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मंगलवार, अप्रैल 09, 2019

बुंदेली ग़ज़ल ... हम बुंदेली नार - डॉ. वर्षा सिंह

डॉ. वर्षा सिंह

हम बुंदेली नार
          - डॉ. वर्षा सिंह
       
हमसे बात हमई की करियो ।
और न कोनऊ की कुछ कहियो।

का कैसो चल रओ सहर में ,
मोबाइल पे हाल बतइयो ।

बोनी हो गई इते खेत में ,
उते भओ का जा तो सुनइयो ।

सहर की लपझप रूप है न्यारो,
हंसी-हंसी में नाय फिसलियो ।

फीको अब तो लगत गांव है ,
कछू हमायी सुध ले लइयो ।

मेला इते लगो है नोनो,
आ के मेला हमें घुमइयो ।

तुम ‘सागर’ में ऐसे रम गए,
हम औरन खों भूल ने जइयो ।

मुन्ना मुन्नी हींड़ रये हैं ,
“अब तो पप्पा घर आ जइयो” ।

जनम जनम के बंधन अपने ,
फिर-फिर के, फिर छोर बंधइयो ।

तुम सुहाग के टीका साजन ,
अपने हाथन हमें सजइयो ।

हम बुंदेली नार हैं “वर्षा”,
सोच समझ के हमें सतइयो ।

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बुंदेली दरसन- डॉ. वर्षा सिंह

बुंदेली दरसन- डॉ. वर्षा सिंह

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