पेज

शनिवार, दिसंबर 05, 2020

घर | गीत | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, सादर प्रस्तुत है मेरा एक गीत ....

घर
   -डॉ. वर्षा सिंह

छत न खिड़की से, नहीं दीवार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

घर जहां पर नेह के दीपक जलें 
घर वही सुख के जहां मोती मिलें
घर हमेशा है बड़ा संसार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

है थकन मिटती जहां मन-देह की 
बारिशें होती जहां स्नेह की 
घर नहीं कम है किसी उपहार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

घर की पुख़्ता नींव रिश्तों से बने 
मिल के रहने से ये होते हैं घने 
हैं सफल जो भी जुड़े घर-बार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

बात कोई भी न हो विद्वेष की 
हो अगर तो प्रेम के संदेश की 
टूटते घर आपसी तकरार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से 

जूझते हों जब अकेलेपन से हम 
घेरते हैं जब कई अनजान ग़म 
जोड़ता घर ही हमें परिवार से 
घर हमेशा घर बना है प्यार से
              ---------------


26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
      आपने मेरे गीत को चर्चा मंच हेतु चयनित किया इसके लिए मैं आपके प्रति हृदय से आभारी हूं।
      🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद शिवम् कुमार पाण्डेय जी 🙏

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर !
    घर हो तो ऐसा ही हो !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत -बहुत धन्यवाद गोपेश मोहन जैसवाल जी🙏

      हटाएं
  4. बेहतरीन संदेशपरक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!सराहनीय अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

      हटाएं
  6. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर अभिव्यक्ति। जूझते हों जब अकेलेपन से हम
    घेरते हैं जब कई अनजान ग़म
    जोड़ता घर ही हमें परिवार से
    घर हमेशा घर बना है प्यार से

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏

      हटाएं
  8. जूझते हों जब अकेलेपन से हम
    घेरते हैं जब कई अनजान ग़म
    जोड़ता घर ही हमें परिवार से
    घर हमेशा घर बना है प्यार से..स्नेह और प्रेम का संदेश देती रचना..।सुंदर अभिव्यक्ति..।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

      हटाएं
  9. दिल को छू गया आपका यह गीत वर्षा जी । अनुपम ! अप्रतिम ! अति प्रशंसनीय !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी 🙏

      हटाएं
  10. हरिः ॐ तत्सत्
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यति
    सदर नमन
    आचार्य प्रताप
    प्रबंध निदेशक
    अक्षर वाणी संस्कृत सामाचार पत्रम

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुस्वागतम्
      एवं
      हार्दिक धन्यवाद आदरणीय आचार्य प्रताप जी 🙏

      हटाएं
  11. जूझते हों जब अकेलेपन से हम
    घेरते हैं जब कई अनजान ग़म
    जोड़ता घर ही हमें परिवार से
    घर हमेशा घर बना है प्यार से
    बहुत सटीक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय ज्योति देहलीवाल जी 🙏

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आपकी सदाशयता के लिए 🙏

      हटाएं
  13. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतीश सक्सेना जी 🙏

      हटाएं
  14. बहुत ही प्यारा घर
    क्या सुंदर रचना की हैं अपने आदरणीय

    जवाब देंहटाएं