना।
नित खिले सुख का कमल, शुभकामना।

आज के  सपने  सभी साकार हों
और बिखरे हास कल, शुभकामना।

मुक्त  कोरोना  से  हो  संसार  ये
हर कदम पर हों सफल, शुभकामना।

ज्योत्सना बिखरे सदा सुख शांति की 
है  यही  निर्मल- धवल, शुभकामना।

नित्य "वर्षा"  हो  सरस आह्लाद की 
पल्लवित हो नित नवल, शुभकामना।
     
                            - डॉ. वर्षा सिंह
🙏💐🌺💐🙏

#विश्वशांतिदिवस2020
#विश्व_शांति_दिवस
#WorldPeaceDay2020 
#worldpeaceday 
#शुभकामनाएं

शुक्रवार, सितंबर 18, 2020

बुंदेली व्यंग्य | अंगना में ठाड़े बड्डे | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों, आज मेरा बुंदेली व्यंग्य लेख "पत्रिका" समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ है।
हार्दिक आभार "पत्रिका" 🙏
बुंदेली व्यंग्य
              अंगना में ठाड़े बड्डे
                              - डॉ. वर्षा सिंह

       हमाए एक बड़े भैया जी आंए, जोन से हम बड्डे कहत हैं। भौतई नोनो सुभाव है उनखों। जोन चाए की मदद खों तैयार रैत हैं, मनो ना कहबो तो उन्ने सीखोई नईंया। बरहमेस, दूसरन के लाने अपनो पूरो टेम दे देत हैं। उनकी जेई आदत पे भौजी सो भारी खिजात हैं उन पे। मनो तनक सी डांट- डपट कर के बे सोई बड्डे खों संग देन लगत हैं। अब करें भी का। कोनऊ की मदद करे बिना उनखों जी सोई नईं मानत है। 
      हमाए बड्डे आयोजन करवाबे में भौतई एक्सपर्ट आएं। बे जोन आयोजन कराबे के लाने ‘‘हऔ’’ बोल देत हैं, तो मनो ऊ आयोजन कभऊं फेल तो होई नईं सकत आए। जा कोरोनाकाल के पैलें आयोजन कराबे के लाने उनके ऐंगर भीड़ लगी रैत्ती। काय से के उन्ने ऐसे-ऐसे आयोजन कराए के लोग देखतई रै गए। कोरोनाकाल में उन्ने भीड़-भाड़ बारो आयोजन खों काम बंद कर दौ है। काय से के बे कोरोना गाइडलाइन खों पालन कर रए हैं। बाकी कल बड्डे के संगे भौतई गजब भऔ। भओ जे के कल जब बे दुपैरी खों अपने अंगना में ठाड़े हते, उनके ऐंगर हरीरो सो सलूखा पैरे एक आदमी आओ, औ कहन लगो के हमाए लाने एक आयोजन करा देओ। 

    ‘‘काय को आयोजन?’’- बड्डे ने पूछी।

   ‘‘मोय सम्मान कार्यक्रम कराने है।’’ ऊने बड्डे से कही। फेर बोलो -‘‘अच्छो बड़ो सो आयोजन, जीमें हजार-खांड़ लुगवा-लुगाई जुड़ जाएं सो मनो मजो आ जाए।’’
‘‘अब न जुड़हें हजार-खांड, तुमें ओनलाईन कराने हो सो बोलो’’ बड्डे ने कही।

   ‘‘जे ओन-फोनलाईन हमें नईं करानें। हमाए लाने तो तीनबत्ती से पूरो कटरा बजारे लों भर दइयो। बो भी रात नौ के बाद, काय से के दिन में तो उते हमाए भक्तन की भीड़ जुड़ई रैत आय। सम्मान करबे खों मजा तो मनो रातई में आहै।’’ हरीरो सलूखा बारे ने कही।

    ‘‘कोन को सम्मान, कैसो सम्मान, हमाई कछ्छू समझ में ने आ रओ। काय से के ई टेम पे भीड़-भाड़़ जोड़बे वारो कौनऊ आयोजन हम नईं करवा रए। औ रात की तो सोचियो भी नई।’’ बड्डे ने कही।

   ‘‘ऐसो न बोलो भैय्या, तुमाओ बड़ो नाम सुनो है, तुमाए ऐंगर बड़ी आसा ले के आएं हैं।’’ बा गिड़गिड़ात भओ बोलो।

   ‘‘मनो तुम हो कौन? औ कौन को सम्मान करो चात हो?’’ बड्डे खिझात भए बोले।

   ‘‘हओ, सो तुम काए चीनहो हमाए लाने। काय से के तुम तो घरई में पिड़े रैत हो। चलो, हमाई बता देत हैं के हम को आएं। तो सुनो, हम कोरोना आएं। औ हमें उन औरन खों सम्मान करने है जो बिना मास्क लगाए, बिना डिस्टेंसिंग बनाए बजार-हाट में नांए-मांए घूमत रैत हैं। कोनऊ की नईं सुनत हैं। बे हमाए से मिलबे खों उधारे से फिरत हैं। सो हमें भी लग रओ है के हमें अपने ऐसे भक्तन खों सम्मान कारो चइए। काय, ठीक सोची ने हमने?’’ ऊने कही।

   अंगना में ठाड़े बड्डे ने इत्ती सुनी, औ लगा दई दौड़ कमरा के भीतरे। कोरोना हतो सो, अपनो सो मों ले के लौट गओ, बाकी हमाए बड्डे तभई, ओई टेम से उन औरन खों पानी पी-पी के कोस रए हैं जो गाइड- माइड लाईन भुला के कोरोना खों मूड़ पे बिठाए गली-गैल, बजार-हाट में खुल्ला मों लेके नांय-मांय सटत फिरत हैं। सो बड्डे कभऊं कोरोना खों गरियात हैं, सो कभऊं कोरोना भक्तन खों।
               -------------- 
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