Dr. Varsha Singh |
30 जनवरी 1889 को जन्में कवि, नाटककार, लेखक जयशंकर प्रसाद ने कामायनी महाकाव्य के साथ अनेक नाटक, उपन्यास तथा कहानी संग्रह की रचना की थी। चन्द्रगुप्त उनकी अद्वितीय नाट्यकृति है। जिसमें यह प्रसंग है कि यवन आक्रमक सेल्यूकश की सेना आक्रमण हेतु भारत की सीमा पर पड़ाव डाले थी। तक्षशिला की राजकुमारी अलका भारत के सैनिको में उत्साहवर्धन करते हुए कहती है कि हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती। इसे सुनें मेरे स्वर में.....
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के, रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाडवाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो, बढ़े चलो!
- जयशंकर प्रसाद
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