Dr. Varsha Singh |
गरमी के झुलसाते दिन तो गए बीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
कितना भी सूखे ने कहर यहां ढाया
अब तो है कजरारे बादल की छाया
रिमझिम से सजती है पौधों की काया
इसको ही कहते हैं ऋतुओं की माया
दुनिया ये न्यारी है
परिवर्तन जारी है
दुख के हज़ार दंश
एक खुशी भारी है
रहती हर हार में छुपी हुई जीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
गूंथ रहा मनवा भी सपनों की माला
पुरवा ने लहरा कर जादू ये डाला
भीगी-सी रागिनी, स्वर में मधुशाला
हृदय के भावों को छंदों में ढाला
बारिश की लगी झड़ी
सरगम की जुड़ी कड़ी
दिल तो है छोटा-सा
मचल रही चाह बड़ी
राग है मल्हार और प्यार का संगीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
गांव में निराशा के आशा का डेरा
जागी उम्मीदों ने जी भर कर टेरा
रिमझिम फुहारों से खेलता सवेरा
सबका है सबकुछ ही, क्या तेरा-मेरा
बूंद की अठखेली में
तृप्ति की पहेली में
लहरों की चहल-पहल
नदी अलबेली में
खुशबू बन चहक रही ओर-छोर प्रीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
पड़ती हैं धरती पर पावसी फुहारें
गली-गली बरस रहीं अमृत की धारें
मेघों से करती है बिजली मनुहारें
टूट रहीं जल-थल के बीच की दीवारें
बिखरी हरियाली है
छायी खुशहाली है
फूलों के बंधन में
बंधती हर डाली है
पाया है ‘‘वर्षा’’ ने अपना मनमीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
-------------
मेरा यह गीत "नारी का सम्बल " पत्रिका (सम्पादक डॉ. शकुंतला तरार) के जुलाई- सितम्बर 2018 अंक में प्रकाशित हुआ है।
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
कितना भी सूखे ने कहर यहां ढाया
अब तो है कजरारे बादल की छाया
रिमझिम से सजती है पौधों की काया
इसको ही कहते हैं ऋतुओं की माया
दुनिया ये न्यारी है
परिवर्तन जारी है
दुख के हज़ार दंश
एक खुशी भारी है
रहती हर हार में छुपी हुई जीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
गूंथ रहा मनवा भी सपनों की माला
पुरवा ने लहरा कर जादू ये डाला
भीगी-सी रागिनी, स्वर में मधुशाला
हृदय के भावों को छंदों में ढाला
बारिश की लगी झड़ी
सरगम की जुड़ी कड़ी
दिल तो है छोटा-सा
मचल रही चाह बड़ी
राग है मल्हार और प्यार का संगीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
गांव में निराशा के आशा का डेरा
जागी उम्मीदों ने जी भर कर टेरा
रिमझिम फुहारों से खेलता सवेरा
सबका है सबकुछ ही, क्या तेरा-मेरा
बूंद की अठखेली में
तृप्ति की पहेली में
लहरों की चहल-पहल
नदी अलबेली में
खुशबू बन चहक रही ओर-छोर प्रीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
पड़ती हैं धरती पर पावसी फुहारें
गली-गली बरस रहीं अमृत की धारें
मेघों से करती है बिजली मनुहारें
टूट रहीं जल-थल के बीच की दीवारें
बिखरी हरियाली है
छायी खुशहाली है
फूलों के बंधन में
बंधती हर डाली है
पाया है ‘‘वर्षा’’ ने अपना मनमीत
मौसम ने गाया है वर्षा का गीत
वर्षा का गीत, वर्षा का गीत।
-------------
मेरा यह गीत "नारी का सम्बल " पत्रिका (सम्पादक डॉ. शकुंतला तरार) के जुलाई- सितम्बर 2018 अंक में प्रकाशित हुआ है।
"नारी का सम्बल" पत्रिका में प्रकाशित डॉ. वर्षा सिंह का गीत |