Dr. Varsha Singh |
मेरे गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 जुलाई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=16858
*गीत*
शून्य होती जा रही संवेदना
- डॉ. वर्षा सिंह
शून्य होती जा रही संवेदना
लुप्त सी होने लगी है चेतना
बद से बदतर गांव की हालत हुई
घर से बेघर चैन की चाहत हुई
पड़ रहा अक्सर स्वयं को बेचना
लुप्त सी होने लगी है चेतना
वीडियो बनते रहे वायरल हुए
हादसों से मन नहीं व्याकुल हुए
कौन समझे घायलों की वेदना
लुप्त सी होने लगी है चेतना
बिन चुभोये देह में चुभते हैं पिन
हाथ में पत्थर लिए दिखते हैं दिन
हो रहा मुश्किल बहुत ही झेलना
लुप्त होती जा रही है चेतना
सच की कड़वाहट भली लगती नहीं
झूठ की लेकिन सदा चलती नहीं
फैसला ना हो गलत, यह देखना
लुप्त होती जा रही है चेतना
------++++++---------
#गीतवर्षा
गीत.. शून्य होती जा रही संवेदना - डॉ वर्षा सिंह |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें