मित्रता संंर्दभित मेरे दोहे आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 25.08.2020 में प्रकाशित हुए हैं।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं -https://yuvapravartak.com/?p=39863
मित्रता पर दोहे
- डॉ. वर्षा सिंह
मुंहदेखी की मित्रता, मुंहदेखी का साथ।
दुख में ऐसे व्यक्ति ही सदा छुड़ायें हाथ।।
कृष्ण-सुदामा की तरह, मित्र न मिलते आज।
चार पलों के कर्ज़ पर, मांगे सौ दिन ब्याज।।
सदा करे जो मित्र के हित में दिल से बात।
मित्र सही "वर्षा" वही, करे न भीतर घात।।
ऊंच-नीच, औकात का नहीं करे जो भेद।
मित्र वही जो मित्र के लिए बहाए स्वेद ।।
निर्भय होकर कर सकें, जिससे मन की बात।
मित्र बने सम्बल सदा दिन हो या हो रात।।
अपने से ज़्यादा रहे जिसे मित्र का ध्यान।
"वर्षा" ऐसे मित्र का करें सदा सम्मान।।
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वाह .... बहुत सुन्दर दोहे हैं ...
जवाब देंहटाएंअरे वाह... आपकी इस त्वरित टिप्पणी ने मेरा उत्साहवर्धन किया है।
हटाएंहार्दिक आभार 💐🙏💐